शरद नवरात्र एवं दशहरे के बाद आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ‘शरद पूर्णिमा ‘(Sharad Purnima) तथा Kojagari Purnima के नाम से जानी जाती है, इसे आश्विन पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सब से निकट होता है , तथा इस दिन चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

शरद पूर्णिमा क्यों एवं कैसे मनाई जाती है?

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णमा की रात 12 बजे चन्द्रमा से अमृत वर्षा होती है और चन्द्र देवता के इस आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए घरों में खीर अथवा मेवे वाला दूध बनाकर घर की छत पर रखते हैं और उस के चारौं ओर बैठकर भजन या शरद पूर्णिमा से संबंधित गीत आदि गाते हैं । रात 12 बजे के बाद सब लोग मिलकर चन्द्रमा की पूजा करत हैं और तत्पश्चात खीर आदि को प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

इस वर्ष शरद पूर्णिमा कब है ?

इस वर्ष शरद पूर्णिमा तिथि दिनांक 09 अक्टूबर 2022 दिन रविवार को प्रातः 03- 41 AM से सोमवार दिनांक 10 अक्टूबर 2022 प्रातः 02 – 25 AM तक रहेगी ।
शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा का उदय सांय 05 – 51 PM पर होगा।

शरद पूर्णिमा के अन्य नाम (Names of Sharad Purnima)

कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे –

  1. कोजागरी व्रत पूर्णिमा, (Kojagari Purnima)
  2. कौमुदी व्रत पूर्णिमा, (Kaumudi Purnima)
  3. महारास पूर्णिमा, (Mahaaras Purnima)
  4. बंगाल में लोक्खी पूजा, (Lokkhi Puja)
  5. मिथिला में कोजगारह (Kojgarah)
  6. आश्विन पूर्णिमा (Ashwin Purnima)

शरद पूर्णिमा का पूजन (Sharad Purnima Ka Poojan)

बंगाल में इस दिन विशेष लक्ष्मी पूजा होती है तथा देवी लक्ष्मी को विशेष भोग बनाया/ लगाया जाता है।

गुजरात में शरद पूर्णिमा के दिन लोग गरबा एवं डांडिया रास करते हैं ।

चन्द्रमा के प्रकाश को कुमुद कहा जाता है इसीलिए इस व्रत को कौमुदी व्रत की उपाधि दी गई है।

ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात में भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला रची थी, जिसे महारास कहा जाता है अर्थात शरद पूर्णिमा का महत्व भगवान श्रीकृष्ण के साथ भी जुड़ा हुआ है।

शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजा का महत्व

पौराणिक शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि देवताओ और दैत्यों के बीच सागर मन्थन हुआ था । उस सागर मन्थन में शरद पूर्णिमा के दिन माँ भगवती लक्ष्मी का प्रादुर्भाव (अवतरण) हुआ था इसीलिए धन प्राप्ति के लिए शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को माँ भगवती लक्ष्मी पृथ्वी लोक में भ्रमण करती हैं । माता लक्ष्मी भ्रमण करते हुए यह जानकरी लेतीं हैं/  पूछतीं हैं – ‘ को  जाग री ‘ अर्थात कौन जाग रहा है ? इसी कारण शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है।  यही कारण है कि सभी भक्त रात्री के पहर में माँ लक्ष्मी की पूजा करते हैं।  धन  / वैभव प्राप्ति के लिए यह तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है।

शरद पूर्णिमा पर खीर के सेवन का महत्व

ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रोशनी में रखी खीर पर जो चन्द्रमा की किरणें पड़ती हैं उनसे अमृत का असर उस खीर में आ जाता है और उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से मनुष्यों को रोगों से मुक्ती मिलती है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस के सेवन से आँखों से जुड़ी बीमारियों एवं चर्म रोगों में बहुत लाभ प्राप्त होता है।

अपार धन पाने का उपाय –

शरद पूर्णिमा की रात में माँ देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए शुद्ध घी का दीपक जलाऐं, उन्हें गुलाब के फूल/ माला अर्पित करें तथा सुगंध भी अर्पित करें तथा निम्न श्लोक / मन्त्र का माता रानी के समक्ष बैठकर सच्चे मन से जाप करें –

“ऊँ ह्रीं श्रीं कमलालये
प्रसीद प्रसीद महालक्ष्म्यै नमः ।।”

भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं के साथ जन्मे थे और शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा भी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है । अतः शरद पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना उत्तम माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण शरद पूर्णिमा की रात में गोपियों के साथ रास लीला करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के निम्न मन्त्र से जाप करने से सभी मनोकामनाऐं पूरी होती हैं –

“ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्ण गोविंदाय
गोपीजनवल्लभाय श्रीं श्रीं श्रीं ।।”

भक्तों द्वारा इस मन्त्र का जाप करने से उन्हें सुख – समृद्धि एवं धन वैभव प्राप्त होता है और घर परिवार में खुशियां स्थापित रहतीं हैं।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha)

शरद पूर्णिमा से संबंधित एक बहुत ही प्रचलित कथा है। एक साहूकार के दो सुंदर कन्या थीं, उनमें बड़ी बहन सभी धार्मिक रीति-रिवाजों को मानने वाली थी तथा दूसरी बहन का रीति-रिवाजों में ज्यादा मन नहीं लगता था। दोनों का विवाह हो चुका था। दोनों बहनें शरद पूर्णमा का व्रत तो करतीं थीं

परन्तु छोटी बहन के सभी काम अधूरे ही होते थे। इसी कारण उस की संतान जन्म लेने के कुछ समय बाद मर जाती थी। इससै दुखी होकर उस ने एक महात्मा से इसका कारण पूछा, तो उसने बताया कि तुम्हरा मन पूजा पाठ में नहीं लगता तथा इस के लिए तुम शरद पूर्णमा का व्रत किया करो। महात्मा की सलाह से उस ने व्रत किया परंतु फिर भी उसका पुत्र जीवित नही बचा।

तो उस ने अपनी मृत सन्तान को एक चौकी पर लिटा कर अपनी बड़ बहन को घर बुलाया और उसे चौकी पर ही बैठने को कहा। जैसे ही बहन चौकी पर बैठने गई उसके स्पर्श से बच्चा रोने लगा। बड़ बहन चौंक गई और बोली, अरे तू मुझे कहां बैठा रही थी, यहाँ तो तेरा बेटा लेटा है , और मेरे बैठने से यह दब कर मर ही जाता।

तब छोटी बहन बोली कि मेरा पुत्र तो मर गया था, पर तुम्हारे पुण्यों के कारण तुम्हारे स्पर्श मात्र से उसके प्राण वापस आ गये। उसके बाद से सभी गाँव वासियों ने शरद पूर्णिमा का व्रत करना आरंभ कर दिया।
ईश्वर सभी को पूरे भक्ति भाव से पूजा पाठ की सद् बुद्धि दे।

इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा का महत्व होता है।
इस दिन सुबह-सुबह जल्दी नहा कर ने /साफ धुले वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूरे दिन उपवास करना चाहिए। रात को चन्द्रमा के दर्शन कर उसकी पूजा कर के उपवास खोलें।
रात को रतजगा करें, भजन तथा गीत आदि गाऐं और रात्री 12 बजे के बाद खीर का प्रसाद ग्रहण करें एवं प्रसाद वितरण करें।