प्रथम नवरात्री में माता शैलपुत्री को समर्पित है। नवरात्रों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा बहुत ही हर्षोल्लास एवं विधि-विधान से समस्त भारत में तथा कुछ पड़ोसी देशों में की जाती है । इन रूपों के पीछे तात्विक परिज्ञान, धार्मिक भावनाऐं तथा सामाजिक समन्वय और सांस्कृतिक रीति-रिवाज एवं पूजा पद्यति हैं ।

वृषारूढां शूलधरां  शैलपुत्रीं यशस्विनीम्  ।

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्  ।

माता शैलपुत्री का जन्म एवं वाहन

नवरात्र के पहले दिन (अर्थात पहले नवरात्र को) माँ दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में पूजा अर्चना होती है । पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण उनका नाम शैलपुत्री हुआ।  माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, इसीलिए देवी शैलपुत्री को वृषभरूढा के नाम से भी जाना जाता है ।

माता शैलपुत्री के शस्त्र

इनका चित्र देखने से ज्ञात होता है कि इन्होंने अपने दायें हाथ में त्रिशूल धारण किया हुआ है तथा बांये हाथ में कमल।  देवी शैलपुत्री प्रथम दुर्गा का रूप हैं। इनको देवी सती नाम से भी जाना जाता है।

माता सती की कहानी

देवी सती की एक बड़ी दिल छू लेने वाली कहानी है। एक बार देवी सती के पिता राजा दक्ष ने हरिद्वार में विशाल यज्ञ किया था । उस यज्ञ में भाग लेने के लिए दक्ष ने सभी देवताओं को निमंत्रित किया था परन्त भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया था।

भगवान शिव की अनुमति

जब माँ सती को अपने पिता द्वारा यज्ञ कराने की जानकारी मिली तो वह पिता के यहां यज्ञ में जाने के लिए आतुर हो उठीं। भगवान शिव ने उन्हे समझाया कि दक्ष ने उन के अलावा सभी देवताओ और ऋषियों को यज्ञ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है अतः ऐसे में पिता के यहाँ जाना उचित नहीं है, परन्तु सती की जिद्द को देखकर शिव जी ने उनको पिता के यहाँ जाने की अनुमति दे दी।

भगवान शिव का अपमान

माँ सती जब अपने पिता के घर पहुंच  तो केवल उन की माँ ही प्यार से बोलीं पर पिता और बहनों के व्यवहार में अपमान और उपहास के भाव थे तथा भगवान शिव के लिए तिरस्कार का भाव था।  पिता दक्ष ने शिव जी के लिए अपमानजनक शब्द कहे, जिस से माँ सती के मन को बहुत कष्ट हुआ।

दक्ष के यज्ञ का विध्वंस

माँ सती अपनै पति का अपमान न सह सकीं और उन्होंन अपने आप को समाप्त करने के लिए यज्ञ की अग्नि में कूद कर भस्म कर लिया।  इस घटना की खबर से भगवान शिव ने दुखी होकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया। 

शैलपुत्री माता पार्वती के माता-पिता

माँ सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में पैदा हुईं और इस तरह शैलपुत्री कहलाईं। माँ पार्वती और माँ हेमवती भी माँ शैलपुत्री के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री की शादी भगवान शिव के साथ हुई और वह शिव जी की अर्द्धागिनी बनी। 

माँ शैलपुत्री की शक्ति और मान्यता अनन्त है, इसलिए नवरात्रों में  सबसे पहले माँ दुर्गा के रूप में इन्ही को पूजा जाता है। माँ शैलपुत्री चंद्रमा को धारण करती हैं; यही कारण है इनकी आराधना- पूजा से साधकों की कुण्डली का चंद्र दोष ठीक होजाता है। 

माता शैलपुत्री की पूजा विधि

नवरात्रों में देवी पूजा के लिए सुबह-सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करलें । पूजा की तैयारी के लिए पूजा के थाल में दीपक, बत्ती,अगरबत्ती, रोली,फूल,बताशे आदि रखलें तथा गंगाजल का पात्र, लौंग, गूगल तथा थोड़ी सी हवन सामग्री रखें ।

पूजा प्रारंभ करने से उपले के दो/ तीन छोटे टुकड़े (जिन्हें करसी भी कहा जाता है) आँच पर दहका लें और उन्हे किसी पात्र या बड़े दीवले, जिसमें ज्योत उठानी हो उसमें रख लें । एक पात्र या डिब्बे में शुद्ध घी भी रख लें ।

सबसे पहले थोड़ा सा गंगाजल हाथ में लेकर देवी माँ पर छिड़कें और अपनी पूजा के स्थान पर पवित्रता के लिए यह बोलते हुए छिड़कें –

‘ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः पुण्डरीकाक्षं स बाह्यत शुचि: ।।’

पूजा की थाली में रखे दीपक को जलाए तथा माता रानी एवं गणेश जी को फूल अर्पित करें व रोली से तिलक लगाए ।

पूजा आरंभ करने से पहले सदैव गणेश जी को पूजा जाता है , अतः बोलें  –

ऊँ ग॔ गणपतये नमः  ।।

ऊँ गणना त्वा गणपति (गूं) हवामहे। 

प्रियणां त्वा प्रियपतिं (गूं) हवामहे  ।

निधिनां त्वा निधिपति (गूं) हवामहे वो मम । 

आह्मजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्  ।।

(अर्थात  – हे परमदैव गणेश जी ! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों, प्राणियों के पालक एवं समस्त सुख निधियों निधिपति ! आपका हम आवाह्न करते हैं । आप सृष्ट को उत्पन्न करने वालै हैं , हिरण्यगर्भ के धारण करने वाले अर्थात संसार को को अपने आप में धारण करने वाली प्रकृति के भी स्वामी हैं । आपको हम प्राप्त हों ।)

इसके बाद माँ शैलपुत्री को प्रणाम करते हुए  बोलें —

‘ ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः ।।’

प्रथम दुर्गा त्व॔हि भवसागर तारणीम् ।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम् ।।

त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान ।

सौभाग्यारोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्  ।।

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशनी। 

मुक्त भक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणामम्यहम् ।।

अब दहकते हुए उपले के टुकडों अर्थात करसी षर चम्मच से दो – तीन बार थोड़ा- थोड़ा घी डालें तो तुरंत धूंआ उठेगा, माचिस की तीली जलाकर करसी पर लाऐं, धूंआ तुरन्त अग्नि पकड़ लेगा अर्थात ज्योत प्रज्ज्वलित हो जायगी ।

अब ज्योत पर लौंग के जोड़े घी मैं भिगो कर चढ़ाएं , इसके बाद एक बताशे पर घी लगाकर ज्योत पर चढ़ायें ,थोड़ा सा गूगल ज्योत पर चढ़ाएं,  इसके बाद थोड़ी – थोड़ी सामग्री पांच बार ज्योत पर चढ़ाएं और माता रानी का जयकारा बोलकर दुर्गा सप्तशती का पाठ या कोई अन्य अर्चना करें ।

पूजा समाप्त होने पर माता रानी की आरती करें ।

माता शैलपुत्री की आरती

शैलपुत्री माँ बैल पर सवार, 

करें देवता जय जयकार ।।

शिव शंकर की प्रिय भवानी, 

तेरी महिमा किसी ने न जानी ।।

पार्वती तू उमा कहलावे ,

जो तुझे सुमिरे सो सुख पावे।।

ऋद्धि- सिद्धि परवान करे तू ,

दया करे धनवान करे तू ।।

सोमवार को शिव संग प्यारी ,

आरती तेरी जिसने उतारी  ।।

उसकी सगरी आस पुजा दो, 

सगरे दुख तकलीफ मिटादो  ।।

घी का सुंदर दीप जलाके  ,

गोला गरी का भोग लगा के  ।।

श्रद्धा भाव से मंत्र गाऐं  

प्रेम सहित फिर शीश झुकायें  ।।

जय गिरिराज किशोरी अम्बे ,

शिव मुख चंद्र चकोरी अम्बर  ।।

मनोकामना पूरण करदो  ,

भक्त सदा सुख संपति भर दो  ।।

आरती के बाद माता रानी का गीत गाकर भोग लगाऐं। इसके बाद मातारानी का जयकारा बोलें व चरण वंदन करें। अब आरती को पूरे घर/ कमरों में घुमाऐं,  इससे पूरे घर में positive ऊर्जा रहेगी ।

संध्याकाल में भी नियमित रूप से आरती करें। दिन में माता रानी का ध्यान करें और यदि संभव हो तो मिलकर भजन  कीर्तन  करें ।

 जय माता दी।