Q. 1  मौनी अमावस्या कब आती है ? Mauni Amavasya Kab Aati Hai?

माघ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस को ‘मौनी अमावस्या ‘ कहा जाता है  ।

Q. 2   मौनी अमावस्या को और किस नाम से जाना जाता है  ? Names of Mauni Amavasya

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या के अलावा माघी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है  ।

Q.3    माघ मास या मौनी अमावस्या को कहाँ स्नान करना श्रेष्ठकर माना जाता है  ?

मौनी अमावस्या के दिन या माघ मास में गंगा जी पर या गंगा नदी के संगम पर स्नान करना अत्यन्त शुभ माना जाता है  ।

Q. 4   गंगा जी के स्नान के महत्व के कारण किस नाम से नाम से जाना जाता  है  ?

माँ गंगा को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है अतः इस में स्नान करना पुण्य दायक माना जाता है  ।

Q. 5   गंगा नदी को भारत में कैसी नदी माना जाता है  ?

भारत वर्ष में गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना जाता है। 

Q. 6   माँ गंगा में किस का वास माना जाता है  ?

माँ गंगा में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। 

Q. 7  मौनी अमावस्या पर कैसा व्रत रखा जाता है  ? Fast on Mauni Amavasya

मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखा जाता है। 

Q. 8   मौनी अमावस्या के दिन क्या दान करना चाहिए  ?

मौनी अमावसया के दिन स्नान के बाद सामर्थ्य अनुसार अन्न,  वस्त्र,  धन,  गौ,  भूमि आदि का दान करना चाहिए।  तिल का दान भी इस दिन उत्तम माना जाता है। 

Q. 9 मौन व्रत में ईश्वर की भक्ति  / जाप कैसे करें  ?

मौनी अमावस के दिन मौन व्रत के दौरान ईश्वर की भक्ति / जाप केवल होठों से करना चाहिए।  इस से पुण्य कई गुना अधिक मिलता है। 

Q.10  मौनी अमावस्या को किस देवता की पूजा की जाती है ?

मौनी अमावस्या को भगवान विष्णु व भगवान शिव की पूजा का विधान है। 

कार्तिक मास की तरह हिन्दू धार्मिक व्यवस्थानुसार माघ मास को बहुत पवित्र एवं पुण्य मास माना जाता है।  माघ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ‘मौनी अमावस्या’ के नाम हे जाना जाता है  । कहीं  – कहीं जन साधारण की बोलचाल की भाषा में इसे माघी अमावस्या के नाम से भी पुकारा जाता है  । 

इस वर्ष अर्थात वर्ष 2023 में माघ मास दिनांक  07 जनवरी  2023 से प्रारंभ हो रहा है तथा दिनांक  05 फरवरी 2023 को माघ मास  समाप्त हो कर फाल्गुन मास प्रारंभ होगा।  माघ मास की अमावस्या दिनांक  21 जनवरी 2023 को होगी।

माघ मास में लोग क्या करते हैं ?

माघ मास एक अत्यन्त ही पवित्र एवं पुण्य फलदायक मास माना जाता है।  इस माह में गंगा स्नान को बहुत महत्वपूर्ण पुण्य फलदायक माना जाता है। 

ऐसा माना जाता है कि माघ मास का गंगा स्नान समस्त पापों को नष्ट करने वाला होता है तथा मोक्ष प्राप्ति का एक सुलभ साधन है।  इसी कारण माँ गंगा को मोक्षदायिनी कहा जाता है। 

महाराजा सगर के साठ हजार पुत्रों को,  जिन्हें कपिल मुनि ने अपने श्राप से भस्म कर दिया था,  उनको गंगाजल के स्पर्श मात्र  से ही मोक्ष प्राप्त हुआ था।  माघ माह की अमावस्या को तो विशेष मंगलकारी,  पापनाशिनी तथा पितृदोष समाप्त करने वाली माना जाता है।  

माघ मास में गंगा स्नान के अत्यन्त मंगलकारी एवं शुभ फलदायक होने की वजह से लोग माघ मास में गंगा किनारे कुटी बनाकर पूरे एक माह अर्थात पूरे माघ मास वहीं प्रावास करते है और नित्य गंगा स्नान कर पुण्य का लाभ उठाते हैं। 

यही कारण है कि भारत वर्ष में गंगा किनारे बहुत से स्थानों पर प्रति वर्ष मेलों का आयोजन किया जाता है  क्योंकि भारी संख्या में लोग दूर – दूर से गंगा स्नान के लिए गंगा जी पर पहुंचते हैं।  

मौनी अमावस्या पर संगम पर स्नान का क्या महत्व होता है ?

माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस को मौनी अमावस के नाम से जाना जाता है।  ऐसा माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा नदी में जहां संगम होता है ।

जैसे इलाहाबाद में गंगा का संगम यमुना नदी तथा सरस्वती नदी का होता है या पश्चिम बंगाल में गंगा नदी जहाँ गंगासागर में जाकर मिलती है अर्थात इस का संगम होता है, वहाँ समस्त देवता स्नान के लिए उपस्थित होते हैं। 

ऐसा भी माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन पितृ भी गंगा पर स्नान के लिए उपस्थित होते हैं।  इसी कारण गंगा के संगम स्थलों पर इस दिन स्नान करना अत्यन्त शुभ एवं महत्वपूर्ण माना जाता है।  

इस संबंध में अगर थोड़ा गहराई से नजर डालें तो हमें पता चलता है कि पवित्र गंगा जी पर कहीं भी स्नान करना बहुत शुभ एवं पुण्यदायक है। माता गंगा का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड राज्य मे स्थित हिमालय पर्वत श्रृंखला में संतोपथ नामक ग्लेशियर से होता है। 

संतोपथ ग्लेशियर से चल कर पर्वतों के बीच बहती हुई ऋषिकेश/ हरिद्वार में मैदानी इलाकों में आ कर कई प्रदेशों से होती हुई गंगासागर में जा कर मिलती है  ।

माता गंगा का अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद ऋषिकेश/हरिद्वार पहुंचने के पहले कई नदियों से इस का संगम होता है। जिन नदियों से संगम होता है  वह हैं  –

सरस्वती ;  ऋषिगंगा  ; लक्ष्मण गंगा ;  धौलीगंगा  ; बालखिल्य; बिहरि गंगा ; पाताल गंगा ; गरुन गंगा ; नंदाकिनी;  पिंडर  ; मन्दाकिनी  ; एवं भागीरथी  ।

मुख्य संगम स्थल कौन कौन से हैं? Sangam Sthal

केशव प्रयाग पर सरस्वती नदी से, 

विष्णु प्रयाग पर धौली गंगा  से,

नंद प्रयाग पर नंदाकिनी से, 

कर्ण प्रयाग पर पिंडर नदी से ,

रुद्र प्रयाग पर मन्दाकिनी नदी से ,

देव प्रयाग पर भागीरथी नदी से  ।

देव प्रयाग संगम के बाद माँ गंगा पर्वतों से होती हुई ऋषिकेश  / हरिद्वार में आ कर मैदानी रास्ते से बहती हुई इलाहाबाद जब पहुंचती है वहाँ पर इस का यमुना नदी के साथ संगम होता है।

इसमें प्रतीक रूप यह माना जाता है कि सरस्वती नदी भी यहाँ गंगा में यमुना के साथ  – साथ  यहाँ पर मिलती है।  इसीलिए इलाहाबाद के संगम स्थल को अत्यधिक पवित्र एवं धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। 

इलाहाबाद के बाद गंगा नदी का आखिरी संगम गंगासागर से पश्चिम बंगाल में होता है।  इन दोंनो स्थलों पर माघ मास में लाखों-लाखों की संख्या में लोग पवित्र स्नान के लिए दूर दराज के क्षेत्रों से आते हैं तथा वहाँ पर कई दिन ठहर कर पवित्र स्नान का लाभ उठाते हैं। 

यही कारण है कि यहाँ पर बड़े – बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है जिस से कि भारी संख्या में आने वाले श्रृद्धालुओं को आवश्यक सुविधाऐं तथा भोजन आदि की समुचित व्यवस्था उपलब्ध हो। 

यहीं नहीं माघ मास में हरिद्वार से लेकर अन्य स्थलों पर जहाँ स्नान के लिए घाट आदि की सुविधा है वहाँ पर भी अपार भीड़ स्नान के लिए पहुंचती है।  

अतः यह अपने आप में स्पष्ट है कि पवित्र गंगा में जो जल पर्वतों को पार कर के मैदानी इलाकों में आता है वह कम से कम छह पवित्र संगमों के पश्चात आता है ।

अतः गंगा जी में कहीं भी स्नान किया जाय वह स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को इन संगमों का जल ही प्राप्त होता है जिस की पवित्रता तथा पुण्य क्षमता किसी प्रकार भी कम नहीं आंकी जा सकती है।

क्योंकि यह सभी संगम पौराणिक काल से बहुत पवित्र माने जाते रहे हैं तथा अनेको पौराणिक कथाऐं इन के साथ जुड़ी हुई हैं जो इन के महत्व को स्पष्ट करतीं हैं तथा साक्षी भी हैं। 

मौनी अमावस्या तिथि एवं शुभ मुहूर्त  –

वैदिक पंचांग के अनुसार वर्ष 2023 के माघ मास की अमावस्या दिनांक  21 जनवरी  2023 (Mauni Amavasya 2023) को होगी जो कि इस प्रकार है  –

माघ 2023 अमावस्या तिथि प्रारंभ : दिनांक 21 जनवरी 2023, दिन शनिवार प्रातः  06-17 AM से

माघ 2023 अमावस्या तिथि समाप्त : दिनांक 22 जनवरी 2023, दिन रविवार प्रातः 02-22 AM पर ।

मौनी अमावस के दिन सूर्योदय  :  प्रातः 07-14 AM पर होगा ।

अतः उदया तिथि अनुसार माघी (मौनी) अमावस्या दिनांक 21 जनवरी 2023 दिन  शनिवार को ही मनाई जायगी। 

मौनी अमावस  को स्नान का शुभ मुहूर्त  :   दिनांक  21 जनवरी 2023, दिन शनिवार  – प्रातः 08-34 AM से  प्रातः 09-53 तक ।

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मौनी अमावस्या का क्या पौराणिक संदर्भ है? Story of Mauni Amavasya

पौराणिक काल से ही नदियों तथा नदियों के संगम स्थलों पर किसी पर्व के समय स्नान करने को अधिक शुभ माना जाता रहा है।  इसी सिलसिले में एक कथा में उल्लेख आता है कि जब सागर मंथन चल रहा था जिस में एक तरफ सभी देवता थे और दूसरी ओर असुर थे। 

सागर मन्थन के बीच भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जो कि अपने हाथ में अमृत कलश लिए हुए थे।  अमृत कलश को देख कर देवताओ और असुरों के बीच  उस अमृत कलश को प्राप्त करने की होड़ लग गई।

आपस में खींचा तानी होने लगी क्योंकि प्रत्येक पक्ष यह चाहता था कि अमृत कलश उन को मिल जाय।  इस  खींचा-तानी में अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें छिटकीं।

ऐसा माना जाता है कि अमृत कलश से जो बूंदें छिटकी उनमें से कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद में गिरीं,  कुछ बूंदें नासिक में गिरीं, कुछ बूंदें उज्जैन में गिरीं तथा कुछ बूंदें हरिद्वार में गिरीं। इसी वजह से इन स्थानों पर जो नदियाँ हैं वहाँ प्रत्येक पर्व पर स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है तथा ऐसी मान्यता है कि इन नदियों पर स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।  

इस संबंध में यह भी विशेष है कि माघ अमावस अगर सोमवार के दिन हो तो सोमवती अमावस्या होने के कारण इस का महत्व बहुत ज्यादा या कई गुना अधिक माना जाता है।  यदि इस समय अगर कुंभ चल रहा हो तो ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान का महत्व अनंत गुना अधिक होता है  ।

ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि सतयुग काल में जो पुण्य लोगों को तप करने से प्राप्त होता था या त्रेता युग के समय लोगों को जो पुण्य ज्ञान प्राप्ति से मिलता था या द्वापर युग में जो पुण्य हरि भक्ति से प्राप्त होता था वही इस कलयुग में दान करने से प्राप्त होता है। 

इसीलिए इस पर्व के अवसर पर दान की अत्यधिक महत्ता है। इसके साथ  साथ ऐसी भी मान्यता है कि माघ मास में कभी भी पवित्र नदियों के संगम पर या नदियों में अगर स्नान किया जाय तो वह वर्ष के अन्य माहों  की अपेक्षाकृत अधिक पुण्यदायक होता है। 

मौनी अमावस्या के दिन स्वेच्छापूर्वक अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो भी संभव हो जैसे अन्न, वस्त्र, धन आदि अवश्य दान करना चाहिए वह अत्यधिक पुण्यदायक होता है। 

इसीलिए ऐसी प्रथा बनाई गई है कि यदि कुछ ज्यादा संभव नहीं है तो प्रत्येक परिवार कुछ सूखा खाद्य पदार्थ जैसे चावल, दाल, सब्जियां आदि तथा कुछ पैसे रखकर मंदिर में दान स्वरूप भेज देते हैं।

परिवार की स्त्रियाँ अपने घर की मान्य/ बुजुर्ग जैसे सास, ननद, बुआ सास आदि को बायना के रूप में कुछ वस्त्र,  श्रंगार का सामान तथा कुछ पैसे रखकर उनको सम्मान पूर्वक पैर छू कर देतीं हैं  और बदले में वह बहुत सारे आशीर्वाद व दुआऐं देतीं हैं। 

इस संबंध में सभी धर्मों में यह मान्यता है तथा दृढ विश्वास है कि बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद हमेशा फलते हैं तथा कभी बेकार नहीं जाते। 

मौनी अमावस्या की पूजा विधि क्या है?

परिवार में सभी को भोर में सूर्योदय से पहले उठना चाहिए तथा शीघ्र ही नित्य कर्म से निवृत्त होना चाहिए  ।

इस दिन यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी जैसे गंगा आदि  पर प्रातःकाल में शुभ मुहूर्त के समय स्नान करना चाहिए और यदि संगम स्थल हो तो बहुत उत्तम माना जाता है। 

पुराणों में पर्व के समय पवित्र नदियों पर स्नान करना अत्यन्त शुभ बताया गया है और माँ गंगा में स्नान का महत्व इसलिए भी अधिक वर्णित है क्योंकि माँ गंगा को साक्षात मोक्षदायिनी माना गया है। 

अगर गंगा जी या किसी पवित्र नदी/ सरोवर पर जा कर स्नान करना संभव नहीं है तो इतना अवश्य करना चाहिए कि स्नान के जल में कुछ बूंदें गंगाजल की डाल लें।

ऐसा करने से वह जल गंगाजल में स्नान का फल देता है।  यदि घर पर गंगाजल उपलब्ध न हो तो स्नान करने से पहले  ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड का यह श्लोक बोलकर माँ गंगा का आवाह्न करें  –

“गंङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। 

नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन संनिधिंकुरु  ।।”

(अर्थात  – हे गङ्गे ! यमुने! गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे ! सिंधु ! एवं कावेरि  !आप सब इस जल में निवास करो। ) इस प्रकार आवाह्न करने से सभी तीर्थ स्नान जल में आ जाते हैं  । तत्पश्चात स्नान करें  । 

स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें  ।

स्नान करने के बाद जो लोग इस दिन व्रत (अर्थात मौन व्रत) रखना चाहते हैं वह व्रत रखने का संकल्प करें  ।

स्नान के बाद एक कलश या लोटे में शुद्ध जल भरकर और उस में कुछ काले तिल व चुटकी भर गुड़ डाल कर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें  ।

सूर्य को अर्घ्य देते समय निम्न श्लोक / मन्त्रों का उच्चारण करें  –

” ॐ घृणि सूर्य आदित्याय नमः। “

” ॐ सूर्याय नमः ।,  ॐ आदित्याय नमः । ॐ भास्कराय नमः,  अर्घ्य समर्पयामि  ।”

  अर्घ्य देकर भगवान सूर्य को नमस्कार करें तथा खड़े- खड़े प्रदिक्षणा करें। 

 इस के बाद पूजास्थल पर थोड़ा सा गंगाजल या शुद्ध जल हाथ में लेकर पूजा स्थल की पवित्रता स्थापित करने के लिए ब्रह्मवैवर्त पुराण,  ब्रह्म खण्ड के अध्याय 17 के इस श्लोक को बोलते हुए जल को छिड़कें  –

” ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां वा। 

यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः  ।।

मौनी अमावस्या के दिन भगवान शिव एवं भगवान विष्णु की पूजा का विधान माना गया है।  पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव व भगवान विष्णु दोनों एक ही शक्ति के दो रूप हैं  ।

हिन्दू सनातन धर्म में पूजा प्रारंभ करने से पहले श्रीगणेश जी का पूजन सबसे पहले करना चाहिए  अन्यथा ऐसा माना जाता है कि बिना गणपति पूजन के पूजा सफल नहीं होती।  

पूजा की थाली में धूप-दीप, अगरबत्ती, चंदन, रोली तथा भगवान जी के भोग का सामान रखें तथा एक कलश (लोटा) शुद्ध जल का भर कर रखें  ।

पूजा स्थल पर भगवान श्रीगणेश,  शिव जी व भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।  तथा इन पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़कें। 

दीपक/ अगरबत्ती जलाऐं।  भगवान जी के माथे पर तिलक लगाकर अंत में अपने मस्तक पर भी तिलक लगाऐं।  पूजा के समय मस्तक पर तिलक लगाना पूजा का एक आवश्यक अंग है। 

पुराणों मेः यह स्पष्ट बताया गया है कि तिलक नहीं लगाने से पूजा निष्फल रहती है अर्थात उसका पुण्य प्राप्त नहीं होता  ।

पूजा आरंभ करते समय हमेशा भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए बोलें  –

” ॐ श्री गणेशाय नमः  ।”

” ॐ गं गणप्तये  नमः  ।”

” ॐ एक दन्ताय विद्महे,  वक्रतुण्डाय धीमहि। 

तन्नो दन्ति प्रचोदयात्  ।।”

” ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बंफलचारुभक्षणम्  ।

उमा सुतं शोक विनाशकारकं, नमामि विघ्नेश्वरपादपंजम्  ।।”

इस के बाद भगवान शंकर का ध्यान करते हुए  बोलें   —

” ॐ नमः शिवाय,  ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय,  ॐ नमः शिवाय,  ॐ नमः शिवाय  ।।”

” ॐ महादेवाय विद्महे, रुद्रमूर्तये धीमहि। 

तन्नो शिव प्रचोदयात्  ।।”

अब भगवान शिव के यह 12 नाम बोलें जो अत्यंत शुभ फलदायक हैं  –

ॐ शिवाय नमः,  ॐ रुद्राय नमः, ॐ पशुपतये नमः,   ॐ नीलकण्ठाय नमः,  ॐ महेश्वराय नमः,  ॐ ह्रषिकेशाय नमः,  ॐ  विरूपाक्षाय नमः,  ॐ पिनाकिने नमः,  ॐ त्रिपुरान्तक नमः,  ॐ शम्भवे नमः  ॐ शालिने नमः,  ॐ  महादेवाय नमः  ।।”

इस के पश्चात भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए बोलें  –

   ” ॐ  विष्णवे नमः  ।

     ॐ  हूँ  विष्णवे नमः ।

     ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः  ।

     ॐ नमो  नारायणाया  ।

     ॐ श्रीमन् नारायण  नारायण हरि  हरि  ……

    ” शांताकरं भुजगशयनं पद्मनाभ सुरेशम्  ।

विश्वाधारं गगनसदृश्यं महादेव शुभांगम्। 

लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। 

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलौकैकनाथम्  ।।

पूजा संपन्न होने पर भगवान का भोग लगाने के लिए जो भी सामग्री पूजा में रखी हो, उस का भोग लगाऐं।  

अब भगवान श्रीगणेश,  शिव जी तथा भगवान विष्णु जी की आरती करें  ।

आरती संपन्न होने पर सभी को आरती दें तथा भोग सामग्री को प्रसाद रूप में उपस्थित लोगों को बाटें  ।

इस दिन जिन लोगों ने व्रत नहीं रखा वह यदि संभव हो तो केवल मीठा भोजन करें ।

मौनी अमावस्या का क्या महत्व होता है? Importance of Mauni Amavasya

मौनी अमावस्या के गंगा / संगम पर स्नान अत्यन्त पुण्यदायक एवं शुभ फलदायक होता है ।

इस दिन व्रत एवं पूजा से भगवान प्रसन्न होते हैं तथा पितरों को तृप्ति मिलती है  ।

इस दिन दान करने से पितृ खुश होते हैं तथा ऐसा माना जाता है कि पितृ दोष से मुक्ति मिलती है ।

इस दिन घर के द्वार पर पितरों के नाम का दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में रखने से शुभ माना जाता है ।

इस दिन पीपल की पूजा करके दूध चढ़ाने से ऐसा माना जाता है कि माँ  लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा उनकी कृपा बनी रहती है। 

माँ गंगा के जल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है अतः गंगा जी पर स्नान करने या स्नान करने से पहले माँ गंगा का आवाह्न कर के स्नान करने से माँ गंगा और भगवान विष्णु  दोनों की कृपा प्राप्त होती है  ।

इस दिन मौन व्रत रखने का लाभ यह होता है कि किसी के साथ किसी प्रकार का अभद्र व्यवहार नहीं होता,  अतः मौन व्रत सामाजिक सद्भाव बढ़ाता है।  

इस दिन तिल या तिल के बने व्यंजन अवश्य दान करने चाहिए क्योंकि इस का पुराणों में बहुत महत्व बताया गया है  ।

ऐसा भी माना जाता है कि मनु ॠषि का जन्म / प्रकाट्य इसी दिन हुआ था,  शायद मनु के स्थान पर ‘मौनी’ अमावस इस दिन का नाम पड़ गया  ।

इस दिन मौन रह कर केवल होठों से भगवान का जाप किया जाता है और उस का अधिक पुण्य मिलता है।  साथ ही मौन रह कर मनका माला फेर कर हरि (ईश्वर) का नाम लेने से कई गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है।