Q.   मकर संक्रान्ति कब आती है ?

     मकर संक्रान्ति का त्यौहार प्रत्येक वर्ष हिन्दी पौष मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है  ।

Q.   इंग्लिश कैलेण्डर के हिसाब से मकर संक्रान्ति प्रति वर्ष 14 जनवरी या उसके एक दिन आगे – पीछे आती है  ।

Q.   वर्ष 2023 में मकर संक्रान्ति किस दिन मनाई जायगी  ?

     वर्ष  2023 में मकर संक्रान्ति  15 जनवरी  2023, दिन  रविवार को मनाई जाएगी  ।

Q.     मकर संक्रान्ति पर किस देवता की पूजा होती है  ?

      मकर संक्रान्ति पर मुख्यतः सूर्य देवता की पूजा की जाती है।  कुछ स्थानों पर इस दिन सूर्य देवता के साथ- साथ भगवान विष्णु व देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती है  ।

Q.    मकर संक्रान्ति का त्यौहार मूलतः समाज के किस वर्ग से जुड़ा है  ?

     यह त्यौहार मूलतः किसानों व उनकी फसल से जुड़ा है । इस पर्व को किसानों और फसलों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है  ।

Q.   मकर संक्रान्ति पर्व की गणना किस चक्र के अनुसार तय होती है  ?

     मकर संक्रान्ति त्यौहार की गणना सौर चक्र के अनुसार की जाती है।  जब कि अन्य त्यौहारों की गणना सामान्यतः चन्द्र चक्र के अनुसार होतीं हैं  ।

Q.   मकर संक्रान्त पर्व किस का प्रतीक है  ?

     मकर संक्रान्ति पर्व सर्दियों के अन्त और दिन बड़े आने अर्थात अंधेरा कम होने का प्रतीक है  ।

Q.    मकर संक्रान्ति त्यौहार किस से जुडा है  ?

      यह त्यौहार सूर्य द्वारा भूमि को अधिक ऊर्जा  ( ताप एवं रोशनी) तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुर उपलब्धता से जुड़ा है  ।

Q.   मकर संक्रान्ति की पूजा में किन किन  चीजों का भोग लगाते हैं ?

      मकर संक्रान्ति के दिन पूजा के बाद तिल व गुड़ से बना तिलकुट तथा खिचड़ी का भोग लगाते हैं। 

Q.    मकर संक्रान्ति का पर्व किस खगोलीय स्थिति पर मनाया जाता है ?

       जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर जाता है अर्थात दक्षिणायन से उत्तरायण होता है उस स्थिति को मकर संक्रान्ति माना जाता है और पर्व मनाते हैं ।

आइये मकर संक्रान्ति के बारे में विस्तृत रूप से जानते हैं  । 

    भारत वर्ष में मकर संक्रान्ति देश के लगभग सभी प्रदेशों सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा बड़े  हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।  प्रादेशिक सांस्कृतिक भिन्नता होने के बावजूद इस पर्व को मनाने का मुख्य केंद्र सभी का भगवान सूर्य देव की पूजा होता है  । यही भारत की विविधता में एकता को स्पष्टतः दर्शाता है  । मकर संक्रान्ति हिन्दू धर्म मानने वालों का एक महत्वपूर्ण या कहिये कि एक प्रमुख त्यौहार है  । 

     इस पर्व पर मुख्यतः सूर्य देव की आराधना/ उपासना की जाती है।  इस पर्व का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है –  मकर  +  संक्रान्ति  । मकर शब्द राशि को दर्शाता है यथा संक्रान्ति शब्द का अर्थ है  –  एक राशि से दूसरी राशि में जाना ( अर्थात एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण) । मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव मकर राशि में संचरण करते हैं , इसीलिये इस दिन मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है  । सूर्य  प्रत्येक राशि में एक माह रहते हैं अर्थात  सूर्य द्वारा राशि परिवर्तन की क्रिया से वर्ष में बारह संक्रान्ति होती हैं।  

      मकर संक्रान्ति का पर्व मनाने के पीछे इस पर्व की कुछ विशेषताऐं हैं जो भौगोलिक वातावरण तथा मनुष्यों के जन जीवन पर विशेष सकारात्मक प्रभाव/ असर  लातीं हैं। इसी विशेषता के कारण विश्व में भी किसी न किसी रूप में इस बदलाव की स्थिति को मनुष्य हर्ष के साथ मनाते हैं  । रोमन साम्राज्य में भी सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायणन को सूर्य के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।  

     मकर संक्रान्ति के दिन भौगोलिक वातावरण में एक प्रमुख अंतर यह आता है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण होने के कारण दिन शनै – शनै बड़े होने लगते हैं और इसी क्रम में रातें छोटी होने लगती हैं।  इस का एक बड़ा स्पष्ट असर यह देखने में आता है कि दिन का तापमान (तापक्रम) धीरे – धीरे अधिक होने लगता है अर्थात दिन गर्म होने लगते हैं और रात में सर्दी भी कम होने लगती है।  इस तापक्रम के बदलाव का लाभ यह होता है कि भूमि से नई फसलों की पैदावार के लिए एक अनुकूल तापीय वातावरण उपलब्ध हो जाता है  और मनुष्यों के उसके फलस्वरूप अच्छी फसलें ( अर्थात अन्न तथा अन्य भोज्य पदार्थ) पैदा होने के कारण प्रचुरता में प्राप्त हो जाते हैं  ।

     मकर संक्रान्ति का पर्व मुख्य रूप से भगवान सूर्य देव की भक्ति को समर्पित है।  इस के पीछे एक सबसे बडा कारण यह है कि इस दिन से (विशेषकर भारत में)  नई फसलों को बोने की शुरुआत होती है।  इस पर्व से कुछ समय पहले ही किसान भाई अपनी पहली फसल काट कर अपने- अपने खेतों को नई फसल के लिए तैयार करते हैं।  इसीलिए इस मकर संक्रान्ति के पर्व को फसलों का उत्सव कहा जाता है।  इस पर्व पर किसान तथा खेतीहारी के व्यवसाय से जुड़े सभी व्यक्ति बहुत हर्ष और उल्लास से इस पर्व को मनाते हैं  क्योंकि फसल  / खेती से उत्पन्न खाद्य पदार्थ,  अनाज आदि सभी जीवों के जीवन का सहारा है।  

      इस पर्व से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायणन होने के कारण शीत ॠतु (अर्थात  भारी ठंड का मौसम) जिस की वजह से सामान्य जन मानस का जीवन  अधिक सर्दी,  कोहरा/ पाला आदि की वजह से निष्प्राण सा हो जाता है,  वह सब परेशानियाँ समाप्त होने लगती हैं तथा दिन और रात के तापक्रम में ठंड के स्थान पर मौसम हल्का गर्म शुरु हो जाने के कारण मनुष्यों  / जीवों में फूर्ती का एहसास स्वाभाविक रूप से दिखाई देने लगता है और धीरे  – धीरे यह परिवर्तन बसन्त ॠतु की ओर बढ़ता दिखाई देता है  । इसीलिए यह पर्व भारत के सभी प्रदेशों में बहुत खुशी के साथ मनाया जाता है  ।

        दिन के तापक्रम में बदलाव की वजह से चारों ओर पूरे देश में लोगों का पर्यटन बढ़ना शुरु हो जाता है।  लोग बड़ी श्रद्धा के साथ विभिन्न तीर्थ स्थलों पर भारी संख्या में  धर्म लाभ के लिए पहुचते दिखाई देते हैं । विशेष कर मकर संक्रान्ति के दिन भारत की सभी पवित्र नदियों,  तीर्थ स्थलों पर अपार भीड़ दिखाई देती है  । लोग पवित्र नदियों  / सरोवरों में इस दिन प्रातःकाल के समय (अर्थात  ब्रह्म मुहूर्त में)  स्नान करना बहुत पुण्य का समझते हैं।  

      पवित्र गंगा नदी हिमालय के पहाड़ों से  ऋषिकेश  / हरिद्वार से मैदानी क्षेत्र  में आ कर  पश्चिम बंगाल में गंगा सागर में जा कर मिलती है  इस नदी के रास्ते में जितने भी शहर या कस्बे आते हैं तथा जिन  जिन स्थानों पर स्नान के लिए घाट निर्मित किये हुए हैं,  हर जगह इस दिन भोर से ही श्रद्धालुओं की अपार भीड़ स्नान करने के लिए उमड़ती है।  यही नहीं भारत की जो अन्य पवित्र नदियाँ हैं जैसे  – नर्मदा,  गोमती,  सरयू, कृष्णा, कावेरी आदि या जो भी प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं जैसे- पुष्कर,  कुरुक्षेत्र,  नैमिषारण्य आदि अथवा जहाँ  जहाँ पर पवित्र जल सरोवर हैं,  वहाँ भी इस दिन प्रातःकाल से ही श्रद्धालुओं की अपार भीड़ दिखाई देती है  ।जिस से यह संदेश बहुत स्पष्ट रूप से मिलता है कि भारत के सभी हिस्सों में इस पर्व को जन मानस धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व देते हैं  ।

मकर संक्रान्ति पर्व भारत के अलावा कहाँ मनाया जाता है  ?

भारत वर्ष के साथ  – साथ  यह पर्व  नैपाल,  बंग्लादेश,  म्यांमार, (जो पहले बर्मा के नाम से जाना जाता था),  थाईलैंड,  लाओस, कम्बोडिया तथा श्रीलंका आदि देशों में भी मनाया जाता है  ।

मकर संक्रान्ति के विभिन्न नाम  –

   मकर संक्रान्ति का त्यौहार हांलाकि भारत वर्ष के लगभग सभी प्रदेशों में हिन्दू धर्म तथा इस धर्म के अन्य संप्रदायों  के लोगों द्वारा मनाया जाता है,  परन्तु इस पर्व को क्षेत्रीय भाषा में भिन्न  – भिन्न नामों से जाना/ पुकारा जाता है  जैसे –

उत्तर प्रदेश, पश्चिम बिहार  – संक्रान्ति,                                       खिचड़ी 

तामिल नाडू  –    पोंगल, ताई पोंगल,                            उझवर तिरुनल

बंगाल  –          पौष संक्रान्ति

आसाम –         भीगली बिहू

केरल  –           मकर विल्लकू

गुजरात, राजस्थान-    उत्तरायणन     

हिमाचल प्रदेश, पंजाब-  माघी

जम्मू  –             माघी  संग्रराद

काश्मीर  –        शिशुर सेंक्रान्त 

नैपाल   –     माघे  संक्रान्ति

थाईलैंड  –     सोंग्क्रण

म्यांमार   –     थानाध्यक्ष

कम्बोडिया  –  मोहा संग्क्रण 

श्री लंका    –   उलावर  थिरेपी

लाओस     –    पी  मा  लाओ

मकर संक्रान्ति तिथि एवं पुण्य काल-

  वर्ष 2023 में मकर संक्रान्ति तिथि का आगमन हांलाकि दिनांक 14 जनवरी 2023, दिन शनिवार की रात्रि में हो जाएगा परन्तु उदया तिथि के अनुसार मकर संक्रान्ति का पर्व दिनांक 15 जनवरी 2023 दिन रविवार को ही मनाया जायगा।  मकर संक्रान्ति का आगमन एवं पुण्य काल इस प्रकार होंगे  –

मकर संक्रान्त तिथि आरंभ  – 14 जनवरी  2023 दिन शनिवार  रात्रि 08 – 14 PM पर ।

मकर संक्रान्ति पुण्य काल-  15 जनवरी 2023 दिन रविवार 

प्रातः 05 – 43 बजे से सांय 06-56 बजे तक  रहेगा ।

मकर संक्रान्ति महापुण्य काल –   15 जनवरी  2023 दिन रविवार प्रातःकाल  05-43 बजे से 07 – 55 बजे तक रहेगा। 

(मकर संक्रान्ति पुण्य काल एवं महापुण्य काल की अवधि के समय के बारे में ज्योतिष  / धार्मिक विद्वानों के मत भिन्न हैं, शायद यह अलग-अलग पंचांगों अथवा उन की गणना के आधार के कारण हैं ।)

     दिनांक  14 जनवरी 2023 को जिस समय सूर्य  मकर राशि में  प्रवेश/ संचरण करेंगे उस समय मकर राशि में पहले से ही बुध  व  शनि ग्रह विराजमान होंगे।  ज्योतिष विज्ञान में इस घटना को ‘स्टेलियम’ के रूप में जाना जाता है  ।

     इस बार 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रान्ति तिथि काल में निम्न अत्यंत शुभ योग बन रहे हैं जो कि पुण्य फलदायक हैं  –

   सर्वार्थ सिद्धि योग, 

   अमृत  सिद्धि योग,  एवं

   राजपद योग  ।

मकर संक्रान्ति की पौराणिक कथा –

   मकर संक्रान्ति पर्व के साथ कई पौराणिक कथा एवं घटनाऐं जुड़ी हुई हैं जिन से इस पर्व की महत्वता का पता चलता है।  इस की एक प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है  –

1 –    प्राचीन काल में एक बहुत परोपकारी राजा थे जो अपनी प्रजा के अत्यंत हितैषी थे उन का नाम महाराजा सगर था ।  उन की प्रसिद्धि तीनों लोकों में बहुत ज्यादा थी।  उन की प्रसिद्धि को देख कर स्वर्ग/ देवताओ के राजा इंद्र को यह चिंता सताने लगी कि कि कहीं राजा सगर स्वर्ग पर अपना अधिकार ना जमा लें।   एक बार राजा सगर ने अश्व मेघ यज्ञ का आयोजन किया और उस में बहुत से देशों  के राजाओं के साथ- साथ  देवताओ के राजा इंद्र को भी सादर आमंत्रित किया परन्तु राजा इंद्र यज्ञ में शामिल नहीं हुए  । यज्ञ के पूजन समाप्त होने पर राजा सगर ने यज्ञ का घोड़ा छोड़ा  । उस घोड़े को देवताओ के राजा इंद्र ने ईर्ष्य

 के चलते चोरी करके कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।  जब राजा सगर को इस घटना की सूचना मिली तो उन्होंने अपने सभी साठ हजार पुत्रों को घोड़ा खोजने का काम सौपा।  घोड़े को खोजते हुए वे  जब कपिल मुनि के आश्रम पर पहुंचे तो वहाँ उन्हें वह घोड़ा बंधा दिखाई दिया।  ऐसा देखकर राजा सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि पर घोड़ा चोरी का आरोप लगाया  । कपिल मुनि अपने ऊपर झूठा आरोप सुन कर दुखी हुए और क्रोध के कारण उन्होंने अपनी तप शक्ति से राजा के सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया।  जब राजा सगर को इस घटना की जानकारी मिली तो वह तुरन्त कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और कपिल मुनि से अपने पुत्रों को जीवन दान देने की प्रार्थना करने लगे  । राजा सगर के बार बार निवेदन  / याचना करने पर कपिल मुनि ने कहा कि हे राजन ! आप के सभी पुत्रों को अब मोक्ष प्राप्त करने का एक ही उपाय है कि आप स्वर्ग से माँ गंगा को पृथ्वीलोक  पर लाऐं क्योंकि केवल माँ गंगा ही मोक्ष दायिनी हैं।  यह सुन कर राजा सगर के पोते अंशुमन ने माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया और घोर तपस्या में बैठ गया।  दुर्भाग्य से तपस्या करते करते अंशुमन का निधन हो गयि।  तब भागीरथ जी  स्वयं तपस्या पर बैठ गए। उन की कठिन तपस्या से माँ गंगा प्रसन्न हो गईं।  पर उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे आग्रह से चलने को तैयार हूँ परन्तु मेरा वेग इतना अधिक है कि पृथ्वीलोक  में इस से तबाही हो जायगी।  ऐसा सुन कर भागीरथ जी ने भगवान शिव को अपने तप से प्रसन्न किया क्योंकि वह जानते थे कि भगवान शिव के अलावा कोई भी माँ गंगा के वेग को नहीं रोक सकता और न उसे कम कर सकता।  भागीरथ जी के कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माँ गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया, जिस  से माँ गंगा का वेग नियंत्रित हो गया और माँ गंगा सामान्य रूप से पृथ्वी पर कल्याणकारी रूप में अवतरित हो गईं  तथा भागीरथ जी के सभी पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया।  

    माँ गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को गंगाधर नाम  से जाना जाने लगा।  

    ऐसा माना जाता है कि जिस दिन भागीरथ जी के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ वह दिन मकर संक्रान्ति का ही था।  इसीलिए मकर संक्रान्ति को अत्यंत शुभ एवं मंगलकारी दिन माना जाता है  ।

2  –    एक कथा के अनुसार यह भी माना जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव की पूजा की थी और पूजा के लिए उन्होंने काले तिलों का  प्रयोग किया था जिस से भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न हो कर अपने पुत्र शनि देव को वरदान स्वरूप यह कहा था कि जो भी मनुष्य (भक्त) इस दिन तिल का दान करेगा उस की मनोकामनाऐं पूरी होंगी।  

      यह भी माना जाता है कि तिल का दान शनि का दोष दूर करने में सहायक होता है।  शायद इसी कारण मकर संक्रान्ति पर तिल तथा तिल से बने व्यंजन दान किये जाते हैं  । 

3  –     ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में  भीष्म पितामह  को अपनी इच्छा से शरीर त्यागने का वरदान प्राप्त था।  महाभारत युद्ध में भीषण रूप से घायल भीष्म पितामह शरशैया पर पड़े थे।  उनको पता था कि वह इतने ज्यादा घायल हो चुके हैं कि आगे जीवित रहना असंभव है।  इस लिए उन्होंने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रान्ति का दिन निश्चित किया था क्योंकि उन को इस बात का ज्ञान था कि सूर्य दक्षिणायन के काल में जो व्यक्ति देह छोड़ते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त ना होने के कारण पुनः इस पृथ्वी पर (मृत्युलोक में) जन्म लेना पड़ेगा।  

4  –   यह भी पौराणिक मान्यता है कि भगवान आशुतोष  (अर्थात भगवान शिव जी ) ने भगवान विष्णु को आत्म ज्ञान का दान मकर संक्रान्ति के दिन ही दिया था।  यह घटना मकर संक्रान्ति के दिन की महत्ता को दर्शाती है। 

5  –    एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु ने पृथ्वीलोक पर आकर असुरों का वध कर के तथा उन असुरों के सिरों को काट कर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था।  जिस दिन भगवान  विष्णु ने असुरों का वध किया था वह दिन भी मकर संक्रान्ति का था । यह भी कहा जाता है कि तभी से भगवान विष्णु की असुरों पर जीत को मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है। 

मकर संक्रान्ति पूजा विधि  –

     मकर संक्रान्ति के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें तथा नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान की तैयारी करें  ।

     यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या तीर्थ स्थल पर स्नान संभव है तो बहुत उत्तम है अन्यथा अपने घर पर ही स्नान करें  ।

     स्नान करने से पहले यदि संभव हो तो शरीर पर तिल का उबटन लगाऐं।  यह शुभ माना जाता है  ।

      अगर घर पर स्नान कर रहे हैं तो स्नान के जल में कुछ दाने तिल के अवश्य डाल लें  । 

       अगर घर पर गंगाजल उपलब्ध हो तो स्नान के जल में कुछ बूंदे पवित्र गंगाजल की डाल लें। 

      यदि गंगाजल उपलब्ध न हो तो स्नान प्रारंभ करने से पहले निम्न श्लोक बोलकर माँ गंगा का अपने स्नान के जल में आवाह्न करें  –

“नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा। 

विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी  ।।

भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी। द्वादशैतानि नामानि यत्र तत्र जलाशये। ।

स्नानोद्यत स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्  ।।

(अर्थात  – स्नान के समय मेरा जहाँ कहीं कोई स्मरण करेगा,  वहाँ मैं जल में आजाऊंगी  ।)

     स्नान से पहले माँ गंगा का ध्यान सदैव करना चाहिए  ।

     स्नान के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें।  यदि संभव हो तो इस दिन पीले, श्वेत या लाल वस्त्र धारण करें  ।

     स्नान के उपरांत भगवान सूर्य देव को अर्घ्य दें।  अर्घ्य के लिए एक तांबे के लोटे में लाल फूल,  लाल चंदन पाउडर,  कुछ दाने तिल के तथा थोड़ा सा गुड़ अवश्य डालें  ।

     उगते सूर्य को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ होता है  ।

     अर्घ्य देते समय अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर जिधर सूर्य दिखाई दे रहे हैं उधर रखें। 

     सूर्य को अर्घ्य देते समय निम्न मन्त्रों या इनमें से जो भी याद हों उन्हें बोलते हुए सूर्य भगवान को पूरे आदर भाव से अर्घ्य दें  – 

(1) ” ॐ घृणि सूर्य आदित्याय नमः ।”

(2)  ” ॐ सूर्याय नमः,  ॐ आदित्याय नमः ,  ॐ नमो भास्कराय नमः अर्घ्य समर्पयामि  ।।”

(3) “नमस्त्रैलोक्यनाथाय उद्भासितजगत्त्रय  ।

तेजोरश्मे नमस्तुभ्यं गृहाणार्घ्य नमोऽस्तु  ते  ।।”

(अर्थात  – त्रिलोकीनाथ भगवान सूर्य को नमस्कार है।  तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले तेजोरश्मे  ! आप को नमस्कार है। बारंबार नमस्कार है। आप यह अर्घ्य ग्रहण कीजिये। )

    (स्कन्ध पुराण, प्रभास खण्ड)

(4) “ॐ ह्रां  ह्रीं सः सूर्याय नमः। “

(5) “एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते  ।

अनुकम्पय मां देव गृहाणार्घ्य दिवाकर  ।।

इस के बाद सूर्य देव की इस प्रकार प्रार्थना करें  –

अर्चित स्त्वं यथाशक्त्या मया भक्त्या विभो वसो  ।

ऐहिकामुष्मिकीं  नाथ कार्य सिद्धि ददस्य मे  ।। 

(भविष्य पुराण, ब्राह्म पर्व, अध्याय -143 )

(6)  “दिवाकर नमस्तुभ्यं पापं नाशय भास्कर  ।

त्रयीमयाय विश्वात्मन् गृहाणार्घ्य नमोऽस्तु ते  ।।

अर्घ्य देकर सूर्य देवता से प्रार्थना करें –

” नमो नमः पापविनाशाय विश्वात्मने सप्ततुरङ्गमाय  ।

सामग्र्यजुर्धामनिधेविर्धातभर्वाब्धि पोताय नमः सवित्रे  ।।”

     अर्घ्य देने के बाद भगवान सूर्य देव को प्रणाम/ नमस्कार करें  तथा प्रदिक्षणा करें ।

       जब पूजा करने बैठें तो सबसे पहले पूजा स्थल को पवित्र करने के लिए कुछ बूंद गंगाजल की हाथ में लेकर ( अगर गंगाजल न हो तो शुद्ध जल लें )  और यह बोलते हुए छिड़कें  –

“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा  ।

य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचि  ।।

ॐपुण्डरीकाक्षः पुनातु,  ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु , ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु  ।।

     इस के बाद हाथ जोड़कर कर सूर्य देव को नमस्कार करें  तथा पूजन प्रारंभ करें  ।

      पूजा स्थल पर दीपक  / अगरबत्ती जलाऐं और एक थाली में पूजा सामग्री व भोग का सामान रखें तथा एक तांबे के लोटा में शुद्ध जल भरकर रखें। 

      सनातन धर्म में पूजा प्रारंभ करते समय सबसे पहले भगवान श्रीगणेश का ध्यान किया जाता है।  क्योंकि वह प्रथम पूजनीय माने जाते हैं।  अतः सबसे पहले भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक बोलें  –

“ॐ श्रीगणेशाय  नमः ।”

“ॐ गं गणप्तये नमः  ।”

“ॐ एक दन्ताय विविद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि,   तन्नो दन्ति प्रचोदयात् ।”

“ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।

उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ।।”

    भगवान सूर्य देव को भगवान शिव का तीसरा नेत्र माना जाता है अतः सूर्य देवता की आराधना के समय भगवान शिव का ध्यान करते हुए बोलें –

  “ॐ नमः शिवाय  ।”

” ॐ महादेवाय विद्महे,  रुद्रमूर्तये धीमहि,  तन्नो शिव प्रचोदयात्  ।।”

    तत्पश्चात सूर्य देव का ध्यान करें और उन की आराधना करते हुए बोलें  – 

” ॐ सूर्याय नमः।  ॐ आदित्याय नमः।  ॐ सवित्रे नमः।  ॐ मार्तण्डाय नमः ।  ॐ विष्णवे नमः।   ॐ भास्कराय नमः।  ॐ भानवे नमः।   ॐ पूषाय नमः।  ॐ सहस्रकिरणाय नमः।  ॐ सप्तार्चिषे नमः।  ॐ आरोग्यप्रदायाय नमः  ।।”

“ॐ  भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि । तन्नो सूर्य प्रचोदयात्  ।।”

” ॐ नमो नमः कारणकारणाय, नमो नमः पाप विनाशनाय। 

नमो नमः वन्दितवन्दनाय,  नमो नमः रोगविनाशनाय  ।।

नमो नमः सर्ववरप्रदाय, नमो नमः सर्वबलप्रदाय ।

नमो नमः ज्ञाननिधे सदैव नमो नमः पञ्चदशात्मकाय  ।।”

  (भविष्य पुराण, ब्राह्म पर्व,अध्याय 23)

(अर्थात- हे कारणों के कारण, पाप और रोगों के विनाशक,  वन्दितों से भी वंद्य,  पञ्चदशात्मक , सभी के लिए श्रेष्ठ वरदाता तथा सभी को बल प्रदान करने वाले भगवान सूर्य देव  ! आप को सदा बारंबार नमस्कार है  । )

” ॐ सहस्रकिरणोज्ज्वल लोकदीप नमस्तेऽस्तु  नमस्ते कोणवल्लभः ।

भास्कराय नमो नित्यं खखोलकाय नमो नमः।  

विष्णवे काल चक्राय सोमायामिततेजसे  ।।

(अर्थात- हे देवदेवेश ! आप सहस्रो किरणों के प्रकाशमान हैं।  हे कोणवल्लभ ! आप संसार के लिए दीपक हैं।  आप को हमारा नमस्कार है।  आप विष्णु, कालचक्र   अमित तेजस्वी,  सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित हो कर समस्त विश्व को प्रकाशित करने वाले  आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है  ।)

    इस दिन पूजा में आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए और अगर संभव हो तो ‘श्री नारायण कवच’  तथा ‘विष्णु सहस्त्रनाम’  का पाठ करें जो कि अति शुभ फलदायक है।  

     पूजा के पश्चात भगवान श्रीगणेश एवं भगवान सूर्य देव को तिल, गुड़ (तिलकुट) तथा खिचड़ी का भोग लगाऐ।  

    इस के बाद दान के लिए तिल/ रेवड़ी,  मूंगफली, गुड़ ,चावल व मूंग अथवा उर्द की दाल,  वस्त्र तथा कुछ पैसे आदि निकाल कर या तो अपने घर के किसी मान्य को दें  या मन्दिर में दान हेतु भिजवाऐ। 

      पूजा समाप्त होने पर भगवान श्रीगणेश एवं भगवान सूर्य देव की खड़े होकर आरती करें। 

(सूर्य देव की आरती सुविधा से उपलब्ध कराने हेतु नीचे दी गई है। )

     आरती के पश्चात उपस्थित परिवार के सभी लोगों को आरती दें तथा रेवड़ी,  तिल के व्यंजन,  मूंगफली, आदि जो भी भोग में रखा है वह प्रसाद स्वरूप बांटे ।

    अगर इस दिन व्रत रखा है तो नाश्ते (अल्पाहार   –  Middle day tiffin ) में तिल कुट   या तिल के लड्डू आदि जो भी भोग में चढ़या हो,  उन का सेवन करें। 

सूर्य देव की आरती  –

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान। 

जगत के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा, धरत सब ही तव ध्यान ।।

                   ॐ जय सूर्य….

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजा धारी। 

अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे,  तुम हो देव महान।।

                   ॐ जय सूर्य…..

ऊषा काल में जब तुम उदयाचल आते,  सब तब दर्शन पाते। 

फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा । करें सब तब गुणगान  ।।

                   ॐ जय सूर्य….

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते,  गो धन तब घर आते  ।

गौ धूलि बेला में हर घर हर आंगन में, हो तब महिमा गान  ।।

                   ॐ जय सूर्य….

देव दनुज नर नारी ॠषि मुनिवर भजते,  आदित्य हृदय जपते  ।

स्तोत्र यह मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी,  दे नव जीवन दान  ।।

                   ॐ जय सूर्य  …..

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार, महिमा तब अपरंपार  ।

प्राणों का सिंचन करके, भक्तों को अपने देते बल, बुद्धि और ज्ञान  ।।

                     ॐ जय सूर्य….

भूगर्भीय जलचर खेचर सबके हो प्राण तुम्ही  ।

वेद पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें मानें,  तुम ही सर्व शक्तिमान  ।।

                    ॐ जय सूर्य…..

पूजन करतीं हैं दिशाऐं, पूजें दश दिक्पाल, तुम भवनों के प्रतिपाल  ।

ॠतुऐं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी,  शुभकारी अंशुमान ।।

                   ॐ जय सूर्य….

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान,  जगत के नेत्र स्वरूपा  ।

तुम हो त्रिगुण स्वरूपा,  धरत सभी तब ध्यान  ।।

जय हो सूर्य  भगवान 

मकर संक्रान्ति का महत्व  –

   ऐसा माना जाता है कि सूर्य का दक्षिणायन देवताओ की रात्रि माने जाने के कारण नकारात्मकता का द्योतक है तथा सूर्य का इस पर्व से उत्तरायणन होना अर्थात देवताओ का दिवस (दिन) माना जाता है।  अतः सकारात्मक तथा शुभ फलदायक होने का प्रतीक है। 

     मकर संक्रान्ति से सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में संचरण करता है जिस के कारण दिन बड़े होने लगते हैं तथा रातें छोटी होने लगतीं हैं। फलतः जीवन की क्रियाऐं अधिक सक्रिय हो जातीं हैं। 

     इस पर्व के समय किये गए पुण्य कार्य अधिक मंगलकारी तथा शुभ फलदायक होते हैं। 

     मकर संक्रान्ति से मौसम परिवर्तन होने से नई नई अनाज की फसलें किसान अपने अपने खेतों में बोते हैं जिस से फसलें होली के आसपास पक कर तैयार हो जातीं हैं।  और खाद्य अनाज आदि प्रचुरता से उपलब्ध हो जाता है।  अर्थात मनुष्य का जीवन समृद्ध एवं आसान हो जाता है।  

    मकर संक्रान्ति के दिन स्नान करने से पहले कुछ दाने तिल के स्नान के जल में डाल कर स्नान करने से सूर्य की कृपा से कुण्डली के ग्रह दोष दूर हो जाते हैं  ।

     यह त्यौहार अलग अलग नाम से भारत के अलावा अनेकों देशों में मनाया जाता है।  जो इस पर्व के महत्व को विश्व व्यापक सिद्ध करता है  ।