Q.1 माघ पूर्णिमा कब आती है?

माघ मास की पूर्णिमा को माघ पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा कहा जाता है। 

Q.2  माघ पूर्णिमा 2023 कब है ?

वर्ष 2023 में माघ पूर्णिमा दिनांक 4 फरवरी 2023 की रात्रि को 09-44 PM (बजे) से प्रारंभ होकर दिनांक 06 फरवरी 2023 की रात 00 – 12 AM तक रहेगी। 

Q.3 माघ पूर्णिमा किस दिन मनाई जायगी?

उदया तिथि के अनुसार माघ पूर्णिमा दिनांक 05 फरवरी 2023 दिन रविवार को मनाई जायगी। 

Q.4 माघ पूर्णिमा के दिन मुख्यतः किस की पूजा होती है ?

माघ पूर्णिमा के दिन मुख्यतः भगवान श्री हरि विष्णु तथा माँ लक्ष्मी की पूजा होती है। 

Q.5 माघ पूर्णिमा को कहाँ पर स्नान अधिक शुभ माना जाता है ?

माघ पूर्णिमा को पवित्र नदी पर किया गया स्नान अधिक शुभ माना जाता है। 

Q.6 यदि पवित्र नदी पर स्नान संभव ना हो तो क्या करना चाहिए?

यदि नदी पर जा कर स्नान संभव न हो तो घर पर स्नान से पहले पवित्र नदियों का आवाह्न कर के स्नान करना चाहिए  ।

माघ पूर्णिमा के दिन स्नान कर के सूर्य को अर्घ्य दें, पीपल पर जल चढ़ाऐ व दीपक जलाऐं तथा दिन में भगवान विष्णु व माँ लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। इस से समृद्धि व आरोग्य प्राप्त होता है। 

आइए माघ पूर्णिमा तथा इस दिन से संबंधित सभी विशेषताओं,  पूजा विधि तथा पौराणिक कथाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं  ।

हिन्दू कलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह का आखरी दिन पूर्णिमा कहलाता है  अर्थात प्रत्येक माह की पूर्णिमा के अगले दिन से नया माह प्रारंभ होता है। 

इस वर्ष माघ मास की पूर्णिमा दिनांक 04 फरवरी 2023  की रात के 09 – 44 बजे (PM) से लगेगी तथा यह तिथि दिनांक 06 फरवरि 2023  00 – 13 AM पर यानि 05 फरवरी 2023  की मध्य रात्रि के कुछ मिनट बाद तक रहेगी। 

इसलिए उदया तिथि के अनुसार दिनांक 05 फरवरी  2023 को पूरे दिन पूर्णिमा तिथि रहेगी और इसी दिन पूर्णिमा मनाई जायगी।  शास्त्रों के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा अन्य माहों की पूर्णिमाओं के मुकाबले अधिक/ विशेष महत्व वाली एवं शुभ फलदायी मानी गई है। 

ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से आरोग्य प्राप्त होता है तथा पारिवारिक सद्भाव बना रहता है।  ऐसा भी माना जाता है कि माघ माह की पूर्णिमा ( माघी पूर्णिमा) के दिन देवतागण पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने आते हैं। 

माघ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इसीलिए इस दिन पूजा के अलावा भक्त जन भगवान सत्यनारायण की कथा कराते हैं व उसका श्रवण करते हैं  क्योंकि इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा कराना व उसका श्रवण करना बहुत पुण्य फलदायक होता है। 

इस दिन शाम को चन्द्रोदय होने पर चन्द्र देव को अर्घ्य देकर उन का पूजन करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजन करने से मनुष्य की कुण्डली यदि चंद्र ग्रह से पीड़ित या दूषित है तो वह दोष कम हो जाते हैं। 

धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से भी माघ पूर्णिमा का महत्व अन्य पूर्णिमाओं से अति विशेष माना जाता है।  बहुत से भक्त जन तो माघ मास में पूरे माह गंगा किनारे ही प्रवास करते हैं तथा नित्य पुण्य गंगा स्नान करते हैं।  माघ माह में इस प्रवास को कल्पवास कहा जाता है। 

माघ पूर्णिमा के दिन थाईलैंड देश में भी माघ पूजा की जाती है जिसे उन की स्थानीय भाषा में ‘ माखा बुका ‘ या ‘माखा बुका दिवस ‘ कहा जाता है। 

माघ पूर्णिमा की विशेषताऐं  –

ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन स्नान एवं पूजन करने के बाद जो दान  – दक्षिणा दिया जाता है उसका फल 32 गुना अधिक मिलता है।  इसीलिए माघ पूर्णिमा को  ‘बत्तीसी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है ।

ऐसी भी मान्यता है कि माघ माह में  प्रयाग में मात्र तीन बार स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ के फल से भी अधिक फल मिलता है।  इस के साथ यह मान्यता भी जुड़ी हुई है कि माघ माह में सभी देवतागण (जिन में  ब्रह्मा जी,  महादेव जी,  विष्णु जी,  सभी आदित्य एवं मरुदगण आदि सभी शामिल हैं) प्रयाग राज संगम पर उपस्थित रहते हैं  ।

माघ मास में गंगा किनारे प्रवास करने व नित्य गंगा स्नान को कल्पवास कहा जाता है।  मान्यता है कि कल्पवास करने से पापों का नाश होता है तथा मोक्ष प्राप्ति होती है  । 

माघ पूर्णिमा को स्नान के बाद भगवान माधव की पूजा करनै वालों को उनकी कृपा तथा आशीर्वाद प्राप्त होता है और उन्हें जीवन में सुख, सौभाग्य, धन, समृद्धि, अच्छी संतान प्राप्त होती है तथा मोक्ष मिलता है  ।

पद्म पुराण में माघ मास के माहात्म्य के संबंध में उल्लेख मिलता है  –

  “माघे निमग्नाः सलिले सुशीते, विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।”

(अर्थात – पूजा करने से भी भगवान हरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती जितनी कि इस माघ माह में स्नान मात्र से होती है।  इसीलिए सभी पापों से मुक्ति तथा भगवान वासुदेव की प्रीति/ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सभी मनुष्यों को स्नान करना चाहिए ।)

पौराणिक कथाओं प्राप्त उल्लेखों के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा कर्क राशि मे प्रवेश  (संक्रमण) करता है अतः इस पूर्णिमा के दिन पवित्र स्नान करने से सूर्य और चन्द्रमा संबंधित सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 

इस दिन चन्द्र देवता अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण/ शोभायमान होते है तथा अमृत वर्षा करते हैं  ।

माघ पूर्णिमा तिथि एवं शुभ स्नान मुहूर्त  –

माघ पूर्णिमा तिथि आरंभ  – दिनांक 04 फरवरी 2023, दिन शनिवार रात्रि 09 – 21 बजे से ।

माघ पूर्णिमा तिथि समाप्त  – दिनांक 06 फरवरी 2023, दिन सोमवार 00-13 बजे (AM) पर।

उदया तिथि अनुसार माघ पूर्णिमा दिनांक 05 फरवरी 2023 रविवार को मनाई जायगी। 

माघ पूर्णिमा स्नान समय – दिनांक 05 फरवरी 2023 दिन रविवार को

प्रातः 05- 27(AM) से 06-18 (AM) तक ।

माघ पूर्णिमा के दिन दुर्लभ योग  –

इस वर्ष अर्थात सन् 2023 की माघ पूर्णिमा के दिन चार शुभ योग बन रहे हैं जो कि इस प्रकार हैं  –

आयुष्मान योग-  यह योग दिनांक 04 फरवरी 2023 की दोपहर 01 – 53 बजे से दिनांक 05 फरवरी 2023 की दोपहर 02 – 42 बजे तक रहेगा । इस योग की अवधि में पूजा अर्चना करने से साधक को दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा सफलताऐ मिलती हैं। 

रवि पुष्य योग  –  य।यह योग दिनांक 05 फरवरी 2023 को प्रातःकाल 07-10 बजे से दोपहर 12 -13 बजे तक रहेगा। 

सौभाग्य योग  –  यह योग दिनांक 05 फरवरी 2023 को दोपहर 02-42 (PM)  से अगले दिन अर्थात दिनांक 06 फरवरी 2023 की दोपहर 03 – 26 बजे (PM) तक रहेगा। यह योग अपने नाम स्वरूप सौभाग्य वर्धक माना जाता है। 

सर्वाथ सिद्ध योग  – यह योग दिनांक 05 फरवरी 2023 को प्रातःकाल 07 -10 बजे से प्रारंभ होकर दोपहर 12 बज कर 13 मिनट तक रहेगा। 

माघ पूर्णिमा पूजन विधि  –

माघ पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी (ब्रह्म मुहूर्त में) उठें और नित्य कर्म से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी पर स्नान संभव हो तो वहाँ करें अन्यथा घर पर स्नान के जल में कुछ बूंद गंगाजल डाल कर स्नान करें।  अगर यह भी संभव न हो तो माँ गंगा / पवित्र नदियों का आवाह्न कर के ही स्नान करें। 

स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य मन्त्र बोलते हुए अर्घ्य देकर प्रशिक्षणा करें व सूर्य देव को प्रणाम करें  ।

इस दिन अगर व्रत रखना चाहते हैं तो व्रत रखने का संकल्प करें। 

पूजा स्थल पर पवित्रता के लिए कुछ बूंद जल की हाथ में लेकर छिड़कते हुए बोलें  –

“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां वा। 

यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ।।”

पूजा स्थल पर माँ लक्ष्मी व भगवान विष्णु एवं भगवान श्रीगणेश की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और उन का गंगाजल छिड़क कर अभिषेक करें। 

पूजा स्थल पर दीपक जलाऐ। 

तदुपरांत सभी मूर्तियों/ तस्वीरों को तिलक लगाऐ तथा अपने मस्तक पर भी तिलक  लगाऐ।  मूर्तियो को फूल अर्पित करें। 

इस के बाद सबसे पहले भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।  गणेश पूजन के बाद माता लक्ष्मी जी व भगवान विष्णु जी की पूजा करें तथा भगवान शिव व माता पार्वती को भी प्रणाम करें। 

पूजा के पश्चात भगवान श्रीगणेश, माँ लक्ष्मी तथा भगवान श्री हरि की आरती करें। 

आरती के पश्चात भोग लगाऐ। 

सभी उपस्थित परिवार जनो को आरती दें तथा भोग सामग्री प्रसाद रूप बाटें  ।

इस दिन गाय को भोजन अवश्य करायें  तथा सामर्थ्य अनुसार कुछ दान भी करें  ।

सांय काल में चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पूजन करें। इस से अगर कुण्डली में कोई चन्द्र दोष हैं तो उन से मुक्ति मिलती है। 

दिन में या अपराह्न के समय भगवान सत्यनारायण की कथा कराना या उसका श्रवण करना अत्यन्त शुभ एवं पुण्यदायक माना जाता है।

माघ पूर्णिमा की व्रत कथाऐं  –

माघ पूर्णिमा की कथा  -1

पौराणिक कथाओं में एक कथा के अनुसार धनेश्वर नाम का एक गरीब ब्राह्मण कांतिका नामक नगर में रहता था।वह अपना व अपने परिवार का जीविकोपार्जन नगर में भिक्षा मांग कर किया करता था। 

उस ब्राह्मण के कोई संतान नहीं थी।  वह पति- पत्नि अक्सर दोनों ही भिक्षा मागने निकलते थे। एक दिन जब वह नगर में भिक्षा मांगने गये तो कुछ लोगों ने ब्राह्मण की पत्नी को बांझ कह कर ताने मारे तथा बांझ को भिक्षा नहीं देते बोल कर भिक्षा भी देने से इंकार कर दिया। 

इस से वह गरीब ब्राह्मण दंपति बहुत निराश व दुखी हुए।   इस घटना के बाद किसी ने उनको यह सलाह दी कि तुम लोग 16 दिन माँ काली की पूजा करो,  तुम्हारा निश्चित ही लाभ होगा। 

उस गरीब ब्राह्मण परिवार ने सलाह को उचित सोच कर 16 दिन तक नित्य नियम से व बड़े आदर भाव से माँ काली की पूजा करी।  माँ काली उनकी

पूजा से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुईं और ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया तथा यह भी समझाया कि प्रत्येक पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाना तथा प्रत्येक अगली पूर्णिमा पर एक दीपक बढ़ा दिया करना और ऐसा लगातार 32 पूर्णिमा तक करना। 

माँ काली की आज्ञानुसार गरीब ब्राह्मण दंपति प्रत्येक पूर्णिमा को  दीपक जलाना प्रारंभ कर दिया तथा उस दिन व्रत रखना भी शुरु कर दिया।इसका कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि वह ब्राह्मणी कुछ समय पश्चात गर्भवती हो गई तथा समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। 

उस बच्चे का नाम उन्होंने देवदास रखा। देवदास की आयु अधिक नहीं थी।  जब देवदास कुछ बड़ा हुआ तो उसे शिक्षा के लिए अपने मामा के साथ काशी पढ़ाई करने भेज दिया। काशी में देवदास का शीघ्र ही विवाह भी कर दिया। 

परन्तु कुछ समय बाद उस का मृत्यु समय आने के कारण काल उसके प्राण लेने आया। लेकिन जिस दिन काल उसके प्राण लेने आया उस दिन पूर्णिमा का दिन था और उस दिन ब्राह्मण दंपति ने अपने पुत्र के लिए व्रत रखा हुआ था, इस कारण काल चाह कर भी देवदास के प्राण हरण नहीं कर सका और उस को जीवन दान मिल गया। 

पूर्णिमा के दिन पूरे भाव से व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा साधक की मनोकामनाऐं भी पूर्ण होती हैं। 

माघ पूर्णिमा की कथा  -2

एक पौराणिक कथा अनुसार शुभव्रत नाम का एक विद्वान ब्राह्मण नर्मदा नदी के किनारे  रहता था , परन्तु वह ब्राह्मण अत्यंत लालची प्रवत्ति का था ।

उसका लक्ष्य किसी भी प्रकार अधिक से अधिक धन कमाना था। धन कमाने के चक्कर में वह समय से पहले ही शरीर से वृद्ध  दिखाई देने लगा। 

इसी क्रम में धीरे- धीरे उसे कई सारी  बीमारियों ने घेर लिया। जब वह अधिक अस्वस्थ रहने लगा तो उसे यह महसूस होने लगा कि उसने अपना सारा जीवन तो केवल धन कमाने में बिता दिया तथा कोई धर्म का काम कभी नहीं किया तो अब उसके जीवन का उद्धार कैसे होगा। यह सोचकर वह बहुत दुखी व परेशान रहने लगा ।

अचानक उसे अपनी परेशानी के लिए सोचते  – सोचते माघ माह में स्नान का महत्व बताने वाला श्लोक याद आया।  उसने स्नान का संकल्प लेकर वहीं नर्मदा नदी में स्नान करना प्रारंभ कर दिया। 

लगभग 9 दिन के स्नान के बाद, उसके शारीरिक स्वास्थ्य खराब होने के कारण उसकी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई और फलतः उसकी मृत्यु का समय आ गया। 

मृत्यु नजदीक देखकर वह सोच रहा था कि उसने सत्कर्म तो कभी किए नहीं अतः अब नर्क में दुख भोगना पड़ेगा।  

परन्तु ऐसा नहीं हुआ।  उसके द्वारा माघ मास में लगातार 9 दिन तक किए गये पवित्र नदी नर्मदा में किऐ गये स्नान के पुण्य के कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। 

माघ पूर्णिमा की कथा  – 3

एक पौराणिक कथा के अनुसार चिरकाल में एक समय महर्षि नारद क्षीरसागर में भगवान श्रीहरि विष्णु से मिलने  गये।  उस समय भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे। 

अचानक नारद जी को वहाँ आया देख भगवान विष्णु ने नारद जी से पूछा कि महर्षि नारद आपके यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ? 

ऐसा पूछने पर नारद जी ने भगवान विष्णु से बोले कि नारायण प्रभु आप तो जग के पालन हार हैं,  सर्व ज्ञाता हैं। आप मुझे कोई ऐसा सरल उपाय बताए जिस के करने से पृथ्वीलोक के वासियों का कल्याण हो। 

नारद जी द्वारा पृथ्वीलोक के लोगों के कल्याण का उपाय पूछने पर भगवान विष्णु ने कहा कि देवर्षि नारद पृथ्वीलोक पर जो मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगना चाहता है और यह इच्छा करता है कि उसे मरणोपरांत परलोक प्राप्त हो।

तो उसे अपने जीवन काल  में भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा और व्रत करने चाहिए तथा श्री सत्यनारायण की कथा का पाठ या श्रवण जरूर करना चाहिए।  भगवान श्री हरि विष्णु की यह उपाय सुन कर नारद जी ने भगवान विष्णु से इस व्रत की विधि बताने का अनुग्रह किया। 

ऐसा आग्रह सुन कर भगवान विष्णु ने बताया कि इसे करने के लिए साधक को दिन में उपवास रखना चाहिए और संध्याकाल में किसी पंडित को बुलाकर सपरिवार सत्यनारायण की कथा का श्रवण करना चाहिए। 

कथा के दिन भगवान के लिए भोग में चरणामृत,  पान, तिल,  मौली,  रोली, कुमकुम, फल, पंचगव्य, सुपारी, तथा दुर्वा आदि अर्पित करे।  इस से भगवान सत्यनारायण देव  प्रसन्न होते हैं।