हिन्दू धर्म में सुहागिन स्त्रियों के लिए वर्ष में एक ही वृत अत्यंत महत्वपूर्ण/ बेहद खास माना जाता है वह है करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Fasting)  इस दिन सभी सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु की कामना से यह व्रत रखती हैं।  ऐसा भी देखने को मिलता है कि कहीं- कहीं अविवाहित कन्याऐं भी इस व्रत को अच्छे वर की कामना से रखतीं हैं

विवाहित व अविवाहित कन्याये कैसे खोलती हैं व्रत?

करवा चौथ को सुहागिन स्त्रियाँ सुबह सूर्योदय से शाम/ रात्री में चन्द्रोदय तक निराहार एवं निर्जला व्रत रखती हैं  तथा रात में चन्द्रमा की पूजा तथा अर्घ्य आदि देकर इस व्रत को खोलती हैं , जबकि अविवाहित कन्याऐं शाम को तारे का दर्शन करके अपना व्रत खोलती हैं  ।

करवा चौथ व्रत कयों किया जाता है? “Karwa Chauth ki Katha”

पुराणों में यह अभिलेख मिलते हैं कि एक समय की बात है जब महान पतिव्रता सती सावित्री के पति सत्यवान को उनके विवाह के मात्र एक वर्ष बाद जब यमराज उन्हें धरती पर आऐ तो सत्यवान की पत्नी माता सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लेने की प्रार्थना की और कहा कि यमराज जी उसके पति के प्राण वापस कर उसके सुहाग को वापस लौटा दें।

परन्तु प्रथानुसार यमराज ने माता सावित्री की बात नहीं मानी। अंततः माता सावित्री ने अन्न जल आदि सब कुछ त्याग कर अपने पति सत्यवान के मृत शरीर के पास बैठकर घोर विलाप करने लगी।  काफी समय तक सावित्री का ऐसा हाल देखकर यमराज को सावित्री पर दया आ गई और उनसे सत्यवान के प्राणों के अलावा वर मांगने को कहा।  ऐसा सुन कर सावित्री ने यमराज से कहा  –

” वरयामि त्वया दत्तं पुत्राणां शतमौरसम्  ।

अनपत्य लोकेषु गतिः किल न विद्यते ।।”

(अर्थात,  हे देव !  मैं अपनी कोख से उत्पन्न होने वाले सौ पुत्रों का वरदान आपसे मांगती हूँ  क्योंकि लोकों में पुत्रहीन की सद्गति नहीं होती। )

सावित्री के ऐसा कहने पर यमराज बोले  –

” स्तवेन भक्त्या मया तुष्टेन सत्यवान  ।

तव भर्ता विमुक्तऽयं  लब्धकामा व्रजाबले  ।।”

(अर्थात  तुम्हारी स्तुति और भक्ति से संतुष्ट होकर मैंने तुम्हारे पति को विमुक्त कर दिया है। )

माता सावित्री एक पतिव्रता नारी थी और अपने पति सत्यवान के अलावा वह किसी की सोच भी नहीं सकती थी। इसलिए अंततः यमराज को भी सावित्री के आगे झुकना पड़ा और सत्यवान के प्राण विमुक्त कर दिऐ। 

तभी से अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए सभी विवाहित महिलाऐं माता सावित्री का अनुसरण करते हुए प्रति वर्ष करवा चौथ का व्रत रखतीं हैं।

करवा चौथ क्या है? What is Karwa Chauth?

हिन्दू नारियों का करवा चौथ एक प्रमुख एवं अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है।  इसे कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सभी सुहागिन नारियों द्वारा मनाया जाता है। 

यह व्रत प्रातः सूर्योदय से पहले प्रारम्भ होकर रात को चन्द्र उदय होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके उन्हें दीपक से पूजकर व अर्घ्य देकर पूरा होता है।  सभी सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घ आयु के लिए इस व्रत को बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ रखती हैं। 

करवा चौथ का व्रत कब रखा जाता है? When does keep fast of Karwa Chauth?

शास्त्रों के अनुसार ये करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन किया जाता है ।स्त्रियाँ अपने अखंड सौभाग्य एवं अपने पति की दीर्घ आयु के लिए इस शुभ अवसर पर भगवान श्री गणेश एवं शिव परिवार की पूजा करती हैं। 

करवा चौथ व्रत में दिन भर निर्जला उपवास रखकर रात में चन्द्रमा उदय होने पर उसे अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करने का विधान है। सामान्यतः सभी स्त्रियाँ निर्जला एवं निराहार व्रत करती हैं और चन्द्रमा उदय होने के बाद अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं।

व्रत खोलते समय पति अपनी पत्नी को थोड़ा सा जल पीने के लिए हथेली में देता है और पूछता है  -‘व्रत खुला ‘ और पत्नी बताती है कि ‘व्रत खुला ‘। यह प्रक्रिया तीन बार दोहराई जाती है । तदुपरांत पत्नी अपने पति के चरण स्पर्श करती है। 

करवा चौथ उपवास/ व्रत की यह विशेषता है कि केवल सौभाग्यवती नारियाँ चाहे वह किसी आयु, जाति अथवा सम्प्रदाय की हों,  वह सभी अपने पति की दीर्घ आयु के लिए यह व्रत रखती हैं  । 

करवा चौथ इस वर्ष 2022 में कब है? “When is Karwa Chauth in 2022?”

 इस वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि दिनांक 13 अक्टूबर 2022 दिन गुरुवार (अर्थात ब्रहस्पतिवार) को पड़ रही है।

करवा चौथ के शुभ मुहूर्त  “Shubh Muhurt of Karwa Chauth”

चतुर्थी तिथि आरंभ – 13 अक्टूबर 2022,  प्रातः 01- 59 AM से

चतुर्थी तिथि समापन  – 14 अक्टूबर 2022, प्रातः 03 – 08 AM पर ।

करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त  – 13 अक्टूबर 2022, सांय 06 – 01 PM से 07 – 15 PM तक। 

करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय का समय   –  इस वर्ष करवा चौथ वाले दिन चन्द्रोदय 13 अक्टूबर  2022 की रात  08 – 19 PM पर होगा। 

इस वर्ष करवा चौथ अर्थात दिनांक 13- अक्टूबर  2022 को रोहिंणी नक्षत्र का कृतिका नक्षत्र के साथ सिद्धि योग बन रहा है। 

करवा चौथ को किन-किन नामों से जाना जाता है? Names of Karwa Chauth

हिन्दी  में  –   करवा चौथ;

संस्कृत में  –  करक चतुर्थी  ;

तेलगू  में   –   अट्ल तद्दि ;

कुछ स्थानों पर इस पर्व को करवा गौर भी कहा जाता है ।

करवा चौथ की पूजा विधि Karwa Chauth Puja Vidhi

करवा चौथ का व्रत कैसे करें? (How to keep fast on Karwa Chauth) यह प्रश्न कई बार उन महिलाओं के मन में जरूर आता है, जो अभी तक करवा चौथ का व्रत नहीं नहीं रख पायीं हैं।

प्रातःकाल उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। 

पूजा  के  मन्त्र  -(Karwa Chauth Ke Puja Mantra)

  • स्नान के बाद पूजाघर की सफाई करके वहाँ दीपक जलाऐं और अपने देवी-देवताओ की पूजा अर्चना करें तथा निर्जला व्रत का संकल्प लें  ।
  • पूजा की थाली में धूप-दीप चन्दन रोली सिंदूर आदि रखें। 
  • शाम की पूजा के लिए पीली मिट्टी की गौर बनाए और मिट्टी से गणपति बनाकर गौर की गोद में बैठाऐं  ।
  • पूजा के शुभ मुहूर्त में,  जो कि सामान्यतः शाम के समय होता है,  घर की सब महिलाऐं जिन्होंने व्रत रखा है, मिलकर पूजा करें तथा करवा चौथ की कहानी सुनें/ सुनाऐं  ।
  • पूजा करते समय पहले श्री गणेश जी की पूजा करें तत्पश्चात माता पार्वती,  भगवान शिव, तथा कार्तिकेय की पूजा करें। 
  • रात को चन्द्रमा का दर्शन छलनी द्वारा करें तथा दर्शन कर चन्द्रमा को अर्घ्य दें तथा उस की पूजा करें। 
  • इसके बाद व्रत खोलें तथा व्रत खोलने के बाद घर के सभी बुजर्गों का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें  ।

करवा चौथ को कौन से देवी – देवताओं की पूजा होती है?

करवा-चौथ की पूजा में मुख्यतः शिव परिवार की पूजा होती है। पूजा निम्न मन्त्रों से करें  –

 गणेश जी   –         ऊँ गणेशाय नमः  ,

 माता पार्वती जी  – ऊँ शिवायै नमः 

 भगवान शिव  –     ऊँ नमः शिवाय 

 स्वामी कार्तिकेय – ऊँ षण्मुखाय नमः

 चन्द्रमा     –          ऊँ  सोमाय नमः 

करवा चौथ में सरगी “Karwa Chauth Mein Sargi”

पंजाब प्रांत में करवा चौथ का यह त्यौहार सुबह सूर्योदय से पहले सरगी के साथ प्रारंभ होता है। सरगी में घर की वृद्ध महिलाऐं  (सास आदि) व्रत रखने वाली महिलाओं को सुबह उठकर सरगी (भोजन/ नाश्ता) बनाती हैं और घर में जिन महिलाओं को करवा चौथ का व्रत रखना है उन्हें सूर्योदय से पहले सरगी खिलाती हैं। शायद यह इसलिए किया जाता है कि जिससे व्रत का कोई विपरीत असर व्रत रखने वाली महिला पर ना पड़े ।

आजकल कुछ राज्यों की नई पीढियों ने भी इस प्रथा को अपनाना शुरू कर दिया है। 

करवा चौथ वाले दिन सभी महिलाऐं दिन में अपने हाथों पर मेंहदी लगाती हैं और शाम को अच्छे से श्रृंगार करती हैं तथा सजती संवरती हैं। श्रृंगार के बाद शाम की पूजा करती हैं जिसमें गौर की पूजा होती है तथा शिव परिवार का पूजन होता है। 

महिलायें इसी समय करवा चौथ की कहानी सुनती हैं। अगर घर में कई महिलाऐं हों तो सब एक साथ यह पूजा आदि करती हैं और उन में से एक महिला करवा चौथ की कहानी सुनाएगी और बाकी सब सुनेंगीं। कहीं-कहीं तो आस पास की महिलाएं एक साथ मिलकर कहानी सुनती हैं और उसके बाद चाँद निकलने का इन्तजार करतीं हैं। 

करवा चौथ की व्रत कथा  “Karwa Chauth Vrat Katha”

 पौराणिक लेखों में करवा चौथ की कई कथाऐं मिलती हैं।  –

i) “वीरवती की कथा  –

शाकप्रस्थपुर निवासी एक वेदधर्मा ब्राह्मण की पुत्री जिसका नाम वीरवती था, उसने करवा चौथ का व्रत रखा था।  प्रथानुसार उसे चन्द्रमा निकलने के बाद अर्घ्य देकर तथा व्रत खोल कर रात्री में भोजन करना था।

परन्तु उससे भूख नही सही जा रही थी, इसलिए बहुत व्याकुल हो रही थी।  उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होने पीपल की ओट में आतिशबाजी की रोशनी फैलाकर चन्द्रोदय दिखा दिया और अपनी बहन वीरवती को भोजन करा दिया। 

इसका परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। रोती बिलखती वीरवती ने एक साल तक हरेक चतुर्थी को व्रत रखा।  अगली करवा चौथ के दिन भी विधि-विधान से व्रत किया तो उस की इस तपस्या से उसका पति उसे पुनः प्राप्त हो गया ।”

ii)  अन्य कथा

“एक समय की बात है कि एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम करवा था,  अपने परिवार के साथ एक नदी के किनारे एक गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति स्नान करने नदी पर गया।  जब वह स्नान कर रहा था तो एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया।  वह जोर- जोर से करवा  – करवा चिल्ला कर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा। अपने पति की आवाज सुन कर करवा नदी की ओर दौड़ी चली गई और  वहाँ पहुँच कर मगर को एक धागे  से बांध दिया।  मगरमच्छ को बांध कर करवा यमराज के पास गई  और उनसे कहा- हे भगवन  ! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है अतः इस अपराध के लिए आप अपने बल से उस मगरमच्छ को नरक में लेजाओ।  यमराज ने कहा कि अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। ऐसा सुन कर करवा बोली अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूंगी। 

यह सुन कर यमराज डर गये और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी।  

हे करवा माता ! जैसे तुम ने अपने पति की रक्षा की,  वैसे ही सबके पतियों की रक्षा करना।  “

iii)  द्रौपदी  की  कथा  – 

“एक समय की बात है जब नीलगिरि पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गये थे ।उस समय किसी कारणवश उन्हें वहाँ रुकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। संकट से विचलित हो द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होने पर द्रोपदी ने पांडवों पर आऐ संकट/ कष्टों से निवारण पाने का उपाय पूछा। 

ऐसा सुन कर भगवान श्रीकृष्ण बोले  –  हे द्रोपदी ! मैं तुम्हारी चिन्ता व संकट का कारण जानता हूँ।  तुम्हे इस के लिए एक उपाय करना होगा।  शीघ्र ही कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है,  उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना,  भगवान शिव,  पार्वती एवं गणेश की उपासना करना,  तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे और सब कुछ ठीक हो जायगा। 

श्रीकृष्ण जी की सलाह का द्रोपदी ने पालन किया तथा पूरे मन से करवा चौथ का व्रत किया।  तब द्रौपदी को शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुऐ और उस की सारी चिन्ताऐं दूर हो गईं।”

iv) आजकल प्रचलित करवा चौथ व्रत की कथा  –

पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक साहूकार के सात बेटे और एक बहन करवा थी।  सातों भाई अपनी बहन को बहुत प्यार करते थे। एक बार उनकी बहन सुसराल से मायके आई हुई थी।  एक दिन शाम को जब भाई लोग अपने काम से वापस आए तो उन्होंन देखा कि बहन भूख से बहुत व्याकुल है तो बहन ने बताया कि उसका करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही खाना खाएगी। 

सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की व्याकुल हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर कर छलनी की ओट में रख आया जो दूर से देखने में चतुर्थी के चाँद जैसा लग रहा था। और आकर बहन को बताया कि चंद्रमा उदित हो गया है। बहन खुशी से चाँद को देखकर व अर्घ्य देकर भोजन करने बैठ जाती है। 

जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुह में डालती है तो उसे छींक आती है, जब दूसरा टुकड़ा मुख में डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जब तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने को होती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है और वह दुख से विलख उठती है। 

करवा की भाभी ने उसे बताया कि ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उस से नाराज होगये हैं और उन्होंन ऐसा किया है 

यह जानने के बाद करवा ने निश्चय किया कि वह अपने पति का अन्तिम संस्कार नहीं होने देगी तथा अपने सतित्व से उन्हे पुनर्जीवन दिला कर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रही व मृत शरीर की देखभाल करती रही। 

मृत शरीर पर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती रही।  एक साल बाद जब फिर करवा चौथ का दिन आया तो उस की सभी भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आईं तो वह प्रत्येक भाभी से बोलती,  – यम सूईं ले लो, पिय सूईं दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो।

लेकिन हर भाभी अगली भाभी से आग्रह करने को कह कर चली जाती।  इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आई तो करवा ने उस से वैसा ही कहा। तब उस की छठी भाभी ने बताया कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उस की पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को जीवित कर सकती है , इसीलिए जब वह आये तुम उसे पकड़ लेना और जब तक तुम्हारे पति को जिंदा ना कर दे उसे नहीं छोड़ना। 

अन्त में जब छोटी भाभी आई तो करवा ने उस से भी उसे सुहागिन बनाने का आग्रह किया,  लेकिन वह टाल-मटोल करने लगी।  तब करवा ने उसे जोर से पकड़ लिया और अपने सुहाग को जिन्दा करने का बार-बार आग्रह करने लगी। 

अन्त में उसकी तपस्या को देखकर छोटी भाभी पसीज गई और अपनी छोटी अंगुली चीर कर उसमें से अमृत उसके पति के मुह में डाल दिया।  करवा का पति तुरन्त श्री गणेश – श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठा।  इस प्रकार प्रभू की कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल गया। 

हे श्री गणेश जी !  हे माँ गौरी  ! जिस प्रकार करवा को सुहागिन का वरदान आपसे मिला है वैसा ही सभी सुहागिनों को मिले  ।

करवा चौथ के दिन ये काम ना करें –

• देर तक  या दिन में ना सोयें। 

• सुहाग की वस्तुऐं दान ना करें। 

• किसी से सिंदूर मांग कर ना लगाऐं ।

• इस दिन सफेद चीजों का दान नहीं करना चाहिए। 

 • इस दिन कोई झगड़ा/ विवाद ना करें। 

 • इस दिन सिलाई- कढ़ाई ना करें