कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima / Dev Deepawali) को पूरे भारत में एक पवित्र पर्व के रूप में मनाया जाता है। हालांकि पूरा कार्तिक माह बहुत पवित्र माना जाता है और इस माह में लोग विशेषकर स्त्रियाँ नित्य भोर में स्नान करके अपने तथा अपने परिवार के उज्जवल भविष्य के लिए पूजा अर्चना करती हैं।
ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास में, विशेषकर कार्तिक मास की पूर्णमा तिथि को स्नान आदि करके पूजा करने से शीघ्र ही लाभ/ फल प्राप्त होता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन अर्थात कार्तिक पूर्णिमा के दिन, इस पृथ्वी की रक्षा के लिए, भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार के रूप में जन्म लिया था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु का विशेष पूजन होता है।
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा (Kartik Purnima / Tripuri Purnima) भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर उसका संहार किया था। इसी कारण कार्तिक पूर्णिमा का नाम त्रिपुरी पूर्णिमा पड़ा। इस दिन तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा को ‘महाकार्तिकी ‘ माना जाता है। इस दिन भरणी नक्षत्र होने पर इस पूर्णिमा का महत्व और बढ़ जाता है। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र पड़ रहा है। जब इस दिन रोहिणी नक्षत्र होता है तो इसका महत्व कुछ खास हो जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का समय / मुहूर्त – (Kartik Purnima Muhurt)
पूर्णिमा आरंभ – 07 नवंबर 2022 शाम 04-31 PM से
पूर्णिमा समाप्त – 08 नवंबर 2022 शाम 04-31 PM तक।
तिथि उदय के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, (Kartik Purnima Ka Vrat) स्नान दिनांक 08 नवंबर 2022 को मान्य होगा।
स्नान के लिए शुभ ब्रह्म मुहूर्त –
08 नवंबर 2022 प्रातः 04-57 AM से 05- 49 AM तक ।
कार्तिक पूर्णिमा स्नान में यह ध्यान रखें –
इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करें। (Kartik Purnima Snan) यदि गंगा के अलावा किसी और नदी में स्नान कर रहे हैं तो स्नान करते समय माँ गंगा का ध्यान करें ।
यदि स्नान के समय नदी पर जाना संभव ना हो तो सुबह-सुबह घर पर ही स्नान करें। घर पर स्नान करते समय या तो कुछ बूंदें गंगाजल की अपने स्नान के जल में मिलाऐं अन्यथा यह बोलते हुए माँ गंगा / पवित्र नदियों का आवाह्न करें –
” गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति ।
नर्मदे सिंधु कावेरी जले अस्मिन सन्निधिं कुरुम् ।।”
पद्म पुराण ( उत्तर खण्ड, अध्याय 95) में उल्लेखित विधान के अनुसार स्नान प्रारंभ करने से पहले भगवान विष्णु को याद करते हुए निम्न श्लोक बोलते हुए भगवान विष्णु को जल का अर्घ्य दें ( जल अर्पित करें ) –
“नमः कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने।
नमस्तेऽस्तु हृषीकेष गृहाणार्घ्य नमोऽस्तु ते।।”
इस के बाद भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी को यह बोलकर थोड़ा सा जल अर्पित करें (अर्घ्य दें) –
“नित्ये नैमिन्तिके कृष्ण कार्तिके पापनाशने।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे ।।”
अब भगवान शिव, विष्णु जी, माँ भागीरथी (गंगा ), एवं सूर्य देव का स्मरण कर स्नान करें ।
स्नान पूर्ण होने पर सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें । तदुपरांत शिव लिंग पर ‘ऊँ नमः शिवाय ‘ बोलते हुए जलाभिषेक करें ।
अंत में सभी देवी देवताओं का स्मरण करते हुए नारद पुराण के उत्तर भाग (अध्याय 43 ) के निम्न श्लोक को बोलकर देवी देवताओं को नमन करें –
“त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं हि नारायणः प्रभुः ।
गंगे त्वं परमात्मा च शिवस्तभ्यं नमो नमः ।।”
कार्तिक पूर्णिमा को मनाऐ जाने वाले अनुष्ठान –
कुछ अन्य अनुष्ठान भी कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima Ke Anushtthan) के दिन मनाऐ जाते हैं जैसे कि कुछ समुदायों द्वारा इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन पूरे विधि-विधान तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।
वैसे भी इस दिन तुलसी की पूजा तो अवश्य ही करनी चाहिए और संध्या को तुलसी के पास दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। दीपक जला कर तुलसी के पौधे की चार परिक्रमा यह बोलकर करनी चाहिए –
“देवी त्वं निर्मिता पूर्वमार्चितासि मुनीश्वर ।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।”
इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा कराना बहुत पुण्यदायक माना जाता है ।
आषाढ माह से प्रारंभ होकर चार माह तक चलने वाला चतुर्मास इस दिन समाप्त होता है। इस का समापन उत्सव लोग घर के बाहर, नदियों पर, तथा मन्दिरों में दीप जलाकर बड़े उल्लास से ‘दीप दिवाली’ के रूप में मनाते हैं ।
महाराष्ट्र प्रदेश में कार्तिक पूर्णिमा (Katik Purnima Teerth Yatra) के दिन बहुत सी तीर्थ यात्राऐं आयोजित की जाती हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिख समुदाय बड़े हर्षोल्लास के साथ सिख धर्म के प्रवर्तक एवं प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव ‘प्रकाश पर्व ‘ के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाते हैं तथा इस दिन बड़े- बड़े सामाजिक लंगर आयोजित करते हैं ।
कार्तिक पूर्णिमा पर मन्त्र जाप –
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima Mantra Jaap) के दिन लोग स्नान ध्यान से निवृत्त होकर कुछ विशेष मन्त्रों का जाप करते हैं जिस से कि ईश कृपा शीघ्र प्राप्त हो सके। मन्त्र इस प्रकार हैं –
“ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः ।।“
ऊँ सों सोमाय नमः
ऊँ विष्णवे नमः
ऊँ कार्तिकेय नमः
ऊँ वृन्दाय नमः
ऊँ केशवाय नमः
कार्तिक पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा है (Kartik Purnima Katha) कि एक समय तारकासुर नाम का एक राक्षस था जिसके तीन पुत्र थे, जिन का नाम तारकक्ष, कमलाक्ष , तथा विद्युन्माली था। तारकासुर का वध भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने किया था।
अपने पिता की हत्या की सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। उन तीनों ने मिलकर ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। तीनों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने साक्षात दर्शन दिये और मनचाहा वर मांगने के लिए कहा । इस पर तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर रहने का वरदान मांगा ।
इस पर ब्रह्मा जी ने उनसे इसके अलावा कोई दूसरा वर मांगने को कहा। तीनों भाइयों ने इस पर विचार किया और बोले कि हम तीनों के लिए अलग- अलग नगर का निर्माण करा दें , जिसमें बैठकर संपूर्ण पृथ्वी व आकाश पर घूमा जा सके।
एक हजार साल बाद जब। हम मिलें तो हमारे तीनो के नगर मिलकर एक हो जायें तथा जो देवता एक ही वाण से हम तीनो को मार सके, वह हमारी मृत्यु का कारण बने। ब्रह्मा जी ने वर प्रदान करते हुए तथास्तु बोला।
तीनों भाई वरदान पा कर बहुत खुश हुऐ। ब्रह्मा जी की आज्ञा पर मय दानव ने उन तीनों के लिए तीन नगरों का निर्माण कराया। इस के पश्चात तीनों राक्षसों ने मिलकर देवताओ से युद्ध कर के तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया।
इन्द्र आदि देवता सभी इन राक्षसों से बहुत भयभीत हो गए। सभी देवता इस समस्या से निजात पाने के लिए भगवान शिव के पास गए। देवताओ की समस्या सुन कर भगवान शिव ने इन तीनों राक्षसों का नाश करने का आश्वासन दिया और एक दिव्य रथ का निर्माण कराया।
इस रथ की हर चीज देवताओ से बनी थी। इस में सूर्य और चन्द्रमा पहिये बने, इन्द्र, वरुण,कुबेर व यम रथ के चार घोड़े बने हिमालय धनुष बने तथा अग्निदेव वाण की नौक बने। इस दिव्य रथ पर स्वयं भगवान शिव सवार हुए।
भगवान शिव तथा तीनों राक्षस भाईयों के साथ भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही तीनों भाई दिव्य रथ की एक सीध में आऐ, भगवान शिव ने वाण छोड़ कर तीनों का संहार कर दिया। यह घटना कार्तिक मास की पूर्णामा को हुई थी। इसीलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा से जाना जाने लगा ।
कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधि –
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima Pujan Vidhi) को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है अतः इस दिन किसी नदी के घाट पर दीप दान करना चाहिए और अगर यह संभव ना हो तो घर पर ही दीपक जलाऐ। यह बहुत शुभ होता है ।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र स्नान करना चाहिए। अगर घर पर स्नान कर रहे हैं तो स्नान के जल में थोड़ा सा गंगाजल डालें अन्यथा श्लोक बोलकर माँ गंगा का आवाह्न कर स्नान करें।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखे तथा भगवान विष्णु की पूजा / ध्यान करें।
श्री हरि का तिलक करने के बाद धूप, दीपक, फल,फूल, नैवेद्य आदि से पूजन करें। भगवान के लिए आटे को देसी घी में भून कर कसार बनाऐ तथा चरणामृत चढाऐं।
तुलसी के पास दीपक जलाऐं।
पूजा प्रारंभ करते समय पहले भगवान श्रीगणेश को प्रणाम करें, उस के पश्चात माँ लक्ष्मी व भगवान विष्णु को पूजा कर आरती करें।रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व –
कार्तिक पूर्णिमा एक बहुत पवित्र पर्व है। (Kartik Purnima Ka Mahatva) इस दिन कोई भक्त यदि किसी पवित्र नदी में स्नान करता है या या अपने घर पर पवित्र नदियों का आवाह्न करके स्नान करता है व श्रद्धा भाव से पूजा करता है तो उस की कुण्डली के दोष दूर हो जाते हैं तथा समस्याओं से शीघ्र राहत मिल जाती है।
हिन्दु मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान ब्रह्मा जी राजस्थान के पुष्कर स्थित ब्रह्म सरोवर में अवतरित हुए थे। इसीलिए इस दिन इस सरोवर में स्नान करना बहुत शुभ व फलदायी माना जाता है । कार्तिक पूर्णमा के दिन पुष्कर में ब्रह्मा जी के पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है ।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार माता तुलसी वैकुण्ठ धाम में कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकट हुई थी और फिर उन का जन्म पृथ्वी पर हुआ। इसीलिए इस दिन तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है ।
इस दिन चतुर्मास का समापन होता है और साथ ही साथ कार्तिक माह के सभी अनुष्ठान इस दिन पूरे होते हैं और बड़े हर्षोल्लास के साथ देव दीवाली मनाई जाती है। सभी लोग इस में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन देश की लगभग सभी प्रमुख नदियों के तट पर जनता हजारों/ लाखों की संख्या मे पवित्र स्नान के लिए एकत्र होती है और शुभ ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र स्नान करते हैं ।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करें ?
Kartik Purnima Ko Kya Karna Chahiye?
इस दिन पूरे घर की साफ सफाई करें। ऐसा माना जाता है कि स्वच्छ घर में लक्ष्मी जी प्रवेश करतीं हैं ।
इस दिन अपने घर को फूल माला से सजाऐं।
अपने घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का चिंह अवश्य बनाएं ।
इस दिन भगवान शिव, विष्णु, लक्ष्मी जी व तुलसी की पूजा अवश्य करें ।
इस दिन दीप दान करें व अपने घर के बाहर दीपक अवश्य जलाऐं । इस से घर की परेशानियाँ दूर होती हैं व समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
इस दिन चावल, चीनी व दूध का दान शुभ माना जाता है ।
इस दिन चन्द्रमा का दर्शन अवश्य करें ।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या ना करें ?
इस दिन या तो व्रत रखें अन्यथा सात्त्विक भोजन करें ।
किसी प्रकार के नशीलै पदार्थ का सेवन ना करें ।
अपने घर को साफ सुथरा रखें ।
किसी के प्रति द्वेष भाव ना रखें।