भारतीय संस्कृति में त्यौहारों को बड़ी श्रद्धा एवं धूमधाम से मनाया जाता है। इनमें से विशेषकर कुछ त्यौहारों को जैसे – होली, दिवाली, दशहरा, रक्षाबंधन आदि अधिक जोश व उमंग के साथ सभी परिवार मनाते हैं।
त्यौहार के दिन सामान्यतः सभी परिवारों में बड़ी प्रसन्नता व उत्साह देखने को मिलता है। सबसे अधिक उमंग व उत्साह, चाहे बच्चे हों या बड़े /बुजुर्ग, सभी में होली के त्यौहार की खुशी दिखाई देती है।
इस पर्व पर लोग जाति, धर्म, उम्र आदि का कोई भेद नहीं मानते। यहाँ तक कि जिन परिवारों / लोगों में किसी कारणवश द्वेष या अनबन होती है वह भी इस त्यौहार पर अपने सब द्वेष या आपसी झगड़े भूलकर आपस में बड़े प्रेम से होली खेलते हैं।
होली की तैयारी कैसे करते हैं ?
होली के त्यौहार की तैयारी का प्रारंभ बसंत पंचमी से अर्थात 40 दिन पहले शुरू हो जाता है। परंपरागत रिवाजों के अनुसार बसन्त पंचमी के दिन सभी प्रदेशों, गांव, मौहल्ले आदि में होली रखे जाने का विधान है।
प्रत्येक इलाके या बस्ती में जहाँ भी प्रति वर्ष होली जलाई जाती है वहाँ बसंत पंचमी के दिन आवश्यकरूप से कुछ लकड़ियां आदि होली के स्थान पर रख दीं जातीं हैं। इस दिन होली रखना शुभ माना जाता है ।
इस दिन के 40 दिन के बाद सदैव होली का त्योहार मनाया जाता है। इस 40 दिन के मध्यान्तर में गांव / मौहल्ले के बच्चे जैसे भी संभव हो इधर-उधर से लकड़ी काट कर होली पर डालते रहते हैं ।
फलतः होली खूब बड़ी हो जाती है । जहाँ यह संभव नही होता है, वहा पर उस इलाके के लोग होली से 2 -3 दिन पहले आपस में चंदा कर के जो भी धन इकट्ठा होता है।
उस से होली के लिए लकड़ियाँ/ उपले लाकर होली पर रखते हैं तथा इस एकत्र धन में से ही होलीका दहन के दिन के लिए प्रसाद (मिठाई आदि) तथा होली मिलने के लिए गुलाल आदि लाते हैं।
सभी हिन्दू परिवारों में होली का पर्व आने से पहले उस दिन खुशियाँ मनाने के लिए घर की स्त्रियाँ होली से पहले ही बहुत सारी खाने पीने की चीजें बनातीं हैं
यह एक सामान्य परंपरा है। होली के हफ्तों पहले आलू के पापड़, चिप्स बनाना, चावल की कचरी बनाना आदि लगभग सभी घरों में देखा जाता है।
इस के अलावा होली के दिन के लिए घरों में कांजी के बड़े तथा गाजर का पानी वाला अचार डाला जाता है।तथा हर घर में गुंजिया बनाई जाती हैं व दही भल्ले भी बनाए जाते हैं।
होलिका दहन से अगले दिन अर्थात धूल वाले दिन जो भी होली मिलने/ खेलने आता है उनको यह सभी व्यंजन खाने को दिये जाते हैं जो कि बहुत जायकेदार होते हैं। इस दिन दूध डाल कर ठन्डाई बनाना व सबको पिलाना भी एक आम परंपरा है।
होली के अन्य नाम –
सामान्यतः जिस दिन होली जलाई जाती है उस दिन को होली या छोटी होली बोला जाता है। तथा उस से अगले दिन अर्थात जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन को होली, धूल, धुलेंडी, छारंडी (राजस्थान में) , दोल आदि नामों से भिन्न-भिन्न स्थानों पर पुकारा जाता है ।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में याओ सांग के नाम का त्यौहार होली के समान ही मनाया जाता है। इस का मुख्य कारण यह है कि मणिपुर राज्य एक कृष्ण भक्ति बाहुल्य राज्य है अतः जहाँ भगवान कृष्ण को माना जाता है वहाँ होली का पर्व (चाहे किसी रूप में हो) होना उस संस्कृति का एक अंग ही है।
पंजाब के आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन होला मौहल्ला मेला लगाया जाता है ।
होली कैसे मनाते हैं ?
होली जिस दिन जलाई जाती है उस दिन घर की स्त्रियाँ सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर जहाँ होली रखी जाती है वहाँ जाती हैं और अपने साथ पूजन सामग्री व एक तांबे का कलश (लोटा) जल भर कर ले जातीं हैं।
इस के अलावा गाय के गोबर से बनी हुई गूलरी (या जिन्हे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बुरकले बोला जाता है), की मालाऐं ले जाती हैं। होली के पास दीपक जलाकर पूजन करती हैं पूजा में सतिया बनाती हैं।
आटे से चौक पूरती हैं और गुड़ या मीठा अर्पित करती हैं तथा इस के बाद कपास के धागे से या कलावे से होली मैया की 3 / 5 या 7 परिक्रमा कर के फिर धागा/कलावा वहीं छोड़ देते हैं। होली मैया को जल भी अर्पित करती हैं।
उस दिन शाम को होलिका दहन के मुहूर्त के कुछ समय पहले गांव/ बस्ती के लोग जहाँ होली रखी जाती है वहाँ एकत्र होते हैं। सभी लोग अपने साथ जौं के बाल की गड्डी बना कर लाते है ।
होली की सभी परिक्रमा लगाते है तथा होली माता की जय लगाते हुए या पूजन मंत्र बोलते हुए होली को जलाते हैं। होली जलने पर सभी अपनी-अपनी बालें उसमे भूनते हैं व इस के पश्चात होली दहन स्थल पर सभी आपस में एक दूसरे को बाल के भुने दाने दे कर होली मिलते हैं।
एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। उम्र में जो छोटे होते हैं वह वहाँ उपस्थित सभी बड़ों के चरण छू कर प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। होली मिलन के बाद सभी को प्रसाद बांटा जाता है ।
कुछ स्थानों पर यह भी रिवाज है कि होली जलने के बाद उसमें सै 2 -4 अंगारे अपने घर ले जाते हैं और फिर अपने घर के आंगन में कुछ उपले रख कर उन अंगारों को प्रज्ज्वलित करते हैं ।
इस प्रक्रिया को बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस से घर की नकारात्मकता समाप्त हो जाती है तथा शुभ फलदायक होती है।
होली के अगले दिन जिसे धूल/धुलेंडी या रंग वाली होली भी कहा जाता है, सभी बच्चे बड़े सब एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं व रंग डालते हैं।
इस दिन जो भी होली मिलने / खेलने आता है उनको घर के बने व्यंजन जैसे पापड, चिप्स, दही भल्ले, गुंजिया, पकोड़ी, कांजी के बड़े, मौसमी फल – अंगूर, संतरा आदि स्वागत में खाने के लिए दिये जाते हैं।
रंग (होली) खेलने का कार्यक्रम लगभग दोपहर तक चलता है तथा उस के बाद सभी अपने घर आकर नहाना धोना करते हैं और फिर शाम को भी लोग होली मिलन के लिए निकलते हैं।
इस तरह होली त्यौहार का दिन पूरे आनन्द का रहता है ।
होली 2023 कब है ?
संपूर्ण भारत में होली का त्यौहार प्रति वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2023 में होली का त्यौहार दिनांक 07 मार्च 2023 दिन मंगलवार को होलिका दहन तथा 08 मार्च 2023 दिन बुधवार को रंग की होली मनाई जायगी।
होली 2023 का शुभ मुहूर्त
फाल्गुन मास 2023 की पूर्णिमा तिथि आरंभ – दिनांक 06 मार्च 2023 को अपराह्न 04-17 PM से ।
होलिका दहन तिथि – 07 मार्च 2023 दिन बुधवार।
होलिका दहन का समय- दिनांक 07 मार्च 2023 सांय 06-24 PM से 08-51 PM तक।
होलिका दहन की अवधि- 2 घंटा 27 मिनट।
होली (रंग खेलने की) – दिनांक 08 मार्च 2023 दिन बुधवार।
भारत के धार्मिक ग्रंथों में होली का वर्णन –
भारत के कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में होली के त्यौहार का वर्णन / उल्लेख मिलता है, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं –
जैमिनी ॠषि द्वारा रचित पूर्व मीमांसा सूत्र तथा गार्ह्य सूत्रों में होली का उल्लेख मिलता है।
इस के अलावा भविष्य पुराण तथा नारद पुराण की प्राचीन हस्तलिपियों/ ग्रंथों में होली के उत्सव का उल्लेख मिलता है।
ब्रज मंडल में होली का उत्सव
हालांकि होली का रंगोत्सव पूरे भारत में ही मनाया जाता है परन्तु ब्रज के इलाकों ( अर्थात मथुरा जिले के आसपास के जिलों) में होली का उत्सव बड़े भारी धूम -धाम से व अलग – अलग प्रकार से मनाया जाता है।
ब्रज की इन होलियों का धमाल देखने के लिए बड़ी भारी संख्या में देश विदेश के पर्यटक मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, गोकुल, नन्द गांव आदि पहुचते हैं।
विशेष धार्मिक एवं आनन्दमयी परम्पराओं को देख कर हर्ष विभोर हो जाते है। इस वर्ष (सन 2023) में ब्रज का होली उत्सव का कार्यक्रम (Programme) इस प्रकार होगा –
दिनांक कार्यक्रम
21- 2- 2023 फुलैरा दूज – फूलों की होली।
27-2-2023 बरसाने में – लड्डूमार होली ।
28-2-2023 बरसाने में- लट्ठमार होली।
01-3-2023 नन्द गांव में- लट्ठमार होली।
04-3-2023 गोकुल में- छड़ीमार होली ।
06-3-2023 फालेन गांव में- होलिका दहन।
07-3-2023 द्वारकाधीश मंदिर मथुरा में- द्वारकाधीश का डोला।
08-3-2023 बलदेव में- दाऊ जी का हुरंगा।
12-3-2023 रंगनाथ जी के मंदिर में होली- रंग पंचमी की ।
होलिका दहन पूजन विधि –
होलिका दहन के लिए जहाँ पर होली रखी गई है वहाँ पर सभी बस्ती मौहल्ले के लोग होलिका दहन के मुहूर्त से पहले एकत्र होते हैं ।
होलिका दहन के स्थल पर आते समय सभी लोग अपने साथ जौं के बाल भूनने के लिए लाते हैं। तथा होलिका दहन के पश्चात आपस में होली मिलते समय सभी के मस्तक पर गुलाल लगाते हैं ।
होलिका दहन के समय चर्खे का सफेद धागा या कलावा पूजा सामग्री के रूप में लाते हैं तथा उसे होली पर 3 या 7 बार परिक्रमा करते हुए होली पर लपेटते हैं।
तथा होली पर कुमकुम व फूल अर्पित करते हैं। फूल अर्पण के साथ साथ भगवान विष्णु की आराधना करते हैं क्योंकि उन की कृपा से ही होलिका की चादर उड़ गई थी और भक्त प्रह्लाद को अग्नि से कोई हानि नहीं हुई थी।
जब होलिका दहन किया जाता है तब तीन चीजों पर विचार/ध्यान दिया जाता है-
होलिका दहन के दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा हो।
गौधूलि के समय के बाद का समय हो।
होलिका दहन के समय भद्रा नहीं होनी चाहिए। ( केवल पुच्छ भद्रा में होलिका दहन किया जा सकता है) ।
होली की पौराणिक कहानी
होली मनाऐ जाने के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कहानी है जो प्रह्लाद व उस की ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति के बारे में विस्तार से वर्णन करती है। कहानी इस प्रकार है –
प्रचीन काल में एक महा बलशाली असुर हुआ जिस का नाम हिरण्याकश्यप था। उस ने ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया था।
वह किसी इंसान या जानवर से नही मारा जा सकता, न ही उसकी मृत्यु किसी अस्त्र से हो सकती, न ही घर के अंदर या बाहर हो सकती, न ही दिन में या रात में, और न ही पृथ्वी पर या आकाश में हो सकती। ऐसा वरदान प्राप्त कर वह असुर बहुत घमंडी हो गया था।
वह स्वयं को ही ईश्वर मनवाने के लिए जनता पर अत्याचार करता था तथा भगवान विष्णु की पूजा को मना करता था।
उसके एक पुत्र था जिस का नाम प्रह्लाद था जो कि भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्याकश्यप चाहता था कि उस का पुत्र भगवान विष्णु की भक्ति बंद करदे।
इस के लिए उसने बहुत प्रयास किए परन्तु कोई सफलता नहीं मिली।अपनी इस असफलता से बौखला कर उसने अपने पुत्र को मरवाने का षडयंत्र रचा।
हिरण्याकश्यप की एक बहन थी जिस का नाम होलिका था। होलिका को भगवान शिव का यह वरदान था जिस में उसे एक वस्त्र मिला था तथा जब तक वह वस्त्र होलिका के तन पर रहेगा, होलिका को अग्नि भी नहीं जला सकेगी।
इसलिए हिरण्याकश्यप ने उससे कहा कि तुम प्रह्लाद को लेकर अग्नि (होली) में बैठ जाओ, तुम्हारा कुछ नही बिगड़ेगा और प्रह्लाद जल कर भस्म हो जायगा।
हिरण्याकश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। उस समय प्रह्लाद भगवान विष्णु का जप कर रहा था भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा के लिए ऐसी तेज हवा का झटका चलाया कि वह वस्त्र होलिका के तन से उड़ गया।
परिणामतः होलिका अग्नि में जल कर भस्म हो गई परन्तु प्रह्लाद को अग्नि से कोई नुकसान नहीं हुआ। तभी से हिन्दू धर्म के अनुयायी इसे बुराई पर अच्छाई की जीत मानते हैं और इस दिन को खुशी के साथ रंगों के त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
कैसे शुरु हुई लट्ठमार होली ?
पौराणिक कथा एवं वर्णन के अनुसार लट्ठमार होली की शुरुआत द्वापर काल से हुई। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल्यकाल में अपने सखाओं के साथ राधारानी के गांव बरसाना जाया करते थे तथा वहा पर राधा रानी व उनकी सखियों के साथ शरारत करते थे।
उनकी शरारतों से अधिक परेशान होकर उन्होंने इनसे बचने के लिए डंडे व लाठियाँ बरसाना प्रारंभ करा। तब श्रीकृष्ण व उनके सखा अपने बचाव के लिए ढाल ले जाने लगे।
इसी तरह धीरे- धीरे यह प्रथा एक परंपरा बन गई और ब्रज की होली का एक अभिन्न अंग बन गई ।