सामान्यतः गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) पर्व दीपावली के अगले दिन ही मनाया जाता है, मगर 2022 इस वर्ष सूर्यग्रहण के कारण एक दिन का अन्तराल बढ गया है

इस त्यौहार को कई जगह अन्नकूट के नाम से भी पुकारा जाता है। भारतीय लोक जीवन में इस पर्व का बहुत महत्व है, विशेषकर इसलिए कि इस में प्रकृति और प्राकृतिक जीवन का मानव जीवन से अच्छा सद्भाव जुड़ा हुआ है ।

इसमें पशु धन के अलावा प्राकृतिक उत्पाद जैसे अन्न, विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ आदि सभी का एक सुन्दर समावेश है। भारतीय जीवन पद्धति में गाय को माता स्वरूप/  देवी लक्ष्मी के सम सम्मान दिया जाता है। 

क्योंकि उस से मिलने वाले दूध से न केवल मानवीय पोषण संभव है बल्कि उस के अन्दर निहित आरोग्य  / आयुर्वेदिक गुणों से शारीरिक पुष्टता को बल मिलता है। पृथ्वी से उत्पन्न सब्जियाँ भी मनुष्य के लिए एक ठोस पोषण का साधन है। 

इसीलिए इस त्यौहार पर जब भगवान को भोग लगाने के लिए अन्नकूट बनाते हैं तो उसमें वर्तमान में मिलने वाली सभी सब्जियों तथा कई अन्नों को मिला कर बनाया जाता है। इस प्रकार प्राकृतिक उत्पादों को इस पर्व में अत्यधिक सम्मान दिया जाता है। 

गोवर्धन पूजा कब मनाई जाती है ? 

गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja Kab Manayi Jaati Hai?) का पर्व दिवाली के अगले दिन अर्थात कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की  प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। परन्तु इस वर्ष ऐसा नहीं होगा। इस वर्ष दिवाली के अगले दिन अर्थात 25 अक्टूबर 2022 को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है इस कारण गोवर्धन का त्यौहार दिनांक 25 अक्टूबर 2022 को न होकर  इस से अगले दिन अर्थात  26 अक्टूबर  2022 को यह त्यौहार मनाया जायगा। 

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत तथा गायों की पूजा होती है। 

वर्ष  2022 में गोवर्धन पर्व 

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष 

प्रतिपदा तिथि आरंभ  : 25 अक्टूबर 2022 संध्या 04 – 18 PM से ।

प्रतिपदा तिथि समाप्त  : 26 अक्टूबर 2022  दुपहर  02 – 42 PM पर ।

गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त  :

दिनांक – 26 अक्टूबर 2022   प्रातः  06 – 29  AM से  08-43  AM  तक

गोवर्धन  पूजा  पर  अन्नकूट 

गोवर्धन पूजा के दिन सामान्यतः सभी घरों में तथा विशेषकर मंदिरों में अन्नकूट  बनाया जाता है तथा भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।  अन्नकूट बनाने की प्रथा  मथुरा तथा उसके आस- पास के जिलों  (बृज  क्षेत्र ) में अधिक प्रचलित है

अन्नकूट में जितनी प्रकार की सब्जी स्थानीय मार्केट में उपलब्ध हों वह सभी इसमें डाली जाती हैं तथा कुछ दालें व कुछ अनाज जैसे बाजारा, चावल, दलिया आदि डाल कर सबको एक साथ किसी बड़े बर्तन में आवश्यकता अनुसार मसाले डाल कर पकाते हैं। 

इस का पूजा में भोग के रूप में इस्तेमाल किया जाता है तथा इसे प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है। 

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन 56 भोग बनाकर गोवर्धन पूजा करने का आदेश दिया था। 

तभी से गोवर्धन पूजा की प्रथा आज भी कायम है और हर साल गोवर्धन पूजा के साथ-साथ अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है। 

गोवर्धन पूजा प्रारंभ होने की कथा (Govardhan Puja Katha)

द्वापर युग के एक समय की बात है कि श्रीकृष्ण अपने मित्रों/ ग्वाल वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत पहुँच । वहाँ उन्होंने देखा कि बहुत से लोग एक उत्सव मना रहे हैं ।

कृष्ण जी ने उत्सव मनाने का कारण पूछा तो लोगों ने उन्हे बताया कि वहाँ मेघ और देवों के स्वामी इन्द्र देव की पूजा होगी, जिससे इन्द्र देव प्रसन्न होकर बृज के इलाके में वर्षा करेंगे।

वर्षा के फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण पोषण होगा। यह सुन कर श्रीकृष्ण ने उन लोगों  से कहा कि इन्द्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिसके कारण यहाँ वर्षा होती है। आप सब को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। 

श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी लोग गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब यह समाचार इन्द्र देव को पता चला तो उन्हें क्रोध आया और क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल जाकर मूसलाधार बारिश करें।

कुछ समय बाद गोकुल में भारी बारिश शुरु हो गई।  बारिश से भयभीत होकर सभी गोप ग्वाले आदि श्रीकृष्ण के पास गये और भारी बारिश के बारे मैं उन्हे बताया। 

यह जानकर श्रीकृष्ण ने उन सब को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। सभी गोप ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन की तराई में आ गए। तभी श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठका अंगुली पर उठा कर छाते सा तान दिया।

इन्द्र देव के मेघ सात दिन निरंतर बरसते रहे।परन्तु श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ा ।यह अदभुत चमत्कार देखकर इन्द्र देव असमंजस में पड़ गये।  तब ब्रह्मा जी ने उन्हे बताया कि भगवान विष्णु का अवतार हैं श्रीकृष्ण जी। 

इस सत्य की जानकारी मिलने से इन्द्र देव श्रीकृष्ण के पास जाकर क्षमा याचना करने लगे। इस तरह श्रीकृष्ण ने इन्द्र देव का अहंकार चूरचूर कर दिया।  इन्द्र देव द्वारा क्षमा मागने पर श्रीकृष्ण ने सातवे दिन गोवर्धन पर्वत को भूमितल पर रखा।  

इस पर ब्रजवासियों ने कहा कि अब वे हर वर्ष अन्नकूट का पर्व मनाया करेंगे।  मान्यता है कि तब से ही इस पर्व को मनाये जाने की परंपरा शुरु हुई  ।

गोवर्धन  पूजा  विधि (Govardhan Puja Vidhi)

गोवर्धन पूजा के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ धुले वस्त्र धारण करें। 

गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन बनाऐं। गोवर्धन में  भगवान श्रीकृष्ण की आकृति बनाऐं,  गोवर्धन पर्वत बनाऐं,  गाय भी अवश्य बनाऐं तथा उन्हें फूलों से सजायें।

भगवान श्रीकृष्ण को लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाया जाता है। उनकी नाभि की जगह पर एक मिट्टी का बड़ा दीया रखा जाता है जिस में दूध,दही,गंगाजल, शहद और बताशे डाले जाते हैं इसे बाद में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। 

गोवर्धन में गौ माता की पूजा का विधान है। अतः गोवर्धन की आकृति में जो गऊऐं बनाईं है उन को तिलक करें। 

गोवर्धन  पूजा प्रारंभ करते समय सभी परिवार जन आसन बिछा कर गोवर्धन के पास बैठें।  एक  उपले के दो – तीन छोटे टुकड़े  आँच पर तपाकर कर एक बड़े दिये या किसी अन्य पात्र में रखें। 

 परिवार के सभी लोगों का तिलक करें। इसके बाद अज्ञारी में एक चम्मच से थोड़ा-थोड़ा घी दो तीन बार डाले तो उस में एक दम धूंआ उठेगा, तुरन्त ही एक माचिस की तीली जलाकर कर अज्ञारी के पास लाऐं, वह तुरन्त प्रज्ज्वलित हो उठेगी। 

अज्ञारी प्रज्ज्वलित होने पर लौंग के दो जोड़े घी लगाकर कर ज्योत पर चढ़ाऐ, एक बताशा घी लगाकर प्रज्ज्वलित ज्योत पर चढ़ाऐ तथा पाँच बार थोड़ा- थोड़ी सामग्री ज्योत पर चढाऐ। 

अब पूजा के मन्त्र बोलें  –

ऊँ त्वमेव माता च पिता त्वमेव 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्राविणं त्वमेव 

त्वमेव सर्वं मम देव देव  ।।

ऊँ वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

प्रातः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः  ।।

ऊँ  नमः भगवते वासुदेवाय कृष्णाय

क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः  ।।

लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता  ।

घृतं वहति यज्ञार्थ मम पापं व्यपोहत ।।

गोवर्धन महाराज का जयकारा लगाऐं ।

इसके बाद सब लोग खड़े होकर गोवर्धन महाराज की आरती गाऐं। 

आरती के बाद गोवर्धन महाराज की पाँच परिक्रमा लगाऐं। परिक्रमा लगाते समय जो पूजा में सामने बैठे थे वह अपने हाथ में कलश लेलें तथा बाकी लोग कुछ खील हाथ में लेलें , और परिक्रमा करते हुए निम्न मन्त्र बोलें-

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानी च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे  ।।

गोवर्धन महाराज की आरती

गोवर्धन महाराज ओ महाराज, 

तेरे माथे मुकुट बिराज रहेओ। 

                  श्री गोवर्धन महाराज ….

तो पे पान चढ़ें, तो पे फूल चढ़ें, 

तोपे चढ़े दूध की धार  ।

                  श्री गोवर्धन महाराज…..

तेरे गले में कंठा साज  रहेओ,

ठोड़ी पे हारा लाल ।

                   श्री गोवर्धन महाराज….

तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ,

तेरी झांकी बनी विशाल। 

                   श्री गोवर्धन महाराज ….

तेरी सात कोस की परिकम्मा, 

 चकलेश्वर है विश्राम ।

                  श्री गोवर्धन महाराज…

गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण, 

करो भक्तों का बेड़ा पार, 

तेरे माथे मुकुट बिराज रहेओ ।।

                  श्री गोवर्धन महाराज…

पूजा करते समय ध्यान रखें कि

परिक्रमा करते समय जिनके हाथ में कलश है वह कलश से एक – एक बूंद जल गिराऐं तथा जिन के हाथ में खील हैं वह परिक्रमा करते समय एक – एक खील गिराते जाऐं। पाँच परिक्रमा पूरी होने पर अपने – अपने स्थान पर बैठें और बाकी बची खीलों को गोवर्धन पर चढाऐ।


इसके बाद सभी अपने से बड़ो के चरण वंदन कर आशीर्वाद प्राप्त करें ।