दीपावली (Diwali) हिन्दू / सनातन धर्म मानने वालों का सबसे प्राचीनतम त्यौहार है, जोकि बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार शरद ॠतु के आगमन के समय कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है।
दीपावलीः एक संस्कृत शब्द है। यह दो शब्दों अर्थात दीप + अवलीः को मिलकर बना है जिसका अर्थ है – पंक्ति में रखे हुए दीपक या दीपकों की पंक्ति ।
आध्यात्मिक परिपेक्ष में यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है ।
इस दीपावली के पर्व/ त्यौहार को दीपोत्सव (अर्थात दीपों का उत्सव) भी कहा जाता है।
भारत के अलावा नैपाल, श्रीलंका सहित अनेकों देशों में यह दिन विभिन्न रूपों में मनाया जाता है तथा उन देशों में इस दिन राजकीय अवकश होता है ।
दीपावली के पौराणिक एवं ऐतिहासिक संदर्भ (History of Diwali)
दीपावली का उल्लेख हमें स्कन्ध पुराण एवं पद्म पुराण में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि यह पुराण पहली सहस्राबदी में लिखे गये थे। स्कन्ध पुराण में दीपक को सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है ।
दीपावली के पर्व का आरंभ त्रेता युग में भगवान राम के इस दिन चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने के हर्ष में मनाया जाता है।
सातवीं शताब्दी में राजा हर्ष संस्कृत नाट्य नागनंद में इसे ‘दीपप्रतिपादुत्सव ‘ कह कर पुकारा है जिसमें घर-घर दीपक जलाऐ जाते हैं तथा वर – वधू को उपहार दिये जाते थे। उपहार देने की प्रथा वर्तमान में प्रचुर रूप से देखने को मिलती है।
9वीं शताब्दी के ‘काव्य मीमांसा’ नामक ग्रंथ में इस पर्व का उल्लेख दीपमालिका के नाम से मिलता है तथा यह भी उल्लेख मिलता है कि इस अवसर पर घरों की पुताई, तेल के दीयों से घरों की जगमगाहट तथा बाजारों एवं सड़कों को सजाया जाता था ।
11 वीं सदी में भारत आऐ एक फारसी यात्री अल बैरूनी ने अपने संस्मरण में कार्तिक मास में हिन्दूओं द्वारा मनाऐ जाने वाला त्यौहार बताया है।
दीपावली का महत्व (Importance of Diwali)
भारत और नेपाल में दीपावली का त्यौहार एक साथ कई छुट्टियों वाला बड़ा ही आनन्द का मौका होता है ।
इस पर्व के आने से कुछ समय पहले से लोग अपने- अपने घरों की सफाई, पुताई, पेन्टिग आदि कराते हैं। घर एकदम जगमगाने लगते हैं।
घरों की आवश्यक वस्तुऐं इस पर्व के समय खरीदी जाती हैं तथा अपने इष्टों को भेंट देने के लिए मिठाईयाँ तथा अनेकानेक प्रकार के gift खरीदकर आपस में बांटने का बहुत ही प्रमुख रिवाज है।
महिलाऐं घरों के दरवाजों के सामने सुन्दर – सुन्दर रंगोली बनातीं हैं, जिन्हे देखते ही बनता है ।
दीपावली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान तथा निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक मानते है।
दीपावली का त्यौहार सभी के मन में एक नया उल्लास/ उमंग भर देता है। बृहदारण्यक उपनिषद् की ये प्रार्थना प्रकाश उत्सव को चित्रित करती है –
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्मा अमृतं गमय। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
दीपावली 2022 कब है ? (When is Diwali?)
इस वर्ष दिवाली का पर्व दिनांक 24 अक्टूबर 2022 दिन सोमवार तद्नुसार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जायगा ।
हर साल दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है । दिवाली आने के काफी समय पहले से लोग अपने- अपने घरों की साफ सफाई तथा आवश्यक सजावट की व्यवस्था में जुट जाते हैं।
दिवाली के दिन संध्याकाल में माता लक्ष्मी, गणेश जी, माता सरस्वती तथा कुबेर जी की पूजा आराधना करने का विधान है ।
दीपावली 2022 के पूजन का समय (Diwali Pujan)
अमावस्या तिथि आरंभ : 24 अक्टूबर 2022 शाम 05 – 28 बजे से ।
अमावस्या तिथि समाप्त : 25 अक्टूबर 2022 शाम 04 – 19 बजे ।
पूजन का शुभ मुहूर्त : 24 अक्टूबर 2022 को शाम 06 – 53 PM से शाम 08 – 16 PM तक ।
लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल मुहूर्त : 24 अक्टूबर 2022 को शाम 07- 02 PM से 08- 23 PM तक।
लक्ष्मी पूजा निशिता काल मुहूर्त : 24 अक्टूबर 2022 को रात 11- 46 PM से दिनांक 25 अक्टूबर 2022 को 00- 37 AM, तक।
लक्ष्मी पूजा अभिजीत मुहूर्त : 24 अक्टूबर 2022 रात्री 11 – 19 PM से दिनांक 25 अक्टूबर 2022 रात्री 00 -05 AM तक ।
दीपावली की पौराणिक कथाएं (Diwali Stories)
दीपावली उत्सव से जुड़ी कई कथाऐं हमें विभिन्न ग्रंथों / विवरणों में मिलतीं हैं। आइये इन को जानते हैं-
कथा – 1 (Diwali Stories -1 )
भगवान श्री राम अपना 14 वर्ष का वनवास पूरा करके तथा लंकापति रावण का वध करके आज ही के दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को वापस अयोध्या लौटे थे।
श्री राम के सकुशल वापस अयोध्या आगमन की खुशी में समस्त अयोध्यावासियों ने अपने- अपने घरों पर दीप जला कर अपने प्रिय राम जी के स्वागत सम्मान में उत्सव मनाया था। तभी से प्रति वर्ष भगवान श्री राम के अयोध्या आगमन की खुशी की स्मृति में दीपावली मनाने की प्रथा शुरु हुई है ।
कथा – 2 (Diwali Stories -2)
एक अन्य कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने देवताओ तथा साधू संतों को अपनी आसुरिक शक्तियों से बहुत परेशान कर रखा था।
इस राक्षस ने साधु- संतों की सोलह हजार कन्याओं को भी अपने महल में बंदी बना कर रखा हुआ था। देवताओं एवं साधु संतों ने नरकासुर के अत्याचारों के बारे में भगवान श्रीकृष्ण को बताया और उन से मदद की गुहार लगाई।
इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर से भयानक युद्ध किया और युद्ध के दौरान अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उसका वध कर दिया था।
देवताओ और साधु संतों को नरकासुर के आतंकों से मुक्ति दिलाई तथा साथ ही साथ उसके महल में बंदी सोलह हजार कन्याओं को कैद से मुक्त कराया।
इसी खुशी में चतुर्दशी के अगले दिन अर्थात कार्तिक अमावस्या को लोगों ने अपने-अपने घरों में दीये जलाऐ और इस प्रकार दीवाली का त्योहार मनाया जाने लगा ।
कथा – 3 (Diwali Stories -3)
समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस को क्षीरसागर से देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं थी और उन्होंन पति के रूप में भगवान विष्णु को स्वीकार किया था। इसलिए भी इस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है ।
कथा – 4 (Diwali Stories -4)
धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इसी दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस को राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था।
यह सुन कर इन्द्र देवता ने स्वयं को स्वर्ग लोक में सुरक्षित पाकर दीपावली मनाई थी। तभी से दीपावली मनाने का प्रारंभ बताया जाता है ।
कथा – 5 (Diwali Stories-5)
राजा विक्रमादित्य ने अपने संवत की रचना इसी दिन की थी तथा अपने राज्य के बड़े- बड़े विद्वानों को बुलाकर मुहूर्त निकलवाया कि नया संवत चैत्र सुदी प्रतिपदा से चलाया जाय ।
दीपावली की पूजन सामग्री (Diwali Pujan Samagri)
दीपावली पूजन के लिए निम्नलिखित सामग्री एकत्र कर तैयार रखें जिससे पूजन के समय किसी प्रकार का विघ्न ना आऐ।
पूजा के लिए एक थाली, एक या दो थाल दीपक रखने के लिए, कलावा, रोली, सिंदूर, नारियल, अक्षत (चावल टूटा ना हो), पान का पत्ता, कलश, आम के पत्ते, फूल (सफेद फूल नहीं रखे जाते), खील-बताशे, मिठाई, दीपक, रूई की बत्तीयाँ, अगर कोई नया बर्तन खरीदा हो तो उसमें कुछ मिठाई रखें तथा मिट्टी के दीये जिन्हें दिन में पानी से धो कर सुखा लें, एक बड़ा मिट्टी का दीया जो रात भर जलाना है तथा बैठने के लिए आसन आदि।
एक चाँदी का सिक्का जिस पर लक्ष्मी गणेश का चित्र अंकित हो।
लक्ष्मी पूजन कथा (Diwali Laxmi Pujan Katha)
1) एक गाँव में एक साहूकार परिवार रहता था। उस की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। उस की एक बेटी थी जो नित्यप्रति एक पीपल पर जल चढ़ाती थी।
उसी पीपल के पेड़ पर देवी लक्ष्मी का वास था। एक दिन लक्ष्मी जी ने कन्या का रूप धारण कर साहूकार की बेटी से कहा कि मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ।
तो साहूकार की बेटी ने कहा कि मैं अपने पिता से पूछ कर आप को बताऊंगी। घर आकर यह बात उसने अपने पिता को बताई तो पिता ने हाँ कर दी । फिर दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपनी सहेली बना लिया।
अब वह नित्य अच्छे मित्रों की तरह बातचीत करने लगीं। एक दिन लक्ष्मी जी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गईं। अपने घर पर लक्ष्मी जी ने उस का बहुत अच्छे से स्वागत किया, खूब खातिर भी की और उसे अनेकों प्रकार के भोजन परोसे।
इस मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी अपने घर लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे अब अपने घर कब बुलाओगी?
तो साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अगले दिन अपने घर बुला तो लिया परंतु घर की निर्धन स्थिति देख कर वह बहुत उदास हो गई क्योंकि उसे डर लग रहा था कि उस के घर पर स्वागत / आवभगत के लिए कुछ भी नही है, तो वह स्वागत किस प्रकार कर पायगी ।
साहूकार ने जब अपनी बेटी को उदास देखा तो वह बेटी के मन की बात समझ गया और अपनी बेटी को समझाते हुए बोला कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर ले।
एक चार मुख वाला दीपक जला ले और माता लक्ष्मी का नाम लेकर बैठ जा। उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर साहूकार की बेटी के पास डाल गई।
तब साहूकार ने उस हार को बेच कर एक सोने की चौकी व भोजन के अन्य सामान बाजार से लेकर आया और साहूकार की बेटी ने बड़े मन से लक्ष्मी जी के लिए खाने की तैयारी कीं।
थोड़ी देर बाद लक्ष्मी जी गणेश जी के साथ साहूकार के घर आ गए। साहूकार की बेटी ने उन दोनों की खूब सेवा की। उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुईं और साहूकार बहुत अमीर बन गया।
हे देवी लक्ष्मी व गणेश जी जैसे आप साहूकार के घर गए वैसे ही आप सबके घर पधारें।
2) एक बार की बात है कि एक बार एक राजा ने एक गरीब लकड़हारे से प्रसन्न होकर उस लकड़हारे को चन्दन की लकड़ी का जंगल उपहार में दे दिया।
लकड़हारा तो लकड़हारा ही ठहरा। भला उसे चंदन की लकड़ी का महत्व क्या मालूम। वह तो रोज की तरह जंगल से चंदन की लकड़ियाँ लाकर, उन्हें जलाकर भोजन बनाने के लिए प्रयोग करता था ।
जब अपने गुप्तचरों द्वारा राजा को यह बात मालूम हुई तो उसकी समझ में आगया कि बुद्धिहीन व्यक्ति को धन का उचित उपयोग नहीं आता है, केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही धन का उचित उपयोग करने की क्षमता रखता है।
यही कारण है कि सदैव लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है क्योंकि गणेश जी बुद्धि प्रदाता हैं और उनकी कृपा से प्राप्त बुद्धि कि मनुष्य उचित प्रयोग कर सके।
दीपावली पूजन विधि (Diwali Pujan Vidhi)
दीपावली के दिन सुबह हनुमान जी की पूजा की जाती है। अतः सुबह-सुबह स्नान आदि के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
एक साफ कागज पर सिंदूर से हनुमान जी का चित्र बनाऐं। चित्र को पूजा स्थल पर चिपकाएं।
इसके बाद 5 / 7/ 9 या 11 पूरियों का बूरा/ चीनी पाउडर या शक्कर अच्छी तरह मिला कर चूरमा बनाऐं और पूजा स्थल पर रखें।
अब एक उपले के छोटे- छोटे 2 – 3 टुकड़े अग्नि पर तपाकर एक बड़े दीवे या झामें में रखकर पूजा स्थल पर लाऐं।
अब पूजा के थाल में दीपक, रोली, लौंग, बताशे, व थोड़ी सी सामग्री रखे।
हनुमान जी की पूजा प्रारंभ करने से पहले घी का दीपक जलाऐं व हनुमान जी को तिलक करें और ज्योत प्रज्ज्वलित करने के लिए बड़े दीये या जिस पात्र में करसी रखी हैं।
उन पर चम्मच से दो- तीन बार घी डालें। घी डालते ही धूँआ निकलेगा। अब उस पर माचिस की तीली जलाकर ले जाऐं। धूंआ तुरन्त अग्नि में बदल जायगा अर्थात ज्योत प्रज्ज्वलित हो गई।
अब प्रज्ज्वलित ज्योत पर दो जोड़े लौंग के घी लगाकर चढाऐं। इस के बाद एक बताशा घी लगाकर प्रज्ज्वलित ज्योत पर चढाऐ। पांच बार थोड़ी थोड़ी सामग्री भी प्रज्ज्वलित ज्योत पर चढाऐ।
इस के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा हनुमान जी की आरती करें।
तत्पश्चात थोड़ा सा चूरमा लेकर हनुमान जी के मुख पर लगाऐं। तथा यह सुनिश्चित करें कि चूरमा उनके मुख पर चिपका रहे।
इस के बाद आरती के दीपक से हनुमान जी के मस्तक पर घी की धार दें। जब चूरमे से होकर घी हनुमान जी के चरणों के पास आ जाय तो घी की धार बन्द करें और दीपक को पूजा की थाल में वापस रख दें। अर्थात हनुमान जी को भोग लग गया।
अब हनुमान जी की जय बोलें और चूरमा का प्रसाद बाटें तथा स्वयं भी ग्रहण करें।
दीपावली के दिन संध्याकाल मे देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन संध्याकाल काल में पूजन के शुभ मुहूर्त के समय पूरे भक्तिभाव से माँ लक्ष्मी की पूजा के साथ- साथ श्री गणेश जी तथा देवी सरस्वती की पूजा / आराधना करने का विधान है।
इनकी पूजा के साथ- साथ धन के देवता कुबेर जी की भी पूजा करनी चाहिए।
पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि कार्तिक अमावस्या की रात में देवी महालक्ष्मी इस पृथ्वी लोक पर आती हैं और घर – घर में विचरण करती हैं।
तथा जो घर हर प्रकार से स्वच्छ तथा प्रकाशवान मिलता है वहाँ अंश रूप से ठहर जाती हैं। इसलिए दिवाली पर भली प्रकार से साफ-सफाई करनी चाहिए तथा दिवाली के दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से देवी महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।
इस वर्ष दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त दिवाली के दिन अर्थात 24 अक्टूबर 2022 को सांय 06 – 53 PM से प्रारंभ हो रहा है। अतः पूजा की पूरी तैयारी इस समय से पहले ही कर लें।
सबसे पहले पूजा स्थल की सफाई करलें। ध्यान करें कि दिवाली पूजा करते समय आपका मुख उत्तरपूर्व (ईशान कोण) या उत्तर दिशा में हो, जोकि अधिक शुभ माना जाता है।
पूजा स्थल की सफाई के बाद वहाँ रोली से स्वास्तिक का चिंह बनाऐं। यह शुभ माना जाता है।
हाथ में थोड़ा सा गंगाजल लेकर पूजास्थल पर पवित्रि मंत्र बोलते हुए छिड़कें –
“ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतर शुचिः ।।”
पूजास्थल पर देवी लक्ष्मी तथा गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर लगाने के लिए अगर उपलब्ध हो तो एक चौकी बिछाऐं और उस पर लाल वस्त्र बिछाऐं।
अब जिस जगह पर तस्वीर या मूर्ति स्थापित करनी है वहाँ पर थोड़े – थोड़े अक्षत अर्थात चावल रखकर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर या मूर्ति रखे। अगर तस्वीर हो तो यह सुनिश्चित करें कि उसमें देवी सरस्वती तथा कुबेर जी का चित्र भी हो।
एक कलश में जल भरकर पूजास्थल पर रखें। अगर नारियल लाऐ हैं तो कलश पर नारियल रखें अन्यथा पान रखें।
इस के बाद सभी मूर्तियों या तस्वीर पर गंगाजल झिड़क कर पवित्र करें।
अब सभी देवी- देवताओं के मस्तक पर हल्दी/ रोली का तिलक लगाएं तथा चावल या खील लगाऐं ।
तिलक के बाद देवी महालक्ष्मी, गणेश जी, सरस्वती जी तथा कुबेर जी को वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप-दीप तथा अक्षत व दक्षिणा चढ़ाऐ ।
इसके बाद सभी दीपकों में बत्ती रखकर तेल डालें तथा सभी दीपकों को जला लें।
इस के बाद के पूजा मन्त्र/ श्लोक बोलें तथा चरण वंदन करें।
पूजा मन्त्र के बाद माता रानी को भोग लगाऐ तथा जो मिठाई पूजा में रखी है उस में से थोड़ी सी लेकर देवी लक्ष्मी के मुख पर चाँदी के सिक्के के साथ चिपकाऐं और फिर ऊपर से पान का पत्ता चिपकाऐं।
पान का पत्ता चिपकाने के लिए भी मिठाई का प्रयोग करें।
अब सभी परिवार के लोग जो पूजा में उपस्थित हैं वह सब थोड़ी- थोड़ी खील अपने हाथ में लेलें।
इस के बाद गणेश जी की व माता रानी की आरती सब मिलकर करें।
आरती समाप्त होने पर माता रानी की जय बोलें व हाथ की खील पूजा की थाली / दीपकों की थाली पर छोड़ दें और माता रानी का जयकारा लगाऐं ।
अब दीपकों को घर के बाहर तथा एक-एक दीपक घर के प्रत्येक कमरे व रसोई आदि में भी रखें।
घर के सभी बड़ों के चरण वंदन कर आशीर्वाद प्राप्त करें।
क्षमा प्रार्थना
सभी पूजाओं के अंत में देवी देवताओं से पूजा प्रक्रिया में जाने अन्जाने अगर कोई भूल या त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए अवश्य ही क्षमा याचना करनी/ बोलनी चाहिए।
अतः पूजा करने के बाद में निम्न श्लोक अवश्य पढ़ना चाहिए। यह नकारात्मक असर को टालता है।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तथास्तु मे ।।
दीपावली के पूजा मन्त्र (Diwali Pujan Mantra)
त्वमेकः सर्वभूतेषु स्थावारेषु चरेषु च ।
परमात्मा प्राकारः प्रदीप्तमिव नमोऽस्तुते ।।
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोऽस्तुते ।।
दीपक मन्त्र
दीपज्योतिः परब्रह्मः दीप्जयोति जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीपं नमोऽस्तुते ।।
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुख सम्पदः ।
द्वेषबुद्धि विनाशाय आत्मज्योति नमोऽस्तुते ।।
गणेश मन्त्र (Ganesh Mantra)
ऊँ गं गणपतये नमः ।।
ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो बुद्धि प्रचोदयात् ।।
ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि सम्प्रभ ।
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा। ।
गजाननं भूत भू गणादि सेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम् ।।
उमा सुतं शोक विनाशकारकम् ।
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ।।
महालक्ष्मी मन्त्र (Mahalaxmi Mantra)
ऊँ महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।।
ऊँ श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।।
ऊँ श्रीं ह्रीं श्री कमले कमलालये
मम प्रसीद प्रसीद वर दे
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ।।
ऊँ सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रपूते सदादेविमहालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ।।
सरस्वती मन्त्र (Saraswati Mantra)
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।
कुबेर मन्त्र (Kuber Mantra)
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्घिं मे देहि दापय स्वाहा ।।
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः ।।
आरती –
श्री गणेश जी की आरती – (Ganesha Aarti)
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेव ।।
जय गणेश …..
एक दन्त दयावन्त, चार भुजा धारी।
माथे तिलक सोहे, मूसे की सवारी ।।
जय गणेश …..
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लडुवन का भोग लगे संत करें सेवा ।।
जय गणेश ……
अंधन को आंख देत, कोढियन को काया ।
बाझन को पुत्र, निर्धन को माया ।।
जय गणेश…..
सूर श्याम शरण आऐ, सफल कीजो सेवा ।।
जय गणेश …..
लक्ष्मी जी आरती (Laxmi Ji Aarti)
ऊँ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तमको निशदिन सेवत हर विष्णु विधाता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी …..
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम जग की माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी ….
दुर्गा रूप निरंजन, सुख संपति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी …..
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी …..
जिस घर तुम रहती हो, ताहि में सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता। ।
ऊँ जय लक्ष्मी …..
तुम बिन यज्ञ न होता, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुम से ही आता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी ….
शुभ गुण मंदिर सुन्दर क्षीर निधि आता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी …..
माँ लक्ष्मी जी आरती, जो कोई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता। ।
ऊँ जय लक्ष्मी ….
स्थिर चर जगत बचावै, कर्म प्रेम ल्याता ।
तेरा भगत मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ।।
ऊँ जय लक्ष्मी …..
दीपावली पर क्या ना करें ? (Avoid on Diwali)
1) घर के मुख्य द्वार पर जूते चप्पल नहीं रखें ।
2) रात में भूलकर भी झाड़ू न लगाऐं इस से घर में दरिद्रता आती है ।
3) इस दिन कोई ऐसा उपहार न जिससे negative ऊर्जा निकलती हो जैसे छुरी कांटे, उदासी भरे चित्र आदि।
4) तामसिक भोजन ना करें।
5) जूआ ना खेलें।
6) गणेश जी की मूर्ति में उनकी सूंड दाहनी तरफ नहीं होनी चाहिए।
7) लक्ष्मी पूजन में तुलसी का प्रयोग न करें।
8) सफेद फूल न चढ़ाऐं ।
9) बड़ा दीपक रात में ना बुझे अतः दीपक में तेल का ध्यान रखे।
दीपावली पूजा में क्या ध्यान रखें?
1) पूजास्थल सदैव उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए।
2) पूजा का मुख्य दीपक घी का होना चाहिए।
3) दीवलों की संख्या 11, 21, 31, 51 आदि हो।
4) पूजा का प्रारंभ सदैव गणेश जी की पूजा से होना चाहिए ।
5) मुख्य द्वार पर रंगोली बनाऐं।