देव उठान एकादशी (Dev-Uthani-Ekadashi) पर्व हिन्दुओं का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसे प्रत्येक परिवार बड़े हर्षोल्लास से मनाता है।  इस पर्व के साथ ही हिन्दू / सनातन धर्म मानने वाले सभी के पारिवारिक मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

देव उठान एकादशी कब मनाते हैं?

देव उठान एकादशी (Dev-Uthani-Ekadashi-Parv Kab Manatey Hain?) प्रति वर्ष कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के योग निंद्रा से जागने के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।

भगवान विष्णु प्रति वर्ष योग शयनी एकादशी अर्थात आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार माह के लिए योग निंद्रा में चले जाते हैं तथा चार माह पश्चात कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन अपनी योग निद्रा से जागते हैं।

इस दिन देवों का योग निद्रा से जागरण होता है, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी (Devotthan Ekadashi) भी कहा जाता है।

देव उठान एकादशी के विभिन्न नाम  –

देव उठान एकादशी (Dev Uthani Ekadashi Names) को विभिन्न स्थानों पर अलग- अलग नामों से पुकारा या जाना जाता है।  जैसे –

प्रबोधिनी  एकादशी ; विष्णु प्रबोधिनी ; हरि प्रबोधिनी ;  देव प्रबोधिनी;  देव उत्सव एकादशी;  देव उत्थान एकादशी;  देव थान ; देवठान एकादशी;  देव उठान एकादशी;  देव उथी एकादशी  ।

देव उठान किस का प्रतीक है  ?

 (Dev Uthani Ekadashi ke Prateek) आषाढ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, उस दिन से चतुर्मास (अर्थात चौमासा अथवा वर्षा ॠतु ) प्रारंभ होती है।

इस चातुर्मास में भगवान विष्णु देवों के साथ चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं तथा इस के पश्चात वर्षा ऋतु अर्थात चतुर्मास के समाप्त होने पर दीपावली के बाद जो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है उस दिन भगवान विष्णु देवों सहित अपनी योग निद्रा से जागते हैं। 

इन चार माहों में भगवान के योग निद्रा में जाने के कारण मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि पर भी रोक लग जाती है। इन चार महीनों के पश्चात जिस दिन भगवान विष्णु/ देव  योग निद्रा से जागते हैं तो यह दिन अर्थात कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को चतुर्मास की समाप्ति का प्रतीक माना जाता है। 

इस दिन से ही सभी मांगलिक कार्य ( विवाह आदि ) पुनः प्रारंभ हो जाते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है।साथ ही साथ यह दिन सर्दी के मौसम के प्रारंभ होने का प्रतीक है।

इस वर्ष देव उठानी एकादशी कब है?

(Dev Uthani Ekadashi Kab Hai?) देव उठानी एकादशी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है तद्नुसार इस वर्ष यह दिनांक 04 नवंबर 2022 दिन शुक्रवार के दिन है । 

इस एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालग्राम जी के साथ करने की प्रथा प्रचलित है।  जो लोग देव उठान एकादशी को व्रत रखते हैं वह लोग व्रत का पारण अगले दिन दिनांक 05 नवंबर 2022 की सुबह करें। 

देव उठान एकादशी शुभ मुहूर्त / समय 

एकादशी तिथि आरंभ  –  03 नवंबर        2022 की शाम  07- 30 बजे से ।

एकादशी तिथि समाप्त  – 04 नवंबर                 2022  शाम 06-08 बजे ।

पारण ( व्रत खोलने/तोड़ने) का समय –  05 नवंबर 2022     प्रातः 06- 41 बजे से 08 – 57 बजे (AM) तक।

(Janiye Dev Uthani Ekadashi Shubh Muhurt Ka Samay)

देव उठान  पूजा विधि-

(Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi) देव उठान एकादशी के दिन भोर में (अर्थात सुबह)  जल्दी उठना चाहिए। 

नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करें  तथा पवित्र व्रत रखने का मन में संकल्प करें। 

दिन में भगवान विष्णु का ध्यान करें। ध्यान करते समय  ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ (Om Namo Bhagwatey Vasudevaay Namaha) मन ही मन दुहराते रहें। इस संदर्भ में विष्णु पुराण के द्वितीय अंश के अध्याय 6 में यह बताया गया है कि –

” प्रातर्निश तथा सन्ध्यामध्याह्नादिशु संस्मरन। 

नारायणमवाप्नोति सद्यः पापक्षयान्नरः ।। “

(अर्थात-  प्रातः, सांय, रात्रि,मध्याह्न में किसी भी समय श्रीनारायण का स्मरण करने से मनुष्यों के समस्त पाप क्षीण हो जाते हैं। )

अपने – अपने घरों की अच्छे से सफाई करें तथा गेरू व खड़िया का इस्तेमाल कर पूजा स्थल पर देव उठान का चित्र बनाऐं।  चित्र के अन्दर भगवान विष्णु की आकृति बनाए।  भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है इसीलिए एक तुलसी का पौधा बनाऐं, एक सीढ़ी अवश्य बनाऐं। 

चित्र के नीचे पाँव के निशान बनाऐ जाते हैं। घर में जितने पुत्र हों, उतने जोड़े पाँव के निशान बनाऐं तथा उन के साथ एक जोड़ा छोटे पाँव के निशान और बनाऐं  तथा गाय व बछड़ों के निशान बनाऐं। 

इस के बाद फर्श पर नीचे सात गोलों का एक चक्र बनाऐं।  इन सात गोलों (वृतों) के चक्र के चारों ओर बाहरी लाइन पर सात विष्णु जी की आकृति बनाऐं। अब दीवार पर बनी देव उठान की आकृति में विष्णु जी के पैर से लेकर नीचे चक्र के सबसे छोटे गोले (वृत) तक एक मोटी लाइन बनाकर लाऐं अर्थात दोंनों को मिलाऐं। 

पूजा की तैयारी दिन में अर्थात शाम से पहले करलें।   पूजा की तैयारी में पूजा के लिए दीपक, उस में रूई की बत्ती व घी डाल कर रखें।

एक प्लेट में खड़ा अनाज ( गेंहु या बाजरा) चक्र के बीच में रखें।  इस के बाद भोग की अन्य सामग्री जिसमें गन्ने के दो टुकड़े, दो मूली पत्तों सहित, सिंघाडे,  तथा अन्य मौसमी फल व कच्ची सब्जीयां रखें ।

एक प्लेट में मीठे पूऐ  या जिनके यहां पराठों से पूजा होती है वह पराठे रखें, कुछ मिठाई और थोड़ी सी नई रूई रखें। इस सब पूजा के सामान को एक परात से ढक दें। 

परात से ढकने के बाद परात पर  सतिया अर्थात स्वास्तिक का निशान बनाऐं तथा गेरू से परात के चारों ओर बिंदी के निशान या अन्य कुछ बनाकर सजायें। 

एक  छोटे लोटे/कलश में शुद्ध जल भरकर पूजास्थल पर रखें। 

देव उठान के दिन तुलसी विवाह 

देव उठान के दिन तुलसी विवाह की प्रथा बहुत प्रचलित है। (Dev Uthani Ekadashi – Tulsi Vivaah) इस दिन उत्तर भारत में तुलसी विवाह का आयोजन लगभग प्रत्येक गली- मोहल्ले में देखने को मिलता है। 

इस दिन तुलसी जी का विवाह शालग्राम जी के साथ जो परिवार आयोजित करते हैं वह बड़े हर्षोल्लास के साथ आयोजित करते हैं। इस मौके पर स्त्रियां गाना बजाना भी करतीं हैं ।

तुलसी जी को सजाने के लिए गन्ने के टुकड़े चारों ओर  लगाकर तोरण बनाती हैं तथा तुलसी जी का वस्त्र व आभूषणों से श्रृंगार करती हैं।  ऐसी मान्यता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु की पूजा पूरी नही होती है ।

ऐसा भी माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से कन्या दान का पुण्य प्राप्त होता है।

देव उठान की कथाऐं (Stories of Dev Uthani Ekadashi)

हिन्दू धर्म  में देव उठान पर्व से संबंधित कई कहानियाँ हैं, उन में से कुछ मुख्य इस प्रकार है  –

1) एक समय की बात है कि भगवान विष्णु बिना आराम किये कई वर्षों तक लगातार काम करते रहते थे। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की सेवा में लगातार बिना किसी शिकायत लगी रहतीं थीं।   

परन्तु  एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा कि प्रभु आप वर्षों तक लगातार काम करते रहते हैं तो क्या आप कभी थकान महसूस नहीं करते ?  माता लक्ष्मी की बात सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले कि  देवी आप अपने मन की बात बताऐं ।

यह सुन कर माता लक्ष्मी ने कहा कि हे प्रभु आप की सेवा करना तो मेरा धर्म है परन्तु कभी-कभी मुझे थकान होती है या नींद की झपकी आ जाती है।  अगर आप कुछ समय विश्राम का नियत करें तो मुझे भी आराम मिलेगा। 

माता लक्ष्मी के इस आग्रह पर भगवान विष्णु ने विचार कर निर्णय लिया कि अब से वर्ष में एक बार वर्षा ॠतु से लेकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक सभी कार्यों से अवकाश लेंगें। 

तभी से प्रति वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठान एकादशी कहा जाने लगा।   तथा यह पर्व तभी से नियमित रूप से मनाया जाता है। 

2) एक समय की बात है कि नारद जी ब्रह्मा जी के पास गये और उन से प्रबोधिनी एकादशी के  व्रत  का क्या फल होता है,  यह बताने का सादर आग्रह किया। 

ब्रह्मा जी ने बताया कि हे नारद !  एक समय की बात है कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने रात को स्वप्न में अपना सारा राज विश्वामित्र ऋषि को दान दे दिया है।

अगले दिन जब ऋषि विश्वामित्र राज दरबार में पहुंचे तो महाराजा हरिश्चंद्र ने उन को अपना सारा राजपाट सौंप दिया। ऋषि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से दक्षिणा स्वरूप 500 स्वर्ण मुद्राएं और मांगी।  राजा हरिश्चंद्र के पास दक्षिणा उपलब्ध कराने के लिए कुछ भी नहीं था।

इसलिए उन्हें स्वयं तथा अपनी पत्नी व पुत्र को इसके लिए बेचना पड़ा ।राजा हरिश्चंद्र को एक डोम ने खरीद लिया और उन्हें श्मशान में मृतकों के संबंधियों से कर लेकर शवदाह का काम सौंपा।

यह कार्य करते हुए कुछ वर्ष बीत गए तब अचानक गौतम ऋषि  से उन की भेंट हुई।  जब राजा हरिश्चंद्र ने अपनी सारी व्यथा गौतम ऋषि को बताई तो उन्होंने प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। 

राजा हरिश्चंद्र ने प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करना शुरू कर दिया। फिर अचानक एक दिन उन के पुत्र रोहिताश्व की किसी सर्प के डसे जाने से मृत्यु हो गई,  जब उस की माता अर्थात उनकी पत्नी पुत्र को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में लाई तो हरिश्चंद्र जी ने श्मशान कर मांगा तो उनके पास देने के लिए कुछ न होने के कारण आपनी चुनरी का आधा भाग देकर कर चुकाया।

उसी समय आकाश से एक बड़ी जोर से बिजली चमकी और भगवान विष्णु प्रगट हुए और बोले- महाराज हरिश्चंद्र तुम ने सत्य को अपने जीवन में अपना कर एक उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किया है। 

तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा धन्य है। तुम इतिहास में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम से अमर रहोगे।  तभी भगवत कृपा से उन का बेटा जीवित होगया। 

उस के बाद राजा हरिश्चंद्र व उनका परिवार चिरकाल तक सुख भोग कर अंत में स्वर्ग को गये। 

अतः जो प्रबोधिनी एकादशी की व्रत/ पूजा पूरे मन से करता है उसे भगवान विष्णु के आशीर्वाद से मोक्ष प्राप्त होता है। 

देव उठान पूजा (Dev Uthani Ekadashi Puja)

देव उठान पूजा दिन छिपने के बाद अर्थात गौधूलि के समय के बाद की जाती है। 

पूजा के समय सभी परिवार की स्त्रियाँ तैयार होकर पूजा स्थल पर आती हैं और एक साथ मिलकर पूजा करती हैं। 

सबसे पहले परात को थोड़ा ऊंचा करके दीपक को जलाती हैं। 

पूजा प्रारंभ करने से पहले भगवान श्रीगणेश को याद कर के उनको शीश झुका कर प्रणाम करती हैं। 

इस के बाद भगवान विष्णु / देवताओ को योग निद्रा से जगाने का पूजा कार्यक्रम आरम्भ करती हैं। 

भगवान  विष्णु / देवों  को योग निद्रा से जगाने के लिए निम्न श्लोक बोलें – 

उत्तिष्ठोतिष्ठ गोविंद  त्यजनिद्राजगत्पते।

त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदं भवेत।।

उत्तिष्ठोतिष्ठवाराह द्रंष्ट्रोद्धृत वसुन्धरे। 

हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्य मंगलं कुरु।।

भगवान विष्णु /  दवों को योग निद्रा से उठाने के लिए कुछ गीत गाने का प्रचलन है। अलग  – अलग  क्षेत्रों में यह गीत कुछ भिन्नता के साथ गाये जाते हैं । जैसे  –

(1) Dev Uthani Ekadashi Geet -1

उठो देव बैठो देव, पाटकली चटकाओ देव। 

आषाढ मास में सोए देव, कार्तिक  में जागो  देव  ।।

कोरा कलशा मीठा पानी, उठो देव  पीयो  पत्नी  ।

हाथपैर फटकारो  देव, अंगुलियाँ  चटकाओ देव  ।।

कुआरों के ब्याह कराओ देव, ब्याहों के गौने कराओ  देव  ।

तुम पर फूल  चढाऐं  देव, घी  का दीया जलाएं  देव  ।।

आओ देव,  पधारो देव  ।

तुम को हम मनाएं  देव  ।।

चूल्हा पीछे पाँच पछीटा, सासू जी (किशन जी @) तुम्हारे बेटा।

चूल्हा पीछे पाँच पछीटा, सासूजी ( @ जी ) तुम्हारे बेटा  ।।

ओने कोने  झांझ मजीरा, सहोदरा  ( @ जी ) तुम्हारे वीरा ।

ओने कोने झांझ मजीरा, सहोदरा  ( @ जी ) तुम्हारे वीरा  ।।

ओने कोने रखे अनार, ये  हैं  ( @ जी ) तुम्हारे यार। 

ओने कोने रखे अनार, ये हैं  ( @ जी) तुम्हारे यार  ।।

ओने कोने लटकी चाभी, सहोदरा ये हैं तुम्हारी भाभी। 

जितनी खूंटी टांगू सूट, उतने इस घर जन्में पूत। 

जितनी इस घर सींख सलाई, उतनी इस घर बहुऐं आईं। 

जितने इस घर ईटें रोड़े, उतने इस घर हाथी घोड़े  ।।

जागो (अपना गोत्र बोलें) के देव। 

गन्ने का भोग लगाओ देव, सिंघाडे का भोग लगाओ देव, 

गाजर का भोग लगाओ देव,  पूऐ / पराठों का भोग लगाओ देव, 

मिठाई का भोग लगाओ देव  ।।

उठो देव  बैठो देव, अंगुरियाँ चटकाओ देव। 

नई सूत नई कपास, देव उठावें कातिक मास  ।।

@  – अपने घर के बच्चों का नाम लें। 

2)  Dev Uthani Ekadashi Geet -2

उठो देव  बैठो देव, 

देव उठेंगें कात्तक मास,  कात्तक मास। कात्तक के हैं बारह मास, बारह मास, 

नई टोकरी नई है कपास,नई है कपास ।।

जा रे मूसे गोल जा, गोल जा

गोल जाय के मोटा होय, मोटा होय

मोटा होय के डाब कटा, डाब कटा

डाब कटा के बौण बटा,बौण बटा

बौण बटा के खाट बुना, खाट बुना 

खाट बुना के दरी बिछा,दरी बिछा

दरी बिछा के लेट लगा, लेट लगा

गोरी गाय  कमला गाय 

जा को दूध सहापर होय,महापर होय

हीसे घोड़े बलध किरोड़े

जितने जंगल झाऊ झूँड,झाऊ झूँड

उतने ही या घर जन्मो पूत,जन्मो पूत 

जितने जंगल सींख सलाईं, सींख सलाई

उतने ही या घर बहुअड आईं,बहुअड आईं

ओले कोले धरे चपेटा, धरे चपेटा 

यह ही (अपना गोत्र बोलें) तेरे ही बेटा 

ओले कोलें धरी बरेली, धरी बरेली

यह ही लडकियां थारी सहेलीं , थारी सहेलीं

ओले कोले धरे मंजीरा धरे मंजीरा

यह हैं सारी बहना थारे ही भैया,थारे ही भैया 

ओले कोले धरे अनार, धरे अनार 

यह है सारे ही भैया थारे यार, थारे यार ।।

उठो रे (अपने गोत्र का नाम लें) के देव  ।।

3) Dev Uthani Ekadashi Geet -3

(    ) इस जगह अपने बच्चो का नाम लें ।

मूली का पत्ता हरा भरा, 

(  ) का मुख पानी भरा। 

ओले कोले धरी चाबी,

जीने (   ) तेरी  भाभी 

(   ) री ने घाली गाडी, 

राज करे (    ) की दादी ।

इस घर जितनी सूईं सलाई 

उतनी इस घर बहुअड आईं। 

जितने इस घर ईटे रोडे,

उतने इस घर हाथी घोडे। 

उठ नारायण चल नारायण, 

चल चना के खेत नारायण, 

मैं बोऊं तू सींच नारायण ,

मैं काटू  तू उठा नारायण, 

मैं पीसू तू छान नारायण, 

मैं पोऊं  तू जीम नारायण, 

कोरा करवा शीतल पानी, 

उठो देव  पीयो पानी, 

उठो देव, जागो देव, 

अंगुलियाँ चटकाओ देव, 

उठो देव ठंडा पानी पीयो देव। 

देवों को टीका लगाऐंगे।

आदर से भोग परोसेंगे  ।।

इस के उपरांत जोर जोर से परात की आवाज करें तथा बोले  – 

उठो देव  उठो  देव 

उठो  देव   उठो देव 

भोग  लगाओ देव 

भोग लगाओ  देव। 

पूजा में रखे सामान को प्रसाद में बाँटें,  सब्जियो को घर मेः प्रयोग में लाऐं ।

पूजा में रखे कलश का जल चंद्रमा को अर्घ्य दें।

देव उठान एकादशी क्या ध्यान रखे ?

व्रत के दौरान निर्जल या सिर्फ पानी पी कर रहना चाहिए। अगर गत वर्षों में फलाहार करते आऐ हैं तो फलाहार कर सकते हैं। 

बीमार, बुजुर्ग अथवा गर्भवती महिलाए इस व्रत के दौरान फलाहार कर सकते हैं ।

इस दिन तामसिक आहार बिल्कुल ना करें। 

इस दिन भगवान विष्णु के मन्त्रों का जाप करना चाहिए। इस दिन की गई भगवान विष्णु की आराधना बहुत फलदायी होती है। 

कृपया ध्यान दें

सामान्यतः देव उठान एकादशी से सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं,  परन्तु इस बार ऐसा नहीं है।  इस बार दिनांक 04- नवंबर 2022 को सूर्य की स्थिति विवाह आदि के लिए ज्योतिष के हिसाब से उचित नहीं है क्योंकि सूर्य इस दौरान दिनांक 23 नवंबर 2022 तक तुला राशि में रहेगा तथा शुक्र तारा अस्त होने के कारण विवाह आदि नही हो सकेंगे। शुक्र उदय होने के अगले दिन अर्थात 24 नवंबर 2022 से  मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी।