सनातन धर्म अनुयायियों अर्थात हिन्दू धर्म मानने वाले परिवारों में भाई दूज (Bhai Dooj) के त्योहार को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि बहन और भाईयों के रिश्तों की दृढ़ता बनाऐ रखने का श्रेय मुख्यतः तीन त्योहारों को दिया जाता है।
(1) भाई दूज, (2) दशहरा, व (3) रक्षाबंधन। इन त्योहारों पर बहनें अपने- अपने भाईयों का तिलक/ टीका करती हैं और भाईयों की दीर्घ आयु और समृद्ध जीवन की कामना करती हैं।
शरद ॠतु के प्रारंभ में दीपावली का त्यौहार आता है जोकि हिन्दूओं के त्यौहारों में बहुत ही प्रमुख त्यौहार माना जाता है। दीपावली के अवसर पर पाँच त्यौहार आते हैं जिनका आगमन धन तेरस से प्रारंभ होता है और इस क्रम में अंतिम त्यौहार भैया दौज (Bhai Dooj) का होता है ।
भाई दूज का त्यौहार भाई बहनों के आपसी प्रेम तथा स्नेह का प्रतीक होता है। यह आपसी पारिवारिक संबंधों को दृढ़ बनाऐ रखने तथा आपसी प्रेम बनाऐ रखने का काम करता है ।
भाई दूज 2022 कब है ? (Bhai Dooj Kab Hai?)
भाई दूज का त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। सामान्यतः यह त्यौहार मुख्य दिवाली के एक दिन बाद का होता है।
परन्तु इस वर्ष (शायद पहली बार) ऐसा हुआ है कि यह त्यौहार मुख्य दीपावली के तीसरे दिन पड़ रहा है।इस का मुख्य कारण यह है कि दीपावली के अगले दिन सूर्य ग्रहण पड़ रहा है।
इस वर्ष भाई दूज का त्यौहार दिनांक 27 अक्टूबर 2022 दिन ब्रहस्पतिवार को मनाया जायगा।
भाई दूज 2022 शुभ मुहूर्त (Bhai Dooj Shubh Muhurt)
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि आरंभ : दिनांक 26 अक्टूबर 2022 बुधवार दोपहर 14 – 42 PM से ।
द्वितीया तिथि समापन : 27 अक्टूबर 2022 दिन ब्रहस्पतिवार दोपहर 12 – 45 PM तक।
भाई दूज तिलक का शुभ मुहूर्त : 27 अक्टूबर 2022 दोपहर 12 – 14 बजे से 12 – 47 बजे तक ।
(तिलक अवधि : 33 मिनट )
भाई दूज को किस- किस नाम से जाना जाता है ?
भारत वर्ष के कई राज्यों में इस त्यौहार को अलग- अलग नामों से पुकारा जाता है । (Bhai dooj ko kis- kis naam se jana jaata hai?)
हिंदी भाषी क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हरियाणा आदि) : भाई दूज, भैया दौज
पश्चिम बंगाल : भाई फोंटा
महाराष्ट्र, गोवा, कोंकण क्षेत्र: भाई बीज, भाई बीज, भाव बीज
ओडिशा : भाई जिउंटिया
आंध्रप्रदेश/ तेल॔गाना: भत्रु द्वितीया, भत्री दित्य, भगिनि हस्त भोजनमु
दक्षिण भारत: यम द्वितीया
नैपाल: भाई टीका
कुछ स्थानों पर इसे ‘भातरा द्वितीया’ (Bhatra Dwitiya) के नाम से पुकारते हैं तो कुछ स्थानों पर ‘भथरु द्वितीया’ (Bhatru Dwitiya) कहा जाता है। यह भिन्नता स्थानीय भाषा का अन्तर है ।
कायस्थ समाज के लोग इस दिन को चित्रगुप्त जयन्ती (Chitragupta Jayanti) के रूप में उनकी तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से मनाते हैं।
भाई दूज पर्व प्रारंभ होने की कथा (Bhai Dooj Katha)
भगवान सूर्य के दो पत्नियाँ थीं जिन का नाम संज्ञा और छाया था। छाया के दो बच्चे थे, जिस में एक बेटा जिस का नाम यमराज था और एक बेटी जिस का नाम यमुना था। यमुना अपने भाई यमराज को बहुत प्रेम करती थी।
यमुना अपने भाई यमराज से अक्सर यह निवेदन करती थी कि वह अपने इष्ट मित्रों के साथ उस के घर आऐं और उस के घर पर भोजन करें। परन्तु यमराज अपने कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण अपनी बहन यमुना के आग्रह को टाल दिया करते थे।
एक बार जब कार्तिक मास का शुक्ल पक्ष आया तो बहन यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन के लिए निमंत्रित किया तो उस के भाई ने बहन यमुना का भोजन आग्रह स्वीकार कर लिया।
परन्तु सोचने लगे कि मैं तो मनुष्यों के प्राणों को हरने वाला हूँ और मुझे कोई अपने घर बुलाना पसंद नहीं करता, पर बहन यमुना ने मुझे बहुत आग्रह और आदर के साथ बुलाया है अतः उस के आग्रह का पालन करना मेरा धर्म है।
बहन के घर चलते समय यमराज ने नरक में निवास कर रहे जीवों को नरक से मुक्त कर दिया और बहन यमुना के घर पहुंच गये। भाई को आया देख यमुना बहुत खुश हुई।
उसने नहा धोकर बड़े उल्लास के साथ भाई के लिए खाना बनाया। उसने बड़े सम्मान से भाई का तिलक किया व्यंजन परोस कर बड़े मन से भाई को भोजन कराया।
यमराज अपनी बहन का आतिथ्य देखकर प्रसन्न हुआ और बहन से वर मागने को कहा। इस पर यमुना ने कहा कि आप प्रति वर्ष इसी तरह मेरे घर आया करो तथा मेरी तरह जो भी बहन अपने भाईयों का आदर सत्कार करके उनको टीका/ तिलक करे, उसे तुम्हारा भय ना रहे।
यह सुन कर यमराज ने तथास्तु बोला व अपनी बहन यमुना को वस्त्र आभूषण देकर अपने यमलोक को वापस प्रस्थान किया। जिस दिन यमराज बहन के घर आऐ उस दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया थी।
ऐसा माना जाता है कि उसी दिन से भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा पड़ी जो अभी तक चली आ रही है।
भाई दूज पौराणिक कथा – 2 (Bhai Dooj Katha -2)
धर्म शास्त्रों में एक और उल्लेख मिलता है जिस के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर नामक राक्षस का वध करके वापस अपनी राजधानी द्वारका नगरी पहुंचे थे।
इस अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा (Shrikrishna ki bahan Subadhra) उनका स्वागत फल,फूल, मिठाई और अनेकों दीप जला कर किया था। देवी सुभद्रा ने अपने भाई भगवान श्रीकृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनके दीर्घ आयु की कामना की थी।
उसी दिन से ही कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को बहनें अपने भाईयों के उनकी दीर्घ आयु और मंगल कामना के लिए तिलक करती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं।
ऐसा माना जाता है कि उसी दिन से यह भाई दूज के पर्व की प्रथा (Bhai Dooj parv ki pratha) चल रही है।
भाई दूज पर भाई को तिलक की तैयारी (Bhai Dooj Tilak Taiyari)
भाई दूज के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान कर बहने स्वच्छ वस्त्र धारण करें / अपना श्रृंगार करें।
स्नान के बाद सूर्य देवता को अर्घ्य दें ।
कुछ क्षेत्रों में (विशेषकर बृज मण्डल में बहनें अपने भाईयों के मंगल के लिए बेरी के पत्ते व चने की दाल के दाने एक खरल में डाल कर , ‘अपने भाईयों का नाम लेकर बोलती हैं कि उनके वैरियों को धर कूटा (अर्थात समाप्त कर दिए) और उन पत्तों को कूटती है ‘
ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से भाईयों के वैरी समाप्त हो जाते हैं
इस के बाद तिलक / टीका का थाल सजाती हैं ।
थाल में तिलक के लिए रोली, चन्दन, अक्षत, दीपक रूई की बत्ती व घी, बताशे, मिठाई व साबुत गोले रखतीं हैं।
तिलक के समय भाई को बैठाने के लिए आसन या चौकी अथवा कोई कुर्सी रखती हैं।
शुभ मुहूर्त के समय भाई को आदर से बैठातीं हैं यह ध्यान रखना चाहिए कि तिलक के समय भाई का मुख पूरब दिशा में हो।
भाई को तिलक करने से पहले थाल में, रखे दीपक को जलाएं।
तिलक करने के लिए पहले भाई के मस्तक पर रोली या चन्दन का तिलक लगाएं, उस पर अक्षत लगाएं।
तिलक करते समय भाई को अपने सिर पर कोई रुमाल या कपड़ा या अपना हाथ रखना चाहिए ।
तिलक करते समय यह मन्त्र बोलना चाहिए –
“गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को , सुभद्रा पूजे कृष्ण को।
गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई आप बड़े फलें फूलें ।।”
अथवा
“भ्रतस्तवानुजाताहं भंक्ष्व भक्तमिमं
शुभम्।
प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषतः ।।”
तिलक करने बाद भाई की आरती उतारें।
तिलक और आरती के बाद भाई को कुछ मीठा (बताशे या मिठाई) खिलाऐं।
इस के बाद भाई को आदर सहित भोजन कराऐं। (Bhai Dooj ke din Bhai Ko Bhojan)
भाई दूज का महत्व (BHai Dooj Ka Mahatva)
भविष्य पुराण के उत्तर पर्व के एक उल्लेख में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमुना ने अपने घर अपने भाई यम को भोजन कराया और यमलोक में बड़ा उत्सव हुआ।
इसलिए इस तिथि को यम द्वितीया कहते हैं। अतः इस दिन भाई को अपने घर भोजन ना कर बहन के घर जाकर प्रेम पूर्वक उसके हाथ का बना भोजन करना चाहिए।
उस से भाई में बल और पुष्टि की वृद्धि होती है। इस के बदले मे बहन को स्वर्णालंकार, वस्त्र तथा द्रव्य आदि से संतुष्ट करना चाहिए। यदि सगी बहन ना हो तो पिता के भाई की कन्या, मामा की पुत्री, मौसी अथवा बूआ की- ये सब बहन के समान हैं, इन के हाथ का भोजन करें ।
जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का भोजन करता है उसे यश, धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है ।
अतः भाई दूज का पर्व भाईयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। आप सभी को भाई दूज की शुभकामनाएं। Happy Bhai Dooj.