माता अन्नपूर्णा (Annapurna Jayanti 2022) देवी पार्वती का ही एक रूप है। देवी पार्वती माता अन्नपूर्णा के रूप में रसोई एवं मनुष्यों के भोजन की देवी कही जाती हैं। मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन एक मूल आवश्यकता है। 

इसीलिए भोजन को मनुष्य ही नहीं बल्कि समस्त जीवों के लिए भगवान के तुल्य माना जाता है  । अन्न से बने भोजन  से ही मनुष्य जीवित रहता है।  इसीलिए मनुष्य मात्र के लिए अन्न एक अत्यंत आदर- सम्मान की वस्तु है। 

अन्नपूर्णा जयन्ती के दिन भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के अन्नपूर्णा रूप की बड़ आदर सम्मान के साथ पूजा की जाती है

ऐसा माना जाता है कि जिन घरों में अन्न / धान्य का सम्मान किया जाता है तथा रसोई घर जहाँ घर/ परिवार के लोगों के लिए भोजन बनाया जाता है वहाँ पर घर की स्त्रियाँ बहुत साफ- सफाई रखतीं हैं,  वहाँ उन घरों में देवी अन्नपूर्णा का आशीर्वाद रहता है  और घर में धन- धान्य की प्रचुरता रहती है अर्थात इन की कमी नहीं आती है।

अन्नपूर्णा जयन्ती कब मनाई जाती है ?

अन्नपूर्णा जयन्ती (When Annapurna Jayanti is celebrated?) प्रति वर्ष अगहन माह की पूर्णिमा के दिन देवी अन्नपंर्णा के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन दान का महत्व अधिक माना जाता है ।

वैसे तो सनातन धर्म की प्रथाओं के अनुसार नित्य ही प्रत्येक घर में पहली रोटी गाय के लिए निकाली जाती है और अंतिम रोटी कुत्तों के लिए निकाली जातीं हैं, यह भी दान का एक प्रतीक है। 

इस वर्ष अर्थात सन् 2022 में अन्नपूर्णा जयन्ती (This year Annapurna Jayanti) 08 दिसम्बर 2022 को मनाई जायगी  ।

माह मार्गशीर्ष पूर्णिमा

तिथी आरंभ –   दिनांक 07 दिसम्बर 2022 , दिन बुधवार   प्रातः 08 – 01 बजे से

तिथि समाप्त –  दिनांक 08 दिसम्बर  2022, दिन गुरुवार प्रातः 09 – 37 बजे तक। 

तिथि उदय के अनुसार अन्नपूर्णा जयन्ती दिनांक 08 दिसम्बर 2022 को मनाई जायगी  ।

देवी अन्नपूर्णा को किन-किन नामों से जाना जाता है  ?

देवी अन्नपूर्णा को माँ अन्नपूर्णा के अलावा  माता अन्नपूर्णेश्वरी तथा  माता अन्नदा के नाम से भी पुकारा जाता है।  ऐसा भी माना जाता है कि देवी शाकुम्भरी भी माता अन्नपूर्णा ही हैं। 

देवी अन्नपूर्णा का उल्लेख किन ग्रंथों में  मिलता है  ?

देवी अन्नपूर्णा का उल्लेख हिन्दू धर्म के अनेकों ग्रंथो में पढ़ने को मिलता है जैसे कि  – 

शिव रहस्य ;  रुद्रयामाला ;  अन्नपूर्णामतसव ;  महात्रिपुरा सिद्धांत; अन्नपूर्णावमती  ;  भैरवाह्यं तंत्र  ; अन्नपूर्णामालिनि नक्षत्रमालिका ; स्कन्दपुराण  (काशीखण्ड) ; लिंग पुराण ।  

इन ग्रंथों के अलावा महाकवि कालीदास द्वारा रचित  रघुवंशम महाकाव्य के प्रारंभिक श्लोकों में देवी अन्नपूर्णा का नाम/ उल्लेख आता है। 

अन्नपूर्णा जयन्ती पूजा विधि  –

अगहन मास की पूर्णिमा के दिन माँ अन्नपूर्णा की जयन्ती के कारण माता अन्नपूर्णा की पूजा बड़े आदर भाव से की जाती है। (Rules to worship on Annapurna Jayanti)

इस दिन सुबह उठकर अपने घर की रसोई को सुबह – सुबह बहुत अच्छे से साफ-सफाई  करते हैं तथा धोकर पौंछा लगाकर स्वच्छ किया जाता है।  

खाना पकाने की प्रक्रिया शुरु करने से पहले गंगाजल की कुछ मात्रा हाथ में लेकर रसोई में पवित्रता के लिए छिड़कें।  अगर गंगाजल उपलब्ध ना हो तो गुलाब जल की कुछ बूंदें छिड़कें ।  उस की महक से रसोई में पवित्रता का अह्सास होगा। 

रसोई की साफ सफाई करते समय चूल्हे की विशेष रूप से सफाई करें।  अगर आधुनिक चूल्हे हैं तो गीले कपड़े से अच्छी तरह साफ करें और यदि गाँव आदि में मिट्ट के चूल्हे हैं तो उन पर पोता फेर कर शुद्ध करें। 

भोजन बनाना शुरु करने से पहले देवी अन्नपूर्णा का ध्यान करते हुए चूल्हे पर टीका लगायें। 

इस दिन भोजन में खीर अवश्य बनाऐं और माँ अन्नपूर्णा को उस का भोग लगाऐं  ।

रसोई घर अथवा घर के पूजा स्थल पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर पवित्र करने के पश्चात कुछ फूलों की पंखुड़ियाँ डालें अथवा थोड़ा सा साबुत अनाज हो तो उसे बिछा कर माँ अन्नपूर्णा की तस्वीर स्थापित करें।

अगर देवी अन्नपूर्णा की तस्वीर घर पर उपलब्ध ना हो तो माता पार्वती और भगवान शिव जी की तस्वीर रखें ।यह इसलिए रखते हैं क्योंकि देवी अन्नपूर्णा माता पार्वती का ही रूप है। इसी वजह से इस दिन देवी पार्वती व भगवान शिव जी की पूजा भी की जाती है  ।

सबसे पहले तस्वीर पर चन्दन या रोली से तिलक लगाकर फूल अर्पित करें  ।

अब तस्वीर के आगे दीपक जलाऐं। दीपक जलाकर सबसे पहले श्री गणेश जी का ध्यान करें और उन को प्रणाम कर माता अन्नपूर्णा का ध्यान करते हुए निम्न मन्त्र बोलकर उनकी पूजा अर्चना करें  –

   ” ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवती अन्नपूर्णे नमः ।”

   ” ऊँ ह्रीं श्रीं नमो भगवती प्रसन्न पारिजातेश्वरि  अन्नपूर्णे स्वाहा । “

    “ऊँ श्रीं ह्रीं नमो भगवती माहेश्वरी प्रसन्न वरदे अन्नपूर्णे स्वाहा  ।”

     “ऊँ  सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुवान्वितः । 

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः  ।।”

अब भगवान शिव को याद करते हुए/ध्यान करते हुए बोलें  –

     ” ऊँ महादेवाय नमः  ।”

     ” ऊँ  नमः शिवाय  ।”

इस के बाद बोलें  – 

    “ऊँ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभ ज्ञान वैराध्य सिद्ध्यन्ति भिक्षां देहि पार्वती  ।।”

(अर्थात  – हे माँ अन्नपूर्णा, जो सदा पूर्ण हैं, भगवान शिव को प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं,  वो माँ पार्वती मुझे अपनी कृपा की भिक्षा दो । मेरे भीतर आध्यात्मिक ज्ञान,  आंतरिक स्वतंत्रता, समृद्धि  और आध्यात्म  जगाओ। )

    ” ऊँ माता मे पार्वती देवी पिता देवो महेश्वर  ।

     बंधवाः शिव भक्तास्क स्वदेशो भुवनत्रियम्  ।।”

    (अर्थात  –  मेरी माता पार्वती हैं,  मेरे पिता सर्वोच्च भगवान महेश्वर (शिव), मेरे रिश्तेदार, बन्धु – बांधव भगवान शिव के भक्त हैं, चाहे वे तीनों लोकों में कहीं भी हों  ।)”

पूजा के अंत में अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए  ।

पूजा समाप्त होने पर खड़े होकर बड़ी श्रद्धा के साथ देवी अन्नपूर्णा की आरती करें  ।

आरती समाप्त होने पर माँ अन्नपूर्णा को भोग लगाऐं,  तत्पश्चात आरती के समय उपस्थित सभी को आरती दें और आरती को अपने आवास के सभी कमरों में घुमाऐं,  इस से घर में positive energy  रहती है  ।

माँ अन्नपूर्णा की आरती  –

बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम  ।।

जो नहीं ध्यावे तुम्हे अम्बिके, कहाँ उसे विश्राम ।

अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम  ।।

               बारम्बार प्रणाम मैया…..

प्रलय युगांतर और जन्मांतर, कालांतर तक नाम  ।

सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम  ।।

                 बारम्बार प्रणाम मैया…..

चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर  श्याम  ।

चन्द्रचूड़ चन्द्रानन चाकर,  शोभा लखहि ललाम  ।।

                   बारम्बार प्रणाम मैया….

देवी देव दयनीय दशा में, दया दया तब नाम ।

त्राहि त्राहि शरणागत वत्सल,  शरण रूप तब धाम ।।

                    बारम्बार प्रणाम मैया….

श्रीं ह्रीं श्रद्धा श्री ऐं विद्या,  श्रीं क्लीं कमला काम । 

कान्ति,  भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी,  वर दे तू निष्काम  ।।

                     बारम्बार प्रणाम मैया…

   ” माता अन्नपूर्णा की जय  ।।”

दैवी अन्नपूर्णा जयन्ती – पौराणिक कथाऐं कौन-कौन सी हैं

Annapurna Jayanti Story -1

पुराणों में ऐसा उल्लेख आता है कि एक बार पृथ्वी पर  पानी और अन्न की भारी कमी होने के कारण चारों ओर त्राहि – त्राहि मचने लगी और अभाव के कारण मनुष्यों  /  जीवों का जीवित रहना लगभग असंभव होता जा रहा था। 

इस कारण चारों ओर हाहाकार मचने लगा। पृथ्वी पर मची त्रासदी से दुखी हो कर सभी ने भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आराधना कर के इस आपदा के बारे में बताया और किसी तरह जीवन बचे इसलिए इस समस्या के समाधान के लिए घोर प्रार्थना करीं। 

पृथ्वीलोक के पीड़ित मनुष्यों की प्रार्थना सुन कर दोनों भगवान (ब्रह्मा जी एवं  विष्णु जी)  बहुत चिंतित हुए और शीघ्र समाधान के लिए वे महादेव शिव के पास गए।  उन्होंन भगवान शिव को योग निद्रा से जगा कर  पृथ्वीलोक पर आयी विपदा से अवगत कराया और महादेव जी से शीघ्र समाधान/ लोगों को राहत दिलाने की प्राथना की । 

भगवान शिव ने समस्या की गंभीरता जानकर  स्वयं पृथ्वीलोक जा कर त्रासदी की हालात का निरीक्षण किया।  जब भगवान शिव त्रासदी का निरीक्षण करने पृथ्वीलोक गये तो उस समय माता पार्वती, जो अत्यंत दयालु हैं, उन्होंने माँ अन्नपूर्णा का रूप धारण किया जिस से कि वह अपनी दिव्य शक्ति से मनुष्यों  / जीवों को अन्न आदि प्राप्त करा सकें 

 और उन का जीवन संकट मिटा सकें।  भगवान भोलेनाथ शिव ने पृथ्वी पर लोगों की भूख के कारण होने वाली दयनीय दशा देख कर माता अन्नपूर्णा का ध्यान किया और उन से मनुष्यों का जीवन बचाने के लिए चावल (अन्न) भिक्षा में मांगे ।

देवी अन्नपूर्णा ने अपनी दिव्य शक्ति से प्रचुर मात्रा में अन्न  / चावल उपलब्ध कराए जिन्हें भगवान शिव ने पीड़ित लोगों में बाँट दिया।  इस से पृथ्वीलोक के लोगों का जीवन बचा। 

जिस दिन माँ पार्वती ने देवी अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और पीड़ित लोगों की जान बचाने के लिए अन्न उपलब्ध कराया तभी से इस पृथ्वी पर यह दिन अन्नपूर्णा जयन्ती के रूप में मनाया जाता है।  इस पर्व को मनाने से लोगों में अन्न का आदर करना, उसे व्यर्थ न करना तथा उस का संरक्षण करने के लिए प्रेरणा मिलती है  ।

Annapurna Jayanti Story -2

इसी प्रकार माँ अन्नपूर्णा के बारे में एक और कथा का विवरण मिलता है , जिस के अनुसार जब भगवान श्रीराम सीता हरण के पश्चात उन की खोज करने के लिए वानर सैना के साथ वनों में घूम रहे थे ।

उस समय भी माता अन्नपूर्णा उन सब के लिए नियमित भोजन उपलब्ध कराती थीं और जब तक यह कार्य पूरा नहीं हुआ तब तक देवी अन्नपूर्णा ने सब के लिए भोजन की व्यवस्था बनाए रखी । 

Annapurna Jayanti Story -3

इसी प्रकार का एक विवरण और मिलता है जिसके अनुसार जब भगवान शिव काशी में प्रवास कर मनुष्योः को मोक्ष प्रदान कर रहे थे ।

उस समय माता पार्वती ने देवी अन्नपूर्णा का रूप धारण कर जीवित लोगों के लिए भोजन की आवश्यक व्यवस्थाऐं स्वयं देखतीं/ संचालित करती थीं , जिस से कि जीवित लोगों को किसी प्रकार के खाद्य पदार्थ का अभाव न  हो  ।

अतः इस प्रकार के कई प्रसंगों से देवी अन्नपूर्णा की मनुष्यों के प्रति अपार दयालुता देखने को मिलती है।

अन्नपूर्णा जयन्ती का महत्व  –

इस पर्व पर घर की रसोई को विशेष  रूप से साफ किया जाता है जिस से मनुष्यों में  (विशेषकर स्त्रियों में) यह संदेश जाता है कि रसोई घर  / भोजन बनाने का स्थान सदैव साफ सुथरा होना चाहिए  अर्थात Improved hygienic conditions होनी चाहिए,  जिस से सबके स्वास्थ्य की रक्षा हो।   

यह पर्व अन्न का सम्मान करना सिखाता है और अन्न को व्यर्थ फैकना नहीं चाहिए। 

यह उत्सव अन्न की उपयोगिता का ज्ञान कराता है  ।

इस दिन व्रत करने से दीर्घ आयु का आशीर्वाद मिलता है तथा घर में धन-धान्य की संपन्नता रहती है  व उत्तम संतान प्राप्त होती है  ।

भोजन बनाते समय माँ अन्नपूर्णा का ध्यान मन में रहने से भोजन अधिक रुचिकर बनता है  ।

देवी अन्नपूर्णा बहुत दयालु स्वभाव की हैं।  इन का ध्यान करने से माँ अन्नपूर्णा अपने भक्तों को सांसारिक सुख का आशीर्वाद प्रदान करतीं हैं  व मोक्ष प्रदान करती हैं।  इसीलिए प्रसिद्ध ॠषि – मुनी माँ अन्नपूर्णा की आराधना करते हुए कहते हैं  –

” शोषिणी सर्वपापानां चोचनी सकलापदाम्  ।

दरिद्रयमनी नित्यं सुख – मोक्ष प्रदायिनी  ।।”

महाराष्ट्र  / मराठी  शादी-विवाहों में परंपरानुसार दुल्हन की माँ उस को देवी अन्नपूर्णा और भगवान श्रीकृष्ण के बाल रुप की मूर्तियाँ देती हैं।  इस से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि माँ अन्नपूर्णा की घर में कितनी महत्वपूर्ण है  ।

इस दिन थोड़ा सा अनाज भिगो कर पक्षियों को खाने के लिए डालना चाहिए।  ऐसी मान्यता है कि इस सै घर की दरिद्रता समाप्त होती है  ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न  (Frequently Asked Questions) –

Q.  अन्नपूर्णा जयन्ती कब होती है ?

Ans.  अन्नपूर्णा जयन्ती प्रति वर्ष अगहन ( मार्गशीर्ष) मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है  ।

Q.   इस वर्ष अन्नपूर्णा जयन्ती कब है ?

Ans.   इस वर्ष अन्नपूर्णा जयन्ती 08 दिसम्बर 2022 की है। 

Q.   अन्नपूर्णा जयन्ती किस दिन मनाई जाती है  ?

Ans.   अन्नपूर्णा जयन्ती माँ अन्नपूर्णा के जन्म दिवस अर्थात जिस दिन माता पार्वती ने माँ अन्नपूर्णा का रूप धारण किया था उस दिन मनाई जाती है  ।

Q.    अन्नपूर्णा जयन्ती के दिन लोग क्या करते हैं  ?

Ans.   इस दिन सभी लोग अपनी रसोई को विशेष रूप से साफ-सफाई करके भोजन बनाते हैं तथा परिवार की सुख  समृद्धि के लिए माता अन्नपूर्णा की पूजा  अर्चना करते हैं  ।

Q.   किन दशाओं में माता अन्नपूर्णा की पूजा / अर्चना अधिक फलदायी होती है ?

Ans.  1)  अगर कुण्डली में दरिद्र योग या चांडाल योग हो तो माँ अन्नपूर्णा की आराधना विशेष फलदायी होती है।

      2)   यदि कुण्डली में शनि पंचम, अष्टम या द्वादश भाव में हों या राहू द्वितीय या अष्टम भाव में हो अथवा विष योग हो तो माँ अन्नपूर्णा की आराधना इनके कुप्रभाव से रक्षा करती है  ।