दशहरा हिन्दू / सनातन धर्म मानने वालों का भारत में महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। दशहरा (Dussehra) का त्यौहार न केवल संपूर्ण भारत में मनाया जाता है, बल्कि अन्य कई देशों में भी मनाया जाता है । हर जगह दशहरा का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मिलकर मनाया जाता है। भारत के कुछ प्रांतों में इस त्यौहार को विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है ।
दशहरा का त्यौहार कब मनाते हैं ?
दशहरा का त्यौहार सामान्यतः सितंबर- अक्टूबर के आसपास मनाया जाता है। इसका निनिर्ण हिन्दू कलेंडर / पंचांग के अनुसार किया जाता है। यह त्यौहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। इसके साथ यह परंपरा जुड़ी हुई है कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम नौ तिथियों को, जिन्हे नवरात्रा कहा जाता है, माँ दुर्गा के विभिन्न शक्ति रूपों की प्रत्येक दिन पूजा होती है और नवरात्रों से अगले दिन दशहरा / विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है।
दशहरा का अर्थ (Meaning of Dussehra)
दशहरा शब्द का संधि विच्छेद करने से मालुम होता है कि दशहरा शब्द दो(2) शब्दों से मिलकर बना है, अर्थात दश + हारा। दश का अर्थ है 10 और हारा का अर्थ है पराजय। यह दशानन अर्थात दस शीश वाले रावण की पराजय यानि श्री राम के साथ युद्ध में मारे जाने वाले दिन का प्रतीक है।
पौराणिक कथाऐं (Dussehra Stories)
दशहरा जिस दिन मनाया जाता है उस से कुछ पौराणिक कथाऐं भी जुड़ी हुई हैं, जिन का जिक्र हमें पढ़ने को मिलता है।
एक समय जब दैत्यों के सरदार महिषासुर तथा अन्य दैत्य/ राक्षस समुदायों ने देवताओ से युद्ध कर के इन्द्र आदि सब देवताओ को हरा दिया था और उन के सारे अधिकार छीन लिए थे, तब उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना करी थी कि कुछ ऐसा उपाय करें कि दैत्यों के अत्याचारों से उन्हे मुक्ति मिले और उन के अधिकार वापस मिलें। भगवान शिव के कहने पर माँ दुर्गा ने अपने विभिन्न शक्ति रूपों में दैत्यों के साथ घोर युद्ध किया और अन्त में महिषासुर व उस की सैना मारी गई । इसी दशमी वाले दिन ही महिषासुर दैत्य मारा गया था। इसलिए नवरात्रों के बाद दशहरा का पर्व मनाया जाता है।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था तो उनको रावण से मुक्त कराने के लिए भगवान श्री राम को रावण के साथ भीषण युद्ध करना पड़ा और अंत में रावण की पराजय हुई तथा जिस दिन रावण का युद्ध में श्री राम द्वारा वध हुआ वह दिन भी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी का दिन था। अतः उस दिन को दशहरा कै रूप में मनाए जाने लगा।
यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है।
एक कथा के अनुसार महाभारत काल में पांडवों को अज्ञातवास हुआ था। जिस दिन पांडव अपना अज्ञातवास पूरा कर के इन्द्रप्रस्थ लौटे थे उस दिन भी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी थी। अतः इस दिन को दशहरा के साथ जोड़ा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन ही अर्जुन ने कौरवों की सैना को हराया था। इसलिए इस दिन को विजया के नाम से विजयदशमी कहा जाता है ।
एक अन्य कहानी कौत्स के राजा रघु से जुड़ी है। इस के अनुसार कौत्स के राजा रघु से उन के गुरु ने अपने ज्ञान की दीक्षा के बदले में उनसे 14 करोड सोने की अशर्फी मागीं। अपने गुरु के आदेश को पूरा करने के लिए राजा रघु इन्द्र देवता के पास मदद के लिए गये और अपनी बात बताई। इन्द्र देवता ने भगवान कुबेर से अयोध्या पर सोने के सिक्कों/ अशर्फियों की वर्षा करने को कहा। इस पर भगवान कुबेर ने अयोध्या पर सोने के सिक्कों/ अशर्फीयों की वर्षा की । तब राजा रघु ने अपने गुरु को 14 करोड सिक्के दिये और जो बाकी बचे वह अयोध्यावासियों में बाँट दिये। जिस दिन यह घटना हुई वह भी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान बुद्ध ने इसी दिन अर्थात आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को ही बौद्ध धर्म अपनाया था ।
दशहरा का त्यौहार समस्त भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ सभी लोग मनाते हैं। यह एक अत्यन्त खुशी के पर्व के रूप में मनाया जाता है , तथा इसके समारोह कई दिनों तक चलते हैं। जैसे –
रामलीला का आयोजन (Ramleela Ka Ayojan)
सामान्यतः उत्तर और पश्चिम भारत के लगभग सभी शहरों में रामलीला का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है जिसमें वहाँ के स्थानीय कलाकार रामायण की पूरी कहानी को नाट्य रूप में बड़ी कुशलता से प्रस्तुत करते हैं। जिस को देखने के लिए शहर के निवासियों की भारी भीड़ आती है। इस क्रम में दशहरे के दिन रावण, मेघनाथ तथा कुंभकरण बड़े- बड़ी विशाल पुतले बनाए जाते हैं जिनमें बड़े भारी आवाज के पटाखै भी लगाए जाते हैं। रावण दहन शाम के समय एक नाट्य रूप में जो कलाकार राम का रोल कर रहा होता है वह रावण पर तीर चलाता है और उसको अग्नि दिखा दी जाती है। रावण दहन देखकर लोग बहुत खुश होते हैं ।
रामलीला आयोजन से एक बड़ा लाभ यह भी होता है कि परम्परागत ज्ञान की समाज में पुनरावृति होती रहती है और सांस्कृतिक प्रथाऐं पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रहती हैं।
विजयदशमी का उत्सव –
पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तथा आसाम राज्यों में एवं भारत वर्ष के अन्य राज्य जहाँ इन राज्यों से जुड़े लोग प्रवास करते हैं, वहाँ नवरात्रों का त्यौहार दुर्गा पूजा के नाम से बड़ी धूमधाम और सजावटी पंडाल बनवा कर मनाया जाता है। नवरात्रों के अगले दिन को अर्थात दशमी वाले दिन को बिजोया दशमी के नाम से पुकारते हैं। बिजौया दशमी को दुर्गा देवी जी की मूर्तियों को विशाल जलूस के रूप में किसी पवित्र नदी पर ले जाया जाता है और वहाँ पर उन मूर्तियों का विसर्जन करते हैं। विवाहित स्त्रियाँ एक दूसरे के मुख पर सिंदूर लगाती हैं तथा अन्य सभी आपस में बधाईयों का आदान-प्रदान करते हैं। बहुत से परिवार एक दूसरे को दावत/ भोजन पर आमंत्रित करते हैं। इस पर्व पर बंगाल आदि के लोग इस प्रकार भोजन पर आमंत्रित करने को बहुत महत्व देते हैं और आनन्द महसूस करते हैं ।
शस्त्र पूजा –
दशहरा वाले दिन पूजा के समय कुछ स्थानों पर शस्त्र पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। विशेषकर जो लोग क्षत्रीय जाति के हैं या जिनका सम्बन्ध राजघरानों, शासकों या सैन्य गतिविधियों से रहा हो कयोंकि शस्त्रों के आधार पर ही युद्ध में विजय प्राप्त की जाती है।
भारत के कुछ प्रदेशों का दशहरा आयोजन बहुत प्रसिद्ध है –
कुल्लू का दशहरा –
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर में दशहरे पर भगवान रघुनाथ की शोभा यात्रा निकाली जाती है। कुल्लू के ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ की पूजा होती है और दशहरा मेला का प्रोग्राम सात दिन चलता है। इस मेले को देखने के लिए देश – विदेश से बहुत भारी संख्या में सैलानी दशहरा मेला देखने के लिए कुल्लू आते हैं ।आसपास के गावों के लोग इस जुलूस में विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां लाते हैं और पूरी कुल्लू घाटी खुशियों से भर जाती है ।
कर्णाटक का कार्निवाल उत्सव
कर्नाटक में दशहरा उत्सव कार्निवाल जैसा मनाया जाता है। यह जीवन्त कार्निवाल जैसा उत्सव ‘मरियम्मा उत्सव ‘ के रूप में मनाया जाता है। वहाँ की जनता इसमें बड़े उत्साह से लोक नृत्य करते हैं जिसे वह द्रौपदी को समर्पित करते हैं। यहाँ पर परेड भी आयोजित की जाती है जिसमें स्थानीय कलाकार देवी देवताओ और बोनों का नानाट्य प्रदर्शन करते हैं ।
तमिलनाडु का विशेष दशहरा
तामिल नाडू के कुलसेकरपट्टिनम में दशहरा एक अलग अंदाज में मनाया जाता है। यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है। यह दशहरा उत्सव मुथारम्मन मंदिर के पास मनाया जाता है, जिसमें संगीत, नृत्य और नाटक का काफी इस्तेमाल किया जाता है। लोग अपनी अनूठी वेश भूषा पहनते हैं और उत्सव में झूमते हैं।
दिल्ली में रामलीला आयोजन –
दिल्ली में नवरात्रों में रामलीला का आयोजन होता है जो बहुत प्रसिद्ध है। स्थानीय कलाकार रामायण की कथाओं को नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो कि बहुत सजीव होती है व अथाह भीड़ आकर्षत करती है। दशहरा वाले दिन रामलीला मैदान में रावण के पुतले को राम के रूप का कलाकार तोर मार के वध करता है और रावण दहन किया जाता है।
गुजरात में दशहरा पर्व –
गुजरात में दशहरा पर्व वहाँ के प्रसिद्ध नृत्य गरबा के साथ मनाया जाता है। यह नृत्य बहुत मनमोहक होता है।
पंजाब में दशहरा
पंजाब में पूरे नवरात्र उपवास के बाद दशहरा का पर्व मनाया जाता है। नवरात्रों में अधिकांश परिवार देवी जी की पूजा करते हैं तथा अधिकांश परिवार देवी जी का जगराता कराते हैं । तथा कुछ लोग कॆचकों के साथ भ॔डारा भी करते हैं। पंजाब में रावण दहन भी देखने को मिलता है।
छत्तीसगढ में दशहरा
छत्तीसगढ में दशहरा पर प्रकृति की पूजा होती है तथा एक अनोखे प्रकार से दशहरा का पर्व मनाया जाता है। वहाँ देवी दन्तेश्वरी की पूजा होती है तथा दशहरे के आयोजन में कुछ अलग तरह के अनुष्ठान होते हैं जैसे पाटा जात्रा , डेरी गढ़ाई, कंचन गाड़ी, निशा जात्रा एवं मुरिया दरबार आदि। अंतिम दिन वे आदिवासी सरदारों और ओहदी देवताओ की बिदाई करते हैं।
दशहरा पूजन विधि (Dussehra Poojan)
दशहरा पूजन के लिये घर पर गाय के गोबर से दशहरा बनाया (रखा) जाता है।उसमें दो कटोरी बनाई जाती हैं। एक में जौं या जौं के नोरते रखते हैं तथा दूसरे में लौकी का रायता रखते हैं। कुछ स्थानों पर दशहरे के पास कच्ची सब्जी भी रखते हैं ।पुस्तक व अस्त्रों पर स्वास्तिक बनाते हैं दीपक जलाते हैं तथा अज्ञारी में लौंग चढ़ाते हैं।
गणेश जी को प्रणाम करके देवी दुर्गा और भगवान श्री राम का पूजन करते हैं। पूजन के बाद दशहरा की 5 परिक्रमा करके देवी माँ और भगवान श्री राम की आरती करके पूजन समाप्त करते हैं।