Q.1. बसन्त पंचमी का त्यौहार किस माह में आता है ? (Vasant Panchami Festival’s Month)
बसन्त पंचमी का त्यौहार माघ मास के प्रारंभ में आता है ।
Q.2. बसन्त पंचमी का त्यौहार किस तिथि को मनाया जाता है ?
बसन्त पंचमी का त्यौहार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है ।
Q.3. बसन्त पंचमी किस ॠतु के आगमन का सूचक है ?
बसन्त पंचमी को बसन्त ॠतु के आगमन / प्रारंभ का सूचक है।
Q.4. बसन्त पंचमी के दिन किस की पूजा होती है ?
बसन्त पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इस के अलावा कामदेव व रति देवी की पूजा तथा माता पार्वती व भगवान शिव की पूजा भी की जाती है।
Q.5. बसन्त पंचमी के दिन किस रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए ?
बसन्त पंचमी के दिन पीले या श्वेत रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए ।
Q.6. बसन्त पंचमी के दिन किस रंग की मिठाई व फूल चढ़ाने चाहिए ?
बसन्त पंचमी के दिन माँ सरस्वति को पीले फूल व पीली मिठाई अर्पित करनी चाहिए ।
Q.7. बसन्त पंचमी के दिन किस हिन्दू राजा का जन्म दिवस होता है ?
बसन्त पंचमी के दिन प्रसिद्ध हिन्दू राजा- राजा भोज का जन्म दिवस होता है ।
Q.8. बसन्त पंचमी का दिन सिख समुदाय के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ?
बसन्त पंचमी के दिन सिख समुदाय के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी का विवाह हुआ था। इसीलिए इस दिन को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं।
Q.9. बसन्त पंचमी होली से कितने दिन पहले आती है ?
बसन्त पंचमी होली से 40 दिन पहले आती है।
Q. 10. बसन्त पंचमी का होली के पर्व से क्या संबंध है ?
परंपरागत रीति-रिवाजों के अनुसार बसन्त पंचमी के दिन ही होली रखी जाती है और होली आने तक उसमें लकड़ी आदि बढ़ाते रहते हैं ।
Q. 11. बसन्त पंचमी के दिन भारत में किस शैक्षिक विद्यालय का प्रारंभ हुआ था ?
बसन्त पंचमी के दिन भारत के प्रसिद्ध हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस का प्रारंभ हुआ था।
आपके मन में ये प्रश्न जरूर आता होगा कि बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है? आइए बसन्त पंचमी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बसन्त पंचमी का त्यौहार एक बड़े उत्सव के रूप में भारत के लगभग सभी प्रदेशों में तथा कुछ पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है।
इस पर्व को न केवल बसन्त के आगमन के लिए बल्कि माँ सरस्वति के जन्म दिवस/ प्रकाट्य दिवस तथा उन की जयजयन्ती के रूप में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के समर्पण के साथ मनाया जाता है।
बसन्त पंचमी का त्यौहार वैदिक पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथी को मनाया जाता है। यह दिन मुख्यतः स्वर, संगीत, विद्या एवं कला की देवी माँ सरस्वति को समर्पित कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम जब इस पृथ्वी लोक पर ब्रह्मा जी ने मनुष्यों को उत्पन्न किया तो चारों ओर सूनसान सन्नाटा था , तथा किसी प्रकार का स्वर या शोर वातावरण में नहीं था अर्थात मनुष्यों में, जीव – जन्तुओं में वाणी का अभाव था।
ऐसी स्थिति देख कर ब्रह्मा जी बहुत स्तब्ध थे। इस समस्या के हल के लिए उन्होंने भगवान विष्णु से विमर्श किया और उन की आज्ञानुसार ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से कुछ जल पृथ्वी पर छिड़का।
जिस से पृथ्वी पर एक विशेष प्रकार का कम्पन्न सा होने लगा और कुछ ही क्षणों में एक अत्यन्त सुन्दर श्वेत वस्त्र धारण किए हुई नारी (देवी) का प्रकाट्य हुआ जिस की चार भुजाऐं थी। उन के एक हाथें वीणा वाद्य यंत्र (स्वर्ग प्रदान करने का यंत्र) था तथा उन का एक हाथ वर मुद्रा में था।
उन के एक हाथ में पुस्तक थी जो कि विद्या एवं ज्ञान का प्रतीक है तथा एक हाथ में माला थी। अपने प्रकाट्य के बाद इस देवी ने अपने वाद्य यंत्र अर्थात वीणा से स्वर निकाला जो कि अत्यन्त मधुर नाद था।
उस मधुर नाद / स्वर के कम्पन के वातावरण में फैलने से पृथ्वीलोक पर जो भी जीव या अन्य वनस्पतियाँ, तथा जल आदि थे उन सभी को स्वर अर्थात वाणी प्राप्त हो गई।
मनुष्य बोलने लगे, जानवर अलग – अलग तरह की आवाज निकालने लगे, चिड़ियाऐं चहचहाने लगीं, वनस्पतियों के पत्ते हिलते तो उन से एक अलग तरह की ध्वनि आने लगी, बहते हुए जल से भी कल- कल का स्वर सुनाई देने लगा।
उस देवी की इस शक्ति का इतना विशाल प्रभाव देख कर ब्रह्मा जी ने उन्हें वाणी की देवी ‘सरस्वती ‘ नाम दिया।
माँ सरस्वति के प्रकाट्य के समय उन के हाथों में वीणा थी इसी वजह से माँ सरस्वति को संगीत की देवि के साथ -साथ बुद्धि, प्रज्ञा, एवं मनोवृतियों की संरक्षिका भी कहा गया है।
इसका उल्लेख हमें ऋग्वेद के षष्ठं मण्डलम् में विस्तार से श्लोक संख्या 5002 से 5015 तक उद्धृत मिलती है। श्लोक संख्या 5005 में कहा गया है कि –
“प्रणो देवि सरस्वति वाजेभिर्वजिनीवती। धीनामणित्रयवतु ।।”
( अर्थात- माँ सरस्वति परम चेतना हैं, सरस्वति के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृतियों की संरक्षिका हैं।) औद्योगिक औऔऔउ
जिस दिन माँ सरस्वती का प्रकाट्य हुआ था वह दिन बसन्त पंचमी का था। इसीलिए इस दिन को माँ सरस्वति के जन्म दिवस / जयन्ती के रूप में बड़े हर्षो उल्लास के साथ तथा बड़े भक्ति भाव से उनकी पूजा अर्चना करके मनाया जाता है।
पुराणों में एक कथा ऐसी भी मिलती है जिस के अनुसार देवि सरस्वति का प्रकाट्य ब्रह्मा जी के मुख / जिह्वा से हुआ बताया गया है।
बसन्त पंचमी का पर्व एक ॠतु परिवर्तन का भी प्रतीक है। यह शरद ॠतु की समाप्ति तथा बसन्त ॠतु के आगमन/ प्रारंभ होने का द्योतक है।
बसन्त पंचमी के बाद दिन का मौसम सूर्य के उत्तरायण हो जाने की वजह से धीरे – धीरे गरम होने लगता है तथा दिन भी बड़े होने लगते हैं व रातें शनै- शनै छोटी होने लगतीं हैं।
इस बदलाव का एक बड़ा प्रभाव यह होता है कि सभी जीव जन्तु इस ॠतु में अधिक क्रियाशील अर्थात अधिक शारीरिक फुर्ती में आने लगते हैं जिस से उन के कार्यों की उत्पादकता बढ़ने लगती है।
यही नहीं, बसन्त ॠतु आने से पृथ्वी पर जो भी वनस्पतियाँ हैं वह नये रूप में उत्पादित होती दिखाई देतीं हैं। नई – नई कलियाँ खिलने लगतीं हैं, नाना प्रकार के फूल आने लगते हैं।
आम के पेङों पर बौर आने लगते हैं, किसानों के खेतों में सरसों के पीले फूल सोने की तरह लहलहाते दिखाई देते हैं, नये अनाज की फसलें अधिक उत्पादन के लिए पक कर तैयार होने लगतीं हैं। सब मिलकर पूरी पृथ्वी पर एक अत्यधिक स्वस्थ वातावरण की आभा दिखाई देती है ।
बसन्त पंचमी का पर्व होली के त्यौहार से ठीक 40 दिन पहले आता है और यह पर्व होली का त्योहार आने वाला है इस का भी प्रतीक है क्योंकि बसन्त पंचमी के दिन ही सभी जगह होली को सांकेतिक रूप में रखा जाता है।
बसन्त पंचमी के दिन सभी विद्यालयों/ कालेजों, विश्वविद्यालयों आदि संस्थाओं में माँ सरस्वति की पूजा के साथ – साथ उन के बारे में व्याख्यान / व्याख्यान मालाऐं भी आयोजित की जातीं हैं ।
जिस से कि नई संतति (Generations) को परंपरागत रीति-रिवाजों की समुचित जानकारी मिले व उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान एवं जाग्रति का लाभ मिल सके। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माँ सरस्वति की पूजा करने से माता लक्ष्मी तथा माँ काली देवी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
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बसन्त पंचमी तिथि व शुभ मुहूर्त –
वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार बसन्त पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निम्न प्रकार रहेगी (बसंत पंचमी कितनी तारीख की है?)-
पंचमी तिथि प्रारंभ – 25 जनवरी 2023 दिन बुधवार दोपहर 12-34 बजे से ।
पंचमी तिथि समाप्त – 26 जनवरी 2023 दिन गुरुवार प्रातः 10-28 AM पर ।
माँ सरस्वति पूजा
शुभ मुहूर्त – दिनांक 26 जनवरी 2023 दिन गुरुवार प्रातः 07-12 AM से दोपहर 12-34 बजे तक ।
अतः उदया तिथि के अनुसार इस साल बसन्त पंचमी दिनांक 26 जनवरी 2023 को ही मनाई जायगी ।
बसन्त पंचमी के विभिन्न नाम –
बसन्त पंचमी के पर्व को कई नामों से भारत के विभिन्न प्रदेशों में जाना जाता है। जैसे –
बसन्त उत्सव, बसन्त पंचमी, श्री पंचमी, ॠषि पंचमी, वागीश्वर जयन्ती, मदन पंचमी, मदनोत्सव, सरस्वति पूजा, आदि।
भारत के पड़ोसी देश नैपाल, बंग्लादेश में भी यह उत्सव बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। बंग्लादेश में तो इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है तथा सभी स्कूल, कालेज, एवं विश्वविद्यालयों में अनेकों प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ।
यह पर्व जावा, बाली, व इन्डोनेशिया में ‘हरि राया सरस्वति ‘ (अर्थात सरस्वति का महान दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
बसंत पंचमी पूजा विधि एवं मन्त्र –
बसंत पंचमी के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले उठ कर नित्य कर्म से निवृत्त हों ।
इस के पश्चात शीघ्र ही स्नान करें।
अगर घर के निकट कोई पवित्र नदी हो तो वहाँ स्नान करना अधिक उत्तम है अन्यथा अपने घर पर ही स्नान करें।
स्नान करने से पहले सरसों के तेल में थोड़ा सा बेसन मिला कर शरीर पर उबटन लगाऐं।
स्नान करने से पहले कुछ बूंद गंगाजल की स्नान के जल में डालें या फिर स्नान के जल में माँ गंगा का निम्न श्लोक बोलकर आवाह्न करें –
” गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन संनिधिं कुरु ।।”
(अर्थात – हे माँ गंङ्गा , यमुना, गोदावरि, सरस्वति, नर्मदा, सिंध, कावेरि ! आप सब इस जल में निवास करो। ) इस प्रकार आवाह्न करने से सभी तीर्थ जल स्नान जल में आ जाते हैं ।
स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अगर संभव हो तो इस दिन पीले वस्त्र धारण करें अन्यथा श्वेत वस्त्र धारण करें।
इस के पश्चात माँ सरस्वति की पूजा का मन में संकल्प करें ।
बसन्त पंचमी की पूजा सदैव सूर्योदय के बाद तथा दिन के मध्य भाग से पहले ही की जाती है अर्थात माँ सरस्वति की पूजा पूर्वाह्न में ही करें ।
पूजा स्थल पर सफाई कर के कुछ बूंदें गंगाजल की अथवा शुद्ध जल की हाथ में लेकर पूजास्थल की पवित्रता के लिए यह बोलते हुए छिड़कें –
” ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्था वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ।।”
पूजा के स्थान पर भगवान श्रीगणेश की तथा माँ सरस्वति की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। अगर भगवान विष्णु व भगवान शिव एवं पार्वती हो तो उन्हें भी अवश्य रखें क्योंकि इस दिन इन की पूजा का भी विधान है।
पूजा में शुद्ध जल भरकर एक कलश ( लोटा) रखें ।
पूजा में पुस्तक तथा वाद्य यंत्र भी रखें ।
पूजा प्रारंभ करने से पहले गणेश जी को, माँ सरस्वति जी को तथा अन्य सभी मूर्तियों/ तस्वीरों पर गंगाजल या शुद्ध जल स्नान के प्रतीक छिड़कें ।
पूजा स्थल पर दीपक जलाऐं ।
सभी देवी/ देवताओं को आदर सहित तिलक लगाऐ और फूल अर्पित करें ।
पूजा प्रारंभ करने से पहले अपने मस्तक पर तिलक अवश्य लगाऐं। अगर पूजा के समय परिवार जन भी उपस्थित हों तो उन सभी को तिलक लगाऐं।
माँ सरस्वति को पीले फूल, अक्षत (चावल), पीला गुलाल, धूप दीप, सुगंध आदि अर्पित करें। पीले गैंदा के फूल की माला पहनाऐं व पूजा में माँ सरस्वति के भोग के लिए पीली मिठाई भी रखें।
भगवान श्रीगणेश को माँ सरस्वति की तरह बुद्धि का दाता माना जाता है अतः माँ सरस्वति की पूजा के साथ भगवान श्रीगणेश का पूजन करना आवश्यक है ।
पूजा के प्रारंभ में सबसे पहले भगवान श्रीगणेश का ध्यान करें और बोलें –
“ॐ श्रीगणेशाय नमः। “
“ॐ गं गणपत्ये नमो नमः। “
“ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति प्रचोदयात् ।।”
” ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्।
उमा सुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ।।”
भगवान श्रीगणेश के पूजन के बाद माँ सरस्वति का पूजन करें। माँ सरस्वति का ध्यान करते हुए बोलें –
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वति देव्यै नमः। “
माँ सरस्वति का ध्यान मन्त्र बोलें –
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वति परम रक्षिणी।
मं सर्व विघ्न वाधा निवारह निवारह स्वाहा ।।”
माँ सरस्वति का गायत्री मन्त्र बोलें –
“ॐ सरस्वत्यै विद्महे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात् ।।”
” ॐ वागदेव्यै विद्महे, कामराज्या धीमहि। तन्नो सरस्वति प्रचोदयात् ।।”
इसके पश्चात बोलें –
“या देवि सर्वभूतेषू विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्र्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वति भगवति निःशेषजाड्यापहाम् ।।
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यं जगद्वयापिनीं ।
वीणा पुस्तक धारिणीं भयदां जाड्यान्धकारा पहाम् ।।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरी भगवतीं बुद्धिप्रदाम् ।।”
अब माँ सरस्वति मन्त्र बोलें –
“ॐ श्री सरस्वति शुक्लवर्णां संस्मितां सुमनोहराम्
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टपुष्ट श्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकधारिणीम्
रत्नसारेन्द्र निर्माण नवभूषण भूषिताम् ।
सपूजितां सुरगुणै ब्रह्मविष्णुशिवादिषु ।।
वन्दे भक्तया वन्दिता च ।।
इस के बाद अगर संभव हो सरस्वति चालीसा का पाठ करें।
चुंकि बसन्त पंचमी के दिन सरस्वति पूजा के साथ साथ भगवान विष्णु तथा शिव पार्वती की पूजा का विधान है । अतः भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए बोलें –
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।”
” ॐ नमो नारायण विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।”
“नमस्ते सर्वलोकेश भक्तानामभयप्रद ।
संसारसागरे मग्नं त्राहिमां पुरुषोतम ।।”
(अर्थात- भक्तों को अभय प्रदान करने वाले सर्वलोकेश्वर! आप को नमस्कार है। मैं इस संसार सागर में डूबा हुआ हूँ, आप मेरा उद्धार करें । )
“नमो नमस्तेऽच्युत चक्रपाणे
नमोऽस्तु ते माधव मीनमूर्ते ।
लोकेभावन कारुणिको मतो मे
त्रायस्व मां केशव पापबन्धनात् ।।”
(अर्थात- हे अच्युत! चक्रपाणि! आप को बारम्बार नमस्कार है। हे मत्स्यावतारी माधव ! आप को नमस्कार है। मैं आप को लोक में दयालु मानता हूँ। केशव! आप मेरे शरीर में स्थित पापों से उत्पन्न अशुभों को नष्ट कर मुझे पाप बन्धन से मुक्त करें। )
इसके बाद निम्न श्लोक पढ़े। इस के पढ़ने से सहस्रनाम का फल मिलता है।
” नमो स्तवन अंनताय सहस्रमूर्तये
सहस्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे ।
सहस्रनामने पुरुषाय शाश्वते
सहस्रकोटि युग चारिणे नमः ।।”
अब, भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करें और बोलें –
“ॐ नमः शिवाय। ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । “
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र प्रचोदयात्। “
” कर्पूर गौरं करुणावतारं ,
संसार सारंग भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे
भवं भवानि सहितं नमामि ।।”
“ॐ माँ पार्वत्यै नमः ।ॐ माँ पार्वत्यै नमः । ॐ माँ पार्वत्यै नमः । ॐ माँ पार्वत्यै नमः। ॐ माँ पार्वत्यै नमः। “
“ॐ गिरिजायै विद्महे शिव प्रियायै धीमहि। तन्नो उमा प्रचोदयात् ।”
” ॐ सर्व मंगल मांगल्यै,
शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके नारायणी नमोऽस्तु ते ।।
इस के बाद भगवान श्रीगणेश, व माँ सरस्वति की आरती करें ।
आरती समाप्त होने के बाद माँ सरस्वति, व भगवान श्रीगणेश, भगवान विष्णु, भगवान शिव एवं माता पार्वती को भोग लगाऐ ।
परिवार के सभी लोगों को आरती दें व भोग सामग्री प्रसाद के रूप में बाटें।
बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व –
बसंत पंचमी की तिथि से बसंत ॠतु प्रारंभ होती है। इस के आगमन से सर्दी का मौसम शनैः शनैः समाप्त होता है, दिन बड़े होने लगते है और रातें छोटी होने लगती हैं ।
वातावरण में एक नये प्रकार की स्फूर्ति दिखाई देती है तथा पेड़ पौधों में नई कलियाँ / अंकुर निकलने लगते हैं।
इस दिन दान का बहुत महत्व माना जाता है।
इस दिन छोटे शिशुओ/ बच्चों को माँ सरस्वति की पूजा के बाद प्रथम बार पाठशाला शिक्षा के लिए भेजा जाता है ।
माँ सरस्वति विद्या एवं स्वर की देवी हैं अतः उनकी आराधना करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं सफलता प्राप्त होती है। इसीलिए नित्य माँ सरस्वति को प्रणाम कर शिक्षा के लिए जाना बहुत शुभ माना जाता है।
बसन्त पंचमी के दिन लगभग सभी स्कूल, कालेज एवं विश्वविद्यालयों में माँ सरस्वति के पूजन एवं व्याख्यान मालाओं का आयोजन किया जाता है।
इस दिन तीर्थ स्थलों पर पवित्र स्नान बहुत उत्तम एवं पुण्य फलदायक माना जाता है।
गुजरात राज्य में इस दिन माँ सरस्वति की पूजा प्रसिद्ध गरबा नृत्य के साथ की जाती है जिस में स्त्रियाँ खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतीं है।
बहुत से तीर्थ स्थलों पर इस दिन बड़े – बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है जहाँ दूर दूर से सैलानी आकर मेलों का आनन्द उठाते हैं।
बसन्त पंचमी के दिन काम देव व उनकी पत्नी रति देवी की भी आराधना की जाती है । इसी संदर्भ में बहुत से स्थानों पर रासलीलाऔं का आयोजन भी किया जाता है।
भारत के कई प्रदेशों में इस दिन पतंग उड़ाने का रिवाज है। पंजाब प्रांत में ऐसा माना जाता है कि पतंग उड़ाने की प्रथा महाराजा रंजीत सिंह जी ने शुरु की थी। इस दिन इतनी ज्यादा पतंग उड़ाई जाती हैं कि पूरा आसमान रंग बिरंगी पतंगों से ही भरा दिखाई देता है।
बसन्त पंचमी ही एक मात्र ऐसा त्योहार है जिस पर बहुत सी जगह मुसलमान समुदाय के लोग भी सूफी संगीत का प्रति वर्ष कार्यक्रम रखते हैं।
एक पौराणिक कथा महाकवि कालीदास से भी जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि कालीदास जी की अपनी पत्नि से अनबन होने के कारण वह दुखी होकर आत्म हत्या के विचार से एक नदी पर गये। जैसे ही वह नदी पर पहुंचे, माँ सरस्वति ने उन्हें दर्शन दिये और उस पवित्र नदी में स्नान करने के लिए कहा।
उस नदी में स्नान करने मात्र से उनका जीवन ही बदल गया और माँ सरस्वति की अनुकम्पा से उनका बुद्धि विवेक जाग्रत हो गया और उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्यों की रचना की।
ऐसा माना जाता है कि बसन्त पंचमी के दिन काम देव एवं उनकी पत्नि रति देवी की पूजा / आराधना करने से मनुष्यों के वैवाहिक जीवन में अपार खुशियाँ आती है और उनके रिश्ते दृढ़ हो जाते हैं।
श्रीमद् भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि ‘ ऋतुओं में मैं बसन्त हूँ ।’ अर्थात यह बसन्त ॠतु भगवान की सबसे प्रिय ॠतु है एवं शुभ फलदायक है।
एक पौराणिक कथा में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण व देवी सरस्वति की एक बार वार्ता हुई और भगवान श्रीकृष्ण ने माँ सरस्वति को वरदान दिया कि बसन्त पंचमी के दिन तुम्हारी हर साल उपासना होगी। ऐसा माना जाता है कि इसी कारण प्रति वर्ष बसन्त पंचमी एक पर्व / त्यौहार के रूप में मनाई जाती है।
बसन्त पंचमी के दिन होली रखे जाने का रिवाज है। होली का त्योहार सदैव बसन्त पंचमी के 40 पर आता है। अतः यह पर्व होली के आगमन का भी प्रतीक है।
देवी सरस्वति के रोचक तथ्य –
देवी सरस्वति को ब्रह्मा जी के सभी ज्ञान और बुद्धि का भंडार माना जाता है तथा उन्हें वेदों की जननी कहा जाता है।
माँ गायत्री माँ सरस्वति का एक लोकप्रिय रूप हैं।
ब्रह्मा जी ने देवि सरस्वति को वाग्देवी नाम दिया था क्योंकि वह वक्तृत्व और ध्वनि की प्रतीक हैं ।
माँ सरस्वति कई रूपों वाली देवी है इसीलिए इन्हे शतरूपा भी कहा जाता है।
पूर्वी भारत में माँ सरस्वति को भगवान शिव और माँ दुर्गा की पुत्री भी माना जाता है।
बौद्ध धर्म शास्त्र में देवी सरस्वति को मंज श्री की पत्नि माना जाता है।
देवी सरस्वति की वीणा बुद्धि और सद्भाव का प्रतीक है।
भारत में पौराणिक काल में अर्थात लगभग 4000 वर्ष पहले जो सरस्वति नदी बहती थी वह माँ सरस्वति का पार्थिव रूप था। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम जी क्षत्रियों के अंत के बाद इस नदी को स्वयं पवित्र किया था।