Q. सकट चौथ कब मनाई जाती है ?
सकट चौथ माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है ।
Q. सकट चौथ का व्रत क्यों किया जाता है ?
सकट चौथ का व्रत महिलाऐं अपनी संतान की दीर्घ आयु एवं उनके सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करतीं हैं।
Q. सकट चौथ को किस की पूजा की जाती है ?
सकट चौथ को भगवान गणेश के साथ- साथ शिव जी, पार्वती जी एवं चंद्र देवता की पूजा की जाती है ।
Q. सकट चौथ में भगवान गणेश को किस का भोग लगाते हैं ?
सकट चौथ में भगवान गणेश को तिल और गुड़ के लड्डू का भोग लगाते हैं ।
आइये सकट चौथ पर्व के बारे में विस्तार से जानें ।
सकट चौथ व्रत कब आता है ?
सकट चौथ व्रत प्रति वर्ष माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि परिवार के कल्याण एवं समृद्धि की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन घर की महिलाऐं निर्जला व्रत अपनी संतान की दीर्घायु तथा उन के सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना से रखतीं हैं। इस व्रत में मुख्यतः भगवान गणेश की पूजा / आराधना की जाती है तथा उन के साथ-साथ भगवान शिव व माता पार्वती की आराधना भी की जाती है। इस व्रत का पारण चन्द्रोदय होने के बाद उनको अर्ध्य देकर किया जाता है। इस दिन माताऐं तिल और गुड़ के लड्डू बनाती हैं और गणपति की पूजा करके उन को तिल के लड्डूओं का भोग लगतीं हैं ।
सकट चौथ के अन्य नाम –
सकट चौथ को कई नामों से भिन्न-भिन्न स्थानों में पुकारा जाता है, जैसे-
सकट, संकष्टी चतुर्थी, लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी, संकटा चौथ, तिल चौथ, तिलक चौथ, तिलकुटा चौथ, माघी चौथ, माघी चौथ्ज्ञ, वक्रतुण्डी चतुर्थी ।
सकट चौथ – 2023 मुहूर्त-
वर्ष 2023 में सकट चौथ का व्रत/ पर्व दिनांक 10 जनवरी 2023 दिन मंगलवार को मनाया जायगा ।
चतुर्थी तिथि आरंभ- दिनांक 10 जनवरी 2023, दिन मंगलवार, दुपहर 10-09 बजे से ।
चतुर्थी तिथि समाप्त- दिनांक 11 जनवरी 2023, दिन बुधवार, दुपहर 02-31 PM तक
चतुर्थी तिथि को
चन्द्रोदय का समय- रात्रि 09 – 04 PM पर ।
सकट चौथ व्रत के नियम –
इस दिन घर की महिलाओं को सुबह जल्दी उठ कर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर घर की साफ सफाई कर के स्नान करना चाहिए ।
स्नान करते समय स्नान के जल में कुछ बूँदें गंगाजल की डाल लेनी चाहिए या फिर स्नान से पहले माँ गंगा / पवित्र नदियों का आवाह्न कर के स्नान करना चाहिए ।
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा सकट चौथ का व्रत रखने का संकल्प करें। इस दिन काले रंग के वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए ।
सकट चौथ के व्रत में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करें ।
इस दिन मुख्यतः भगवान गणेश की पूजा होती है, पूजा के पश्चात भगवान श्रीगणेश के भोग के लिए दिन में (अर्थात पूजा प्रारंभ करने से पहले ) ही तिल गुड़ के लड्डू तैयार कर लें।
सकट चौथ पूजा विधि –
सकट चौथ का व्रत महिलाऐं अपनी संतान की समृद्धि, उन की दीर्घ आयु तथा वैवाहिक जीवन के सुख की कामना से रखती हैं ।
इस दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन शुद्ध मिट्टी लाकर पूजा प्रारंभ क,ने से पहले मिट्टी को गीला कर भगवान गणेश की प्रतिमा बनाते हैं
इस के बाद जहाँ पर पूजा करनी है वहाँ ( पूजा स्थल) पर या पूजा के स्थान पर एक चौकी बिछा कर पहले वहाँ कुछ बूंद गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। अगर गंगाजल उपलब्ध न हो तो कुछ बूंदें जल की हाथ में लेकर यह बोलते हुए छिड़कें –
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।”
इस के बाद चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाऐं, उस पर भगवान श्रीगणेश की जो प्रतिमा बनाई है उसे स्थापित करें।
गणेश जी की प्रतिमा को सुन्दर वस्त्र उढ़ा कर चंदन, रोली आदि से तिलक लगाकर उन का श्रृंगार करें तथा भगवान गणेश जी की सभी प्रिय वस्तुऐं फूल, दुर्वा, तथा फल आदि अर्पित करें । भगवान शिव पार्वती की एक तस्वीर भी पूजा में रखें और उनको तिलक लगाकर फूल आदि अर्पित करें ।
एक दीपक जलाकर कर पूजा की चौकी पर रखें तथा एक जल का कलश भी रखें ।
इस के बाद भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए बोलें –
ॐ श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ गं गणपत्ये नमः ।
ॐ गणाधिपाय नमः ।
ॐ उमापुत्राय नमः ।
ॐ विनाकाय नमः ।
ॐ ईश पुत्राय नमः ।
ॐ विघ्ननाशनाय नमः।
ॐ एक दन्ताय नमः ।
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ।
ॐ वक्रतुण्डाय नमः ।
ॐ कुमार गुरवे नमः रिद्धि सिद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
इस के पश्चात गणेश गायत्री मन्त्र बोलें –
“ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात् ।।”
इस के बाद बोलें –
ॐ नमो वातप्रतये , नमो गणपतये, नमः प्रथम पतये ।
नमस्तेऽस्तु विघ्ननाशने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमः ।।”
भगवान श्रीगणेश का यह श्लोक बोलें –
“ॐ गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकं, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ।।
अपने परिवार को संपत्ति प्राप्ति की कामना से यह मन्त्र बोलें –
“ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा ।। “
इसके पश्चात गोस्वामी तुलसीदास रचित गणपति वंदन बोलें –
“गाइये गणपति जग वंदन।
शंकर सुवन भवानी के नन्दन ।।
सिद्धि सदन गजवदन विनायक।
कृपा सिंधु सुन्दर सब लायक ।।
मोदक प्रिय मुद्र मंगल दाता ।
विद्या बारिधि बुद्धि विधाता ।।
गाइये गणपति ……..
इस के पश्चात पद्म पुराण, सृष्टिखण्ड (अध्याय – 61) में व्यास जी द्वारा वर्णित श्रीगणेश स्तुति बोलें –
” गणाधिप नमस्तुभ्यं सर्वविघ्नप्रशान्तिद ।
उमानन्द प्रद प्राज्ञ त्राहि मां भवसागरात् ।।
हरानन्दकर ध्यानज्ञानविज्ञानद प्रभो ।
विघ्नराज नमस्तुभ्यं सर्वदैत्यैकसूदन ।।
(अर्थात – श्रीगणेश जी आप को नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों को शान्ति करने वाले हैं। उमा (पार्वती जी) को आनन्द प्रदान करने वाले परम बुद्धिमान प्रभो ! भवसागर से मेरा उद्धार कीजिये। आप भगवान शंकर को आनन्दित करने वाले हैं। अपना ध्यान करने वालों को ज्ञान और विज्ञान प्रदान करते हैं। हे विघ्नराज ! आप संपूर्ण दैत्यों के एक मात्र संहारक हैं, आपको नमस्कार है ।)
इस के बाद भगवान श्रीगणेश के 12 नाम का यह कल्याणप्रद स्तोत्र बोलें जो अत्यंत मंगलदायक है –
” गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप ।।
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भावात्मक ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत ।।
विश्व तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्न भवेत क्वाचित् ।”
(अर्थात – भगवान गणपति के 12 नाम ये हैं – गणपति, विघ्नराज, लम्बतुण्ड, गजानन, द्वैमातर, हेरम्ब, एकदन्त, गणाधिप, विनायक, चारुकर्ण, पशुपाल , और भवात्मज ।जो प्रातःकाल उठकर इन बारह नामों का पाठ करता है, संपूर्ण विश्व उसके वश में हो जाता है तथा कभी विघ्नों का सामना नहीं करना पड़ता ।)
(पद्म पुराण, सृष्टिखण्ड, अध्याय 61 – श्लोक 31 – 33)
इस के बाद माता पार्वती का ध्यान करके निम्न मन्त्र बोलें –
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः ।
ॐ गौरये नमः ।
ॐ पार्वत्यै नमः ।
माँ पार्वती को हाथ जोड़कर प्रणाम करें ।
भगवान शिव का ध्यान कर निम्न मंगलकारी मन्त्र बोलें –
ॐ अघोराय नमः । ॐ शर्वाय नमः। ॐ विरूपाक्षाय नमः। ॐ विश्वरूपिणे नमः । ॐ त्र्यम्बकाय नमः । ॐ कपिर्दने नमः । ॐ भैरवाय नमः। ॐ शूलपाणये नमः । ॐ महेश्वराय नमः ।
भगवान शिव को हाथ जोड़कर कर सादर प्रणाम करें ।
इस के पश्चात सकट चौथ की पवित्र कथा पढ़ें या सुनें ।
सकट चौथ की कई कथाऐं हैं इन में से जो भी प्रति वर्ष पढ़ते हों उसी को पढ़ें/ सुनें ।
सकट चौथ की कथाऐं –
कथा – 1
एक नगर में एक साहूकार व साहूकारनी रहते थे। वे धर्म पुण्य में विश्वास नहीं करते थे। शायद इसी कारण उन के कोई संतान नहीं थी । एक दिन किसी काम से साहूकारनी अपने एक पड़ोसी के घर गई। उस दिन माघ मास की सकट चौथ का दिन था और पड़ोसन सकट चौथ की पूजा आदि करकै सकट की कथा सुना रही थी । जिज्ञासावश साहूकारनी ने अपनी पड़ोसन से पूछा कि तुम यह क्या कर रही हो और यह बताओ कि इस के करने से क्या होता है ? साहूकारनी की बात सुनकर पड़ोसन बोली यह सकट चौथ की पूजा है जो आज के दिन होती है। सकट चौथ मनाने से धन धान्य, समृद्धि, संतान आदि सब कुछ मिलता है। तो साहूकारनी बोली कि अगर मुझे गर्भ रह जाय तो सवा सेर का तिल कुट करूंगी। साहूकारनी गर्भवती होने के बाद बोली कि यदि मेरे पुत्र होकर मेरी गोद भरे तो मैं ढाई सेर का तिल कुट करूंगी। ईश्वर की कृपा से कुछ समय पश्चात साहूकारनी को एक पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र होने पर साहूकारनी बोली कि कि हे चौथ भगवान जब मेरे बेटे का विवाह संस्कार होगा तो उस समय मैं पाँच सेर का तिल कुट करूंगी। समय बीतते उस का बेटा जवान हुआ तो उस का विवाह तय कर दिया और वह विवाह की तारीख को विवाह करने चला गया, परन्तु साहूकारनी ने न तो सकट चौथ की पूजा ही करी और ना ही तिल कुट चढ़ाया। साहूकारनी के नकारात्मक रुख से चौथ देव रुष्ट हो गए और जब साहूकारनी का बेटा विवाह के लिए फैरों पर बैठा तो चौथ भगवान ने उसे वहाँ से उठा कर एक पीपल पर बैठा दिया। सभी रिश्तेदार व विवाह में उपस्थित लोगों के ढूढने पर भी साहूकारनी का बेटा नहीं मिला।हार थक कर सभी लोग अपने- अपने घर वापस चले गए।
साहूकारनी के बेटे से जिस कन्या की शादी होने वाली थी वह कन्या अपनी सहेलियों के साथ जंगल से पूजन के लिए दूब घास लेने गई तो अचानक उसे पीपल के पेड से एक आवाज – ‘ ओ मेरी अर्ध ब्याही’ सुनाई दी। उस के बाद लड़की धीरे- धीरे शरीर से कमजोर होने लगी। यह देखकर लड़की की माँ को बहुत चिंता रहने लगी। उस ने अपनी पुत्री से पूछा कि ऐसा क्या हो गया कि अच्छा खाने के बावजूद तू क्यों सूखती जा रही है ?
ऐसा पूछने पर लड़की ने अपनी माँ को बताया कि जब भी वह दुर्वा लेने जंगल जाती है उसे पीपल के पेड़ से इस तरह की आवाज आती है। और जो आदमी आवाज लगाता है उस ने सेहरा लगा रखा है व मेंहदी भी लगा रखी है। जब लड़की की माँ ने जंगल के पीपल के पेड़ को जा कर देखा तो पाया कि वह वही आदमी है जिस से उस ने अपनी बेटी का विवाह तय किया था। लड़ाकी की माँ ने उस से पूछा कि यहाँ पीपल पर क्यों बैठा है? मेरी बेटी अर्ध ब्याही करदी और क्या लेगा ? तब उस ने बताया कि मेरी माँ (साहूकारनी) ने सकट चौथ पर तिल कुट करने के लिए बोल कबूल किये थे परन्तु किया नहीं। इस से सकट देवता नाराज हो गए और उन्होंने मुझे यहाँ बैठा दिया ।
यह जानकर कर लड़की की माँ साहूकारनी के घर गई और साहूकारनी से पूछा कि क्या उस ने सकट चौथ के व्रत आदि के लिए कुछ बोल कबूल किया था। तब साहूकारनी ने सच्चाई कबूल करली और बोली कि अगर मेरा बेटा घर आजाये तो मैं पूरे विधि-विधान से सकट की पूजा व ढाई मन का तिल कुट करूंगी तथा प्रति वर्ष सकट चौथ का व्रत नियमित रूप से किया करूंगी। ऐसा करने से उस साहूकारनी का बेटा अपनी पत्नी को लेकर अपने घर आ गया । साहूकारनी ने चौथ देवता के हाथ जोड़कर प्रणाम किया व आभार प्रकट किया। इस के बाद सारे नगर वासीयों ने सकट चौथ का व्रत एवं पूजा आरंभ करदी।
हे सकट चौथ देव ! जिस प्रकार आप ने कृपा कर के साहूकारनी को उसके बेटे व बहू को मिलवाया, उसी प्रकार अपनी कृपा हम सभी पर बनाए रखना तथा इस कथा को सुनने वालों एवं कहने वालों का सदैव भला करना।
बोलो सकट चौथ की जय ।
बोलो भगवान श्रीगणेश जी की जय ।।
सकट चौथ कथा – 2
एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती नर्वदा नदी के तट पर गऐ । वहाँ एक रमणीय स्थान पर माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने की इच्छा से अवगत कराया ।पार्वती जी की बात सुनकर भगवान शिव ने कहा कि यहाँ अगर हम चौपड़ खेलेंगे तो हम में से कौन जीता और कौन हारा, इस का साक्षी कौन होगा ? यह सुन कर माता पार्वती ने वहाँ के घास तिनके बटोर कर एक पुतला बना कर उस में प्राण प्रतिष्ठा कर उसे एक जीवित बालक बना दिया । और उस बच्चे से कहा कि हम लोग यहाँ पर चौपड़ खलेंगे और उसको तुम देखते रहना कि हम में से कौन जीत रहा है। यहाँ पर हमारी हार जीत का कोई और साक्षी नहीं है अतः यह जिम्मेदारी तुम निभाना । खेल समाप्त होने पर तम्हें हमको यह बताना होगा कि हम में से कौन जीता है और कौन हारा है ।
माता पार्वती और भगवान शिव ने चौपड़ खेलना प्रारंभ किया और संयोग वश तीन बार के खेल में तीनों बार माता पार्वती ही जीतीं । जब उस बालक से हार जीत का फैसला कराया तो उस ने महादेव जी को विजयी बताया । बच्चे के गलत निर्णय से माता पार्वती को क्रोध आया और उस बच्चे को शाप दिया कि तू एक पैर से लंगड़ा हो जाए और यहीं कीचड़ में दुख भोगे ।
ऐसा सुन कर बच्चे ने माता पार्वती से बड़ी विनम्रता से बोला कि मैंने किसी ईर्ष्या या मन की किसी कुटिलता/ दोष की वजह से ऐसा नहीं किया बल्कि अज्ञान वश मुझ से हो गया है अतः मुझे आप कृपाकर क्षमा करें तथा कोई उपाय बताऐं जिससे मैं शाप मुक्त हो सकूँ । यह सुन कर माता पार्वती को उस बालक पर दया आ गई । तब माता पार्वती ने उससे कहा कि यहाँ नाग कन्याऐं गणेश पूजन के लिए आऐंगी। उनके उपदेश के अनुसार अगर तुम गणेश व्रत करोगे तो मुझे प्राप्त कर सकोगे।
लगभग एक वर्ष के उपरांत श्रावण मास में नाग कन्याऐं वहाँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग कन्याओं ने वहाँ गणेश व्रत किया तथा उस बालक के आग्रह पर उसको भी गणेश व्रत व पूजन विधि बताई । उस बालक ने गणेश जी का व्रत 12 दिन का किया जिस से गणेश जी बहुत प्रसन्न हुए और उसे दर्शन देकर मनोवांछित वर मांगने को कहा। बालक ने गणेश जी से कहा कि हे देव ! आप मेरे पैरों में इतनी शक्ति दें कि मैं कैलाश पर्वत अपने मातापिता के पास जा सकूँ और वह मुझ से प्रसन्न हों । गणेश जी ‘तथास्तु ‘ कह कर अंतर्धान हो गए।
बालक कैलाश पर्वत भगवान शिव के चरणों में जब पहुंचा तो भगवान शिव जी ने पूछा कि कैलाश पर्वत तक कैसे पहुंचे तो बालक ने सारी बात बताई। उधर उसी दिन माता पार्वती भगवान शिव से कुछ अप्रसन्न होकर विमुख हो गईं थीं । तब भगवान शिव ने 21 दिन का श्रीगणेश जी का व्रत किया । उस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती को भगवान शिव से मिलने की इच्छा हुई और वह कैलाश पर्वत आ गईं । कैलाश पर्वत पहुंच कर माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि आप ने ऐसा क्या उपाय किया जो मेरा मन बदल गया और मैं स्वयं आप के पास चली आई। तब शिव जी ने गणेश जी के व्रत की महिमा उन को बताई। इस के पश्चात माता पार्वती ने अपने बड़े पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए गणेश जी का व्रत/ पूजन किया, तो कार्तिकेय जी स्वयं माता पार्वती से मिलने कैलाश पर्वत पर आ गये थे ।कार्तिकेय जी ने भी अपनी माता पार्वती से गणेश जी के व्रत का महात्म्य सुना और व्रत किया।
बोलो सकट चौथ देव की जय ।
बोलो श्रीगणेश भगवान की जय ।।
कथा – 3
एक गाँव में एक गरीब परिवार में माँ और उस का बेटा रहते थे। वह गरीबी के कारण अपना निर्वाह बड़ी मुश्किल से करते थे । उस की माँ माघ मास में सकट चौथ का व्रत रखती थी परन्तु एक बार ऐसा हुआ कि उस के पास तिल के लड्डु बनाने का कोई सामान नहीं था और ना ही घर में पैसे थे जिस से सामान मंगा सके। इसलिए उस ने अपने बेटे से कुछ इंतजाम करने के लिए कहा । तब बेटा बोला माँ तुम खप्पर ( मिट्टी का बर्तन) गर्म करो, मैं जल्दी से सामान ले कर आता हूँ। बेटे के पास भी पैसे नहीं थे तो उस ने सोचा कि किसी सेठ के घर से कुछ चोरी करलूँ, तो काम चल जायगा। यह सोच कर वह एक सेठ के घर में चोरी करने घुस गया परन्तु सेठ ने उसे देख लिया और पकड़ कर रस्सी से बांध दिया। जब माँ को खप्पर गर्म करते बहुत देर हो गई और बेटा नहीं आया तो वह बोली, “खप्पर धीके पूं पा” । बेटे को इस का अह्सास हुआ तो बोला, ” बंधा हूँ करूं क्या ” । सेठ ने यह आवाज सुन ली तो उस से पूछा कि तुम यह क्या बोल रहे हो ? तब उस ने अअपनी सारी व्यथा सेठ को बताई। उस की दयनीय दशा सुन कर सेठ को दया आई और सेठ ने उसे कुछ तिल और गुड़ दे कर छोड़ दिया। तिल गुड़ पाकर उस की माँ ने सकट चौथ की पूजा का सामान बनाया और विधि-विधान से व्रत पूरा किया। सकट चौथ की कृपा से गरीब बुढ़िया का घर धन धान्य से भर गया।
हे सकट चौथ देव जैसे उस बुढ़िया पर आपने कृपा करी ऐसी सब पर करना।
बोलो सकट चौथ देव की जय ।
बोलो श्रीगणेश जी की जय ।।
कथा – 4
एक नगर में एक कुम्हार रहता था। जो मिट्टी के बर्तन बना कर आंवा में पका कर, उन्हें बेच कर अपनी जीविका चलाता था। एक बार ऐसा हुआ कि कच्चे मिट्टी के बर्तनों को जब आंवा में पकाया तो बर्तन पके ही नहीं।उसकी सारी कोशिश बेकार रहीं । तो उस ने राजा के पास जाकर कर अपनी व्यथा बताई तथा इस समस्या का समाधान के लिए प्रार्थना की। राजा ने पंडितों को बुलाकर पूछा तो उन्होंने बताया कि आंवा लगाते समय एक बच्चे की बली दोगे तो आंवा पक जायगा। राजा ने इस का आदेश दे दिया और बलि दे कर आंवा से बर्तन पकने लगे।
कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। उस का लड़का ही एक मात्र उसके बुढ़ापे का सहारा था और उस दिन सकट चौथ का दिन था। बुढ़िया यह सोच कर रोने लगी कि आज सकट के दिन उस का बेटा चला जायगा क्योंकि राजा की आज्ञा के आगे तो किसी की चलती नहीं है । बुढ़िया ने अपने बेटे को सकट चौथ के पूजन की एक सुपारी और दुर्वा का एक बीड़ा दिया और बोली- “जाओ, इनको अपने पास रखना और भगवान सकट देव ( श्रीगणेश) का नाम लेकर आंवा पर बैठ जाना, सकट माता व गणेश जी तेरी रक्षा करेंगे। और घर पर बुढ़िया सकट माता के सामने बैठ कर प्रार्थना करने लगी । वैसे तो आंवा पकने में कई दिन लगते थे परन्तु इस बार कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि आंवा एक दिन में ही पक गया। कुम्हार
यह देखकर हैरान रह गया और ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि बुढ़िया का बेटा व अन्य सभी बालक जीवित एवं पूर्णतः सुरक्षित थे । इस घटना की खबर पूरे नगर में फैल गई और सभी नगर वासियों ने सकट देव की महिमा को बड़े आदर से स्वीकारा तथा तथा बुढ़िया के उस लड़के को भी धन्य माना।
सकट माता जैसे उन बच्चों व बुढ़िया के बेटे की जान बचाई वैसे सभी की बचाना ।
बोलो सकट माता की जय ।
बोलो भगवान श्रीगणेश की जय ।।
कथा – 5
एक शहर में दो सगे भाई अपने-अपने परिवारों के साथ रहते थे। बड़ा भाई अमीर था और छोटा बहुत गरीब था। छोटा भाई मजदूरी/ जंगल से लकड़ी काट कर बेच कर अपना पेट चलाता था और उस की पत्नी अपनी जेठानी के घर का सारा काम करती थी। बदले में जेठानी झूठा / बचा खाना और पुराने कपड़े दे देती थी । देवरानी उसी से किसी तरह अपना निर्वाह करती थी ।
माघ माह में सकट चौथ का त्यौहार आया तो देवरानी ने चौथ का व्रत रखा और पाँच रुपए के तिल व गुड़ मंगा कर पूजा के लिए तिल कुट बनाए। पूजा करके सकट चौथ की कथा सुनी और तिल कुट छींके में रख दिए और सोचा कि रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलूंगी तभी कुछ खाउंगी।
सकट चौथ की कथा सुन कर वह जेठानी के घर काम करने चली गई । खाना आदि बनाने के बाद उस ने जेठानी के बच्चों से खाना खाने के लिए बोला तो बच्चे बोले कि माँ भूखी हैं, जब वो खाना खाऐंगी हम भी तभी खाऐंगे। फिर उस ने जेठ जी को खाने के लिए बोला तो उन्होंने भी ऐसा ही बोला कि चन्द्रोदय के बाद एक साथ खाऐंगे । जेठानी ने उसे कहा कि अभी किसी ने खाना नहीं खाया है तुम बचा हुआ खाना कल सुबह आकर ले जाना ।
देवरानी के घर उस के बच्चे व पति आस लगाकर बैठे थे कि वह कुछ खाना लेकर आऐगी तो कुछ खाने को मिलेगा। जब बच्चों और पति को पता चला कि खाना नहीं लाई है तो वह क्रोध में बोला कि सारा दिन वहाँ काम करती हो, तो खाने के लिए दो रोटी नहीं ला सकती और गुस्से में उसकी कपड़ा धोने वाले डंडे व पट्टे से पिटाई करदी। वह बेचारी पिट पिटा कर भगवान गणेश को याद करती हुई भूखी रोती- रोती ही सो गई।
रात में भगवान गणेश जी देवरानी के सपने में आऐ और उस से बोले, ” धोवने मारी पाटे मारी सो रही है ?” वह बोली कुछ जाग रही हूँ कुछ सो रही हूँ। यह सुन कर गणेश जी बोले- ” मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे। ” वह बोली क्या दूँ मेरे घर में तो एक दाना अन्न का भी नहीं है। जेठानी बच्चों का बचा कुचा खाना देती थी, आज तो वह भी नहीं दिया। पूजा का तिल कुट छींके में रखा है आप वह खा लीजिए। छींके पर रखा तिल कुट खाने के बाद गणेश जी ने बोला -” धोवने मारी पाटे मारी निपटाई लगी है, कहाँ नमटूँ ?” वो बोली सारा घर पड़ा है, कहीं भी निमट लो। फिर गणेश जी बोले, ” अब कहाँ पौंछू ?” इस पर देवरानी को कुछ गुस्सा सा लगा और खीज कर बोली – ” मेरे सर से पौंछ लो और कहाँ पौंछोगे ।
सुबह होने पर जब देवरानी उठी तो य।यह देखकर कर हैरान हो गई कि सारे घर में हीरे मोती चमक रहे थे और उस के सिर में जहाँ भगवान श्रीगणेश पौंछनी कर गऐ थे वहाँ हीरे के मोती, टीके तथा बिन्दी जगमगा रहे थे। उस दिन देवरानी अपनी जेठानी के घर काम करने नहीं गई । जेठानी ने दोपहर तक इंतजार करने के बाद अपने बच्चों को देवरानी के घर उस को बुलाने के लिए भेजा क्योंकि वह सोच रही थी कल खाना नहीं दिया था, शायद इसका बुरा मान गई होगी ।बच्चों ने जा कर देवरानी से बोला – चाची घर चलो, माँ ने बुलाया है, वहाँ सारा काम पड़ा है । यह सुन कर देवरानी ने बोला कि बेटा मैंने बहुत दिन तेरी माँ के यहाँ काम कर लिया, अब मैं नहीं जाऊंगी। अपनी माँ से कहना कि अब वह मेरे यहाँ काम करने आ जाया करे ।
बच्चों ने जा कर अपनी माँ को बताया कि चाची का घर तो हीरे मोतियों से दमदमा रहा है और चाची ने बोला है कि अपनी माँ को मेरे यहाँ काम करने भेज देना।
बच्चों की बात सुनकर जेठानी तुरन्त दौड़ती हुई देवरानी के घर आई और उस से पूछा कि यह सब कैसे संभव हुआ । देवरानी ने जेठानी को पिछले रात की पूरी घटना से अवगत कराया। जेठानी ने घर लौटकर अपने पति से बोली कि आप मुझे कपड़ा धोवन और पट्टे से मारो पीयो ।तो उस के पति ने कहा कि मैं यह कैसे कर सकता हूँ, मैंने तो आज तक कभी ऐसा किया ही नहीं और ना कभी तुम्हारे ऊपर हाथ उठाया। जेठानी ने ज्यादा जिद कर अपने को पिटवाया। फिर उसने घी का चूरमा बना कर छींके में रख कर सो गई । रात को विनायक जी (अर्थात श्रीगणेश जी) जेठानी के सपने में आऐ और बोले कि मुझे भूख लगी है क्या खाऊँ । जेठानी बोली कि गणेश जी आप ने ती देवरानी के घर जरा-स सूखा तिल कुट खाया था, पर मैंने तो आप के लिए घी का चूरमा बना कर छींके में रखा है तथा साथ में मेवे और फल भी रखे है, आप जो मन आऐ खाइये। गणेश जी चूरमा खा के बोले कि अब कहाँ निमटूँ । तो जेठानी ने कहा कि देवरानी के यहाँ केवल टूटी फूटी झोपड़ी थी, यहाँ तो खूब बड़ा घर है, जहाँ चाहे निमटो । फिर गणेश जी ने पूछा कि अब कहाँ पौंछूँ ? तो जेठानी ने कहा कि मेरे सिर पर बड़ी सी बिन्दी लगा कर पौंछ लो ।
धन की लोभी जेठानी जब सुबह उठी तो उस ने सोचा था कि चारों ओर हीरे जवाहरात दिखेंगे परन्तु पूरे घर में गंदगी फैली दिखाई दी और बुरी बदबू आ रही थी । जेठानी के सिर पर भी बहुत गंदगी लगी हुई थी। जेठानी बोली कि गणेश जी महाराज आप ने ये क्या किया। जेठानी ने सफाई करने की बहुत कोशिश करी पर गन्दगी फैलती ही गई। जब जेठानी के पति को यह सब पता चला तो उस ने बहुत गुस्साया और बोला भगवान ने पहले से ही हमें इतनी समृद्धि दी है तुम्हारा पेट उससे नहीं भरा । अब पता चला कि ज्यादा लोभ अच्छा नही होता।
जेठानी परेशान होकर भगवान श्रीगणेश से मदद की गुहार करने लगी। इस पर भगवान विनायक जी ने कहा कि तूने ईर्ष्या के चलते ऐसा किया उस का यह परिणाम मिला है ।
तेरा सब कुछ ठीक तब होगा जब तू अपने घर के सारे धन में से आधा अपनी देवरानी को दे देगी। जेठानी ने अपना आधा धन देवरानी को दे दिया परन्तु सोने की मुहरों की एक हांडी अपने चूल्हे के नीचे गाढ रखी थी , उस में से नहीं बांटा कयोंकि सोचा था कि उसका तो किसी को पता नही है। और गणेश जी से कहने लगी कि अब तो बिखराव को ठीक कर दो। तो गणेश जी ने कहा कि पहले चूल्हे के नीचे गढी हांडी का माल बांटो । इस तरह सब कुछ बटवा कर उस का घर समेटा ।
हे गणेश जी महाराज ! जैसी कृपा आप ने देवरानी पर करी वैसी कृपा सब पर करना। व्रत की कहानी बोलने वाले तथा सुनने वालों पर भी करना।
बोलो सकट चौथ देव की जय ।
बोलो भगवान श्रीगणेश जी की जय ।।
पूजा के बाद आरती –
पूजा समाप्त होने पर भगवान श्रीगणेश, माता पार्वती , व भगवान शिव जी की आरती करें ।
श्रीगणेश जी की आरती –
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।।
पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा ।
लडुवन के भोग लगे संत करें सेवा।
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ।।
अंधन को आँख देत कोढ़ी को काया ।
बाझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।
सूरदास शरण आऐ सफल कीजो सेवा।
श्रीगणेश जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।।
आरती माता पार्वती की
ॐ जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।
ब्रह्म सनातन देवी,शुभ फल दाता ।।
ॐ जय पार्वती …..
अरिकुल पद्म विनशिनि, जय सेवक त्राता ।
जग जीवन जगदम्बा, हरिहर गुण गाता ।।
ॐ जय पार्वती….
सिंह का वाहन साजे, कुण्डल है साथा।
देव बंधु जस गावत,नृत्य करत ताथा। ।
ॐ जय पार्वती….
सतयुग रूपशील अतिसुन्दर, नाम सती कहलाता ।
हेमांचल घर जन्मी, सखियन संग राता ।।
ॐ जय पार्वती….
शुंभ निशुंभ विदारे, हेमांचल स्थाता।
सहस्त्र भुजा तनु धरिके, चक्र लियो हाथा ।।
ॐ जय पार्वती ….
सृष्टिरूप तुही जननी, शिव संग रंगराता।
नन्दी भृंगी बीन लही, है हाथन मदमाता ।।
ॐ जय पार्वती….
देव अरज करत, हम कवचित को लाता ।
गावत दे दे ताली, मन में रंग लाता ।।
ॐ जय पार्वती…
श्रीप्रताप आरती मैया की, जो कोई गाता।
सदा सुखी नित रहता, सुख संपति पाता ।।
ॐ जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता ।
ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल दाता ।।
ॐ जय पार्वती …
आरती शिव जी की –
ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा। ।
ॐ जय शिव …
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरुणासन, वृषवाहन साजे ।।
ॐ जय शिव…
दोभुज चार चतुर्भुज, दस भुज अति सोहे॔ ।
त्रिगुण रूप निरखता, त्रिभुवन जन मोहें ।।
ॐ जय शिव….
अक्षमाला वनमाला मुण्ड माला धारी।
चंदन मृगमद सोहे, भाले शशिधारी ।।
ॐ जय शिव….
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगे ।।
ॐ जय शिव ….
कर के मध्य कमण्डल, चक्र त्रिशूल धारी।
सुखकारी दुखहारी, जग पालनकारी। ।
ॐ जय शिव….
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित, य।यह तीनों ऐका ।।
ॐ जय शिव….
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संतान ।
पार्वती अर्द्धांगी शिव लहरी गंगा ।।
ॐ जय शिव….
पर्वत सोहे पार्वती, शंकर कैलाश ।
भांग धतूरा का भोजन भस्मी में वासा ।।
ॐ जय शिव….
जटा में गंगा बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।।
ॐ जय शिव ….
काशी में विश्वनाथ विराजे नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ।।
ॐ जय शिव..
त्रिगुण स्वामी जी की आरती, जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनोवांछित फल पावे ।।
ॐ जय शिव ओंकारा…
चन्द्र देवता का पूजन
रात को चन्द्रमा उदय होने के बाद जल का कलश जो पूजा में होता है उससे भगवान चन्द्र देवता को प्रणाम कर अर्घ्य दिया जाता है।
चन्द्रमा को अर्घ्य देते समय निम्न श्लोक बोलें –
“गगनार्णव माणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते ।
गृहणर्घ्य मया दत्त॔ गणेश प्रतिरूपक ।।
चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें
सकट चौथ का महत्व –
सकट चौथ का व्रत भगवान श्रीगणेश जी को समर्पित त्यौहार है।
इस पर्व पर मुख्य रूप से भगवान श्रीगणेश जी की पूजा होती है तथा भगवान शिव व माता पार्वती की भी पूजा की जाती है।
सकट (संकष्टी) चतुर्थी का अर्थ संकटों को हरने वाली चतुर्थी।
इस व्रत को महिलाऐं अपनी संतान के सुखमय वैवाहिक जीवन तथा पारिवारिक समृद्धि के लिए करती हैं ।
इस पर्व में भगवान श्रीगणेश जी को भोग में तिल के लड्डू व अन्य पकवान चढाऐ जाते हैं ।
इस दिन शकरगंदी खाने का अधिक महत्व माना जाता है ।
इस दिन व्रत का पारण चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य दे कर किया जाता है ।