भगवान दत्तात्रेय जी (Lord Dattatreya) को ब्रह्मा, विष्णु , एवं महेश (अर्थात भगवान शिव) इन तीनों का संयुक्त अवतार माना जाता है।  इसीलिए इन्हें त्रिमूर्ति अवतार भी माना जाता है। तीनों भगवानों का अंश होने के कारण इन की बहुत मान्यता है।  

भारत वर्ष में भगवान दत्तात्रेय को मानने वाले (followers of Bhagwan Dattatray) महाराष्ट्र, कर्नाटक,  आंध्रप्रदेश, गुजरात तथा पूर्व उत्तर प्रदेश में अधिक पाऐ जाते हैं। हमारे पड़ोसी देश नैपाल के कुछ हिस्सों में भी भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है  ।

ऐसा माना जाता है  कि भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु थे,  जिन से उन्होंने कुछ न कुछ शिक्षा/ गुण लिए थे।

भगवान दत्तात्रेय के गुरुओं के क्या नाम हैं?

इन गुरुओं का नाम था (Bhagwan Dattatreya Ke Guru)

पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य,  चन्द्रमा, समुद्रं,  अजगर,  कपोत,  पतंगा,  मछली, हिरन, हाथी,  मधुमक्खी,  शहद निकालने वाला,  कुरर पक्षी,  कुमारी कन्या,  सर्प,  बालक,  पिंगला,  वैश्या,  बाण बनाने वाला,  मकड़ी और भृंगी कीट। 

अर्थात प्रकृति और खगोल नक्षत्रों आदि सभी से इन्होंने गुण प्राप्त किऐ थे  ।

भारत वर्ष में कुछ प्रसिद्ध संत श्री दत्तात्रेय जी को मानने वाले हुऐ  जिन्होंने दत्त संप्रदाय का बहुत प्रसार किया।  दत्त संप्रदाय को मानने वाले संतों में –

श्री पाद वल्लभ जी,  पीठापुर, आंध्र प्रदेश के ;  श्री नृसिंह सरस्वती जी,  कारंजा (विदर्भ- महाराष्ट्र) – जिनका कार्य क्षेत्र  कर्नाटक प्रदेश था,  श्री मणिका प्रभु जी कर्नाटक  के, स्वामी समर्थ जी कर्नाटक के,  आदि प्रमुख माने जाते हैं  ।

भगवान दत्तात्रेय जी जयन्ती (अर्थात जन्म दिवस को) बड़ी श्रद्धा के साथ मार्गशीर्ष माह (अर्थात अगहन माह) में मनायी जाती है  । कहीं- कहीं तो इनका जयन्ती समारोह एक सप्ताह तक मनाया जाता है।  

दत्तात्रेय जयन्ती को किस नाम से जाना जाता है?

भगवान दत्तात्रेय जी की जयन्ती को दत्तात्रेय जयन्ती (Dattatreya Jayanti) , दत्ता जयन्ती,  दत्त जयन्ती के नाम से अधिकांशतः जाना जाता है।  

भगवान दत्तात्रेय के अन्य क्या-क्या नाम हैं?

भगवान दत्तात्रेय जी को दत्तात्रेय जी के अलावा (other names of Bhagwan Dattatreya) परब्रह्ममूर्ति,  सद्गुरु दत्तात्रेय भगवान , दत्ता भगवान,  श्री गुरुदेव दत्त जी , गुरु दत्तात्रेय जी,  व भगवान देवत्रय आदि नामों से ज्यादातर स्थानों पर जाना जाता है  ।

श्री दत्तात्रेय जयन्ती 2022 कब है?

भगवान दत्तात्रेय जी का जन्म (Birth of Bhagwan Dattatreya) मार्गशीर्ष (अगहन)  मास की पूर्णिमा तिथि के दिन सांय काल के समय हुआ था।  इसीलिए  इन की जयन्ती प्रति वर्ष अगहन माह की पूर्णिमा के दिन बड़ी श्रद्धा  एवं भक्तिभाव से मनाई जाती है। 

इस वर्ष यानि वर्ष 2022 में दत्तात्रेय जयन्ती  07 दिसम्बर  2022, दिन  बुधवार को मनाई जायगी। 

मार्गशीर्ष (अगहन मास)

पूर्णिमा 

तिथि आरंभ  –  07 दिसम्बर 2022, दिन बुधवार,  प्रातः 08 – 01 AM से

तिथि समाप्त  – 08 दिसम्बर 2022, दिन गुरुवार,  प्रातः  09 – 37 AM पर

भगवान दत्तात्रेय की जन्म कथा  –

भगवान दत्तात्रेय जी प्रसिद्ध ॠषि अत्रि जी व पत्नी अनुसूया के पुत्र हैं । (Bhagwan Dattatreya Birth Story) दत्तात्रेय नाम दो शब्दों से मिलकर बना है  – दत्त  + आत्रेय  अर्थात अत्रि जी के पुत्र  दत्ता जी। 

इसी से शायद उन का नाम दत्तात्रेय पड़ा।  भगवान दत्तात्रेय जी के जन्म से संबंधित एक कथा का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है  । जो इस प्रकार है  – 

ऋषि अत्रि की पत्नी देवी अनुसूया बड़ी पतिव्रता नारी थीं तथा अत्यधिक धार्मिक विचारों और संस्कारों को मानने वाली एक पवित्र नारी थीं।  उनके कोई संतान नहीं थी। 

संतान की इच्छा से देवी अनुसूया ने भगवान ब्रह्मा,  विष्णु , तथा महेश के समान गुण वाला पुत्र हो,  इस कामना से तपस्या की। 

देवी अनुसूया की पूर्ण श्रद्धा से की जाने वाली तपस्या व उनके पतिव्रत धर्म से भगवान ब्रह्मा,  विष्णु,  व महेश बहुत प्रसन्न थे  । यह जानकर तीनों की देवियों ने त्रिदेवों  से देवी अनुसूया की परीक्षा लेने का आग्रह किया।

उनका आग्रह मानकर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा जी,  विष्णु जी,  व भगवान शिव ने अपना भेष बदल कर देवी अनुसूया के पास पहुचे  और बोले कि हम लोगों को भूख लग रही है अतः आप हमें भोजन कराने की व्यवस्था करें ।

यह सुन कर देवी अनुसूया उन तीनों साधुओं के लिए आदर सहित भोजन कराने की तैयारी के लिए जाती हैं  । तभी उन तीनों साधुओं ने देवी अनुसूया की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा कि यदि वह निवस्त्र होकर भोजन कराऐंगी तभी वह भोजन ग्रहण करेंगे। 

देवी अनुसूया ने उन की शर्त के लिए हाँ कर दिया।  इस के पश्चात देवी अनुसूया ने अपनी मन्त्र शक्ति से उन तीनों साधू वेषधारियों  (अर्थात  ब्रह्मा , विष्णु,  महेश )  को बिलकुल नवजात शिशु के रूप में परावर्तित कर दिया और तीनों शिशुओं को भोजन के स्थान पर अपना स्तनपान कराया । 

जब ऋषि अत्रि घर पर आऐ और तीन नवजात शिशुओं को देखा तो देवी अनुसूया ने उन के बारे में विस्तार से बताया।  देवी अनुसूया से पूरा विवरण सुनकर ॠषि अत्रि ने अपनी मन्त्र शक्ति से उन तीन शिशुओं को एक शिशु के रूप में परिवर्तित कर दिया , जिसके तीन मुख और छः हाथ थे  । 

इस घटना की जानकारी जब तीनों देवियों को पता चली तो उन्होंने ॠषि अत्रि से आकर  आग्रह किया कि कृपा कर उनके पतियों को पूर्व रूप में बदल कर वापस कर दें। 

उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए ॠषि अत्रि ने अपनी मन्त्र शक्ति से तीनों देवों को उनके मूल रूप में परिवर्तित कर दिया।  

ऐसा देखकर तीनों देवियाँ बहुत प्रसन्न हुईं और तीनों देवियों ने अनुसूया को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।  उनके आशीर्वाद से देवी अनुसया को पुत्र प्राप्त हुआ , जिसका नाम दत्तात्रेय रखा।  इसमें  तीनों दवों की शक्ति  समाहित थी। 

इस प्रकार दत्तात्रेय जी ॠषि अत्रि और देवी अनुसूया के पुत्र हुए।

Bhagwan Dattatreya Jayanti की पूजा  विधि  –

भगवान दत्तात्रेय जी जयन्ती के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म तथा स्नान आदि से निवृत्त होना चाहिए  ।

अगर घर के नजदीक कोई पवित्र नदी हो तो वहाँ स्नान करना अधिक शुभ है अन्यथा घर पर ही स्नान करने से पहले माँ गंगा व अन्य पवित्र नदियों का आवाह्न कर के स्नान करना चाहिए  ।

स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य अवश्य दें।  तदुपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर दिन में व्रत रखने का संकल्प करें  ।

पूजाघर में या पूजा स्थल पर एक चौकी रखकर उस पर स्वच्छ कपड़ा बिछा कर अथवा थोड़ी सी फूलों की पंखुड़ियां  डाल कर भगवान दत्तात्रेय की एक तस्वीर रखें।  

तस्वीर के आगे धूप दीपक जलाऐं,  नैवेद्य रखें और पूरे श्रद्धा भाव से भगवान दत्तात्रेय की पूजा अर्चना करें। पूजा के बाद तथा संध्याकाल में आरती अवश्य करें  ।

भगवान दत्तात्रेय के गायत्री मन्त्र अवश्य बोलें  या उनका बैठकर जप करें  । यह बहुत मंगलदायी है।  गायत्री मन्त्र इस प्रकार हैं  –

” ऊँ दत्तात्रेय विद्महे,  अवधूताय धीमहि। तन्नो दत्तः प्रचोदयात्  ।।”

” ऊँ  दिगम्बराय विद्महे, अवधूताय धीमहि।  तन्नो दत्तः प्रचोदयात्  ।।”

भगवान दत्तात्रेय की पूजा प्रारंभ करते समय सबसे पहले उन्हें प्रणाम करने के लिए निम्न मन्त्र बोलें  –

” ऊँ आदौ ब्रह्मामध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः  ।

मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोऽस्तु ते  ।।”

(अर्थात-  जो आदि में ब्रह्मा , मध्य में विष्णु,  तथा अंत में सदाशिव हैं,  उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है । )

“ऊँ ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रावस्त्रे चाकाशभूतले  ।

प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोऽस्तु ते  ।।”

(अर्थात  – ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र हैं  तथा जो साकार प्रज्ञानघनस्वरूप हैं,  उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है  )

पूजा करते समय – “ऊँ दत्तात्रेयाय स्वाहा ”  तथा   ” ऊँ महानाथाय नमः” का  जाप करें  ।

दिन में अगर समय मिलता है तो घर के समी लोग मिलकर अवधूत गीता का पाठ करें  ।

पूजा के बाद अगर दत्तात्रेय भगवान की परिक्रमा करनी हो तो सात परिक्रमा करें  ।

शाम को आरती करने के बाद प्रसाद बाटें तथा व्रत का पारण करें  ।

दत्तात्रेय जयन्ती का महत्व  –

भगवान दत्तात्रेय की जयन्ती (Dattatray Jayanti Ka Mahatva) इनकी स्तुति भगवान के रूप में तथा गुरु के रूप में की जाती है  ।

भगवान दत्तात्रेय की स्तुति  / ध्यान से मनुष्य को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है  और मनुष्य के लिए जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना सुलभ हो जाता है।  इनक  स्तुति से मनुष्य को न केवल मानसिक शान्ति मिलती है बल्कि समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं  ।

ऐसी मान्यता है कि इनके स्मरण मात्र से भगवान दत्तात्रेय अपने भक्तों के पास उनके कष्ट हरने पहुंच जाते हैं ।  इसीलिए भगवान दत्तात्रेय को ‘स्मृतगामी’ कहा जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न  –

Q.  दत्तात्रेय जयन्ती 2022 कब है ?

Ans.  दत्तात्रेय जयन्ती  07 दिसम्बर 2022,  दिन बुधवार को मनाई जायगी  ।

Q.  दत्तात्रेय जयन्ती कब मनाई जाती है  ?

Ans.   दत्तात्रेय जयन्ती प्रति वर्ष मार्गशीर्ष  (अगहन) मास में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है  ।

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